असमः शांति समझौतों के बाद भी समूचा असम 'अशांत क्षेत्र' कैसे? - BBC News हिंदी

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असमः शांति समझौतों के बाद भी समूचा असम 'अशांत क्षेत्र' कैसे?

फ़रवरी 2021 में गुवाहाटी में तत्कालीन मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवालके समक्ष आत्मसमपर्ण करते अलगाववादी लड़ाके

मुख्यमंत्री सरमा ने यह भी जानकारी दी थी कि उनकी सरकार वर्तमान में अल्फ़ा , कुकी रिवोल्यूशनरी आर्मी, यूनाइटेड कुकीगाम डिफेंस आर्मी, हमार पीपुल्स कन्वेंशन- डेमोक्रेटिक सहित 11 चरमपंथी संगठनों के साथ शांति वार्ता कर रही है. लेकिन अलगाववाद की समस्या से निपट रही असम सरकार की नीतियां और शांति समझौते के लिए आत्मसमर्पण करने वाले कैडरों के पुनर्वास को लेकर सवाल उठते रहें है. इन सवालों का एक बड़ा कारण राज्य को "अशांत क्षेत्र" की श्रेणी में रखना बताया जा रहा है.

कार्बी लोंगरी एनसी हिल्स लिबरेशन फ़्रंट, पीपुल्स डेमोक्रेटिक काउंसिल ऑफ़ कार्बी लोंगरी, कुकी लिबरेशन फ़्रंट, यूनाइटेड पीपुल्स लिबरेशन आर्मी और कार्बी पीपुल्स लिबरेशन टाइगर नामक इन चरमपंथी गुटों के साथ चार सितंबर को नई दिल्ली में हुए कार्बी आंगलोंग शांति समझौता के बाद गृह मंत्री शाह ने कहा था, "यह समझौता असम और कार्बी क्षेत्र के इतिहास में सुनहरे शब्दों में लिखा जाएगा क्योंकि पांच अलग-अलग संगठनों के एक हज़ार से अधिक कैडरों ने मुख्यधारा में शामिल होने के लिए अपने हथियार डाल दिए हैं.

असम के काज़ीरंगा नेशनल पार्क से सटे कार्बी-आंगलोंग जिले में कार्बी जनजाति के विद्रोही गुटों की सक्रियता का एक लंबा इतिहास रहा है. 1980 के दशक के बाद से यह इलाक़ा हत्या, जातीय हिंसा, अपहरण और जबरन वसुली के कारण डर का केंद्र बन गया था. कार्बी जनजाति के लोगों के लिए एक अलग राज्य के गठन की मांग को लेकर क्षेत्र में कई चरमपंथी गुट बनाए गए.

 

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