अर्थशास्त्री बोले- जो पिछली सरकारों ने नहीं किया, वो मोदी सरकार के बजट में हुआ

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अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, कैसा रहा मोदी सरकार का ये बजट? Modinomics19 Budget2019

नरेंद्र मोदी सरकार ने अपनी दूसरी पारी का पहला बजट शुक्रवार को संसद में पेश किया. सरकार ने पहली बार सामाजिक उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और बीएसई की तर्ज पर सोशल स्टॉक एक्सचेंज की बात की है. सामाजिक सरोकारों से उद्यमों को जोड़ने के लिहाज से इसे अर्थशास्त्री बेहद सकारात्मक कदम मानते हैं. अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, यूं तो इस बजट में बहुत सी चीजें गुम हैं, कई योजनाओं की पूरी रूपरेखा अभी साफ नहीं की गई है.

संकट से जूझ रहे एविएशन और बाकी सेक्टर्स में एफडीआई का रास्ता खोले जाने से उन्हें संकट से उबारने में मदद मिलेगी. सरकार की ओर से 100 से अधिक श्रम कानूनों की जगह सिर्फ चार तरह के कानून लाने की व्यवस्था को एक क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है. बताया जा रहा है कि श्रम कानूनों में सुधार की पहल से पता चलता है मोदी सरकार ने उस कमजोर नस को पकड़ लिया है, जिसके चलते चीन से कई समानताएं होने के बावजूद उसके मुकाबले भारत मैन्यूफैक्चरिंग हब नहीं बन पाया.

प्रो. शर्मा कहते हैं, अगर इस बजट के सबसे बड़े फैक्टर्स की बात करें तो वह है मोदी सरकार की ओर से लेबर रिफॉर्म्स की तरफ बढ़ाए गए कदम. पिछली कई सरकारें इसको लेकर हिम्मत नहीं जुटा पाईं. मगर मोदी सरकार ने 100 से अधिक श्रम कानूनों को सिर्फ चार कानूनों में समेटने की बात की है. यह एक क्रांतिकारी कदम हो सकता है.

इससे न केवल इंस्पेक्टरराज खत्म होगा, बल्कि कल-कारखानों और कंपनियों को राहत मिलेगी. प्रो. शर्मा लेबर रिफॉर्म्स के महत्व पर कहते हैं कि इससे भारत चीन को टक्कर दे सकता है. दरअसल चीन और भारत में कई समानताएं हैं. जनसंख्या भी दोनों देशों की ज्यादा है और श्रम भी सस्ता है. ग्रोथ रेट भी अच्छा है. मगर चीन तो मैन्यूफैक्चरिंग हब बन गया, लेकिन भारत नहीं. इसका मुख्य कारण है कि चीन में सिर्फ एक लेबर लॉ है, जबकि भारत में 100 से अधिक तरह के लेबर लॉ में कंपनियां जकड़ी हुई हैं.

प्रो. द्विवेदी के मुताबिक, कर्मयोगी योजना के तहत सरकार ने एक करोड़ से नीचे टर्नओवर वाले खुदरा व्यापारियों को पेंशन देने की बात कही है. मगर इसके लिए पैसा कहां से आएगा, यह सरकार ने नहीं बताया. जहां तक सरकार अगले पांच वर्षों में 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था की बात करती है तो इसमें संदेह लगता है. वजह है कि सरकार ने कोई खाका बजट में पेश नहीं किया. सबसे बड़ा मुद्दा देश में रोजगार का है. सरकार ने रोजगार पैदा करने की बात तो बजट में की, मगर कहां और कैसे रोजगार का सृजन होगा, यह नहीं बताया.

 

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Not good

यह तो है।

Seems economist payment get to Modi budget marketing.

इन बजटों से केवल नेताओं के पेट भरते हैं, जनता आम की तरह निचोड़ी जाती है

Arthsastri kya bolenge bhagwaan hai

जो गुलाम पत्रकार पहले नहीं थे, अब हैं।

Achchha ya bura?

कौन सा अर्त्सत्री है नाम तो बता जो य बोला है उस चरन चुने है मेर को जो इस बजट को सही बताया हैं

Back year se best hai

LUND-जैसा 🍌

सरकारी अर्थशास्त्री 'अनर्थशास्त्री' के अधीन है तो फिर क्या कहेंगे

Ab 1947 me 2.7 trillion $ ki economy ke liye budget pesh karna possible nhi tha, to pichhale budget se tulna karane ki jagah aaj ke Bharat ke hisab se budget kitna satik hai , is par dhyan Dena jyada jaruri hai.

मोदी है तो मुमकिन है

5 साल में सूटकेस बदला है बजट वाला बस😄😄😄😄

Rajasthan ke Modi - Modiwadi ! Janta ke mtlab ka tha - Jnjn intjar kr rha tha! SOCIETIES RBI ke Under me di jayegi vo jn dhan luteron se Ugwahegi! Modi ne kra diya bhukhe Nangose se majaak HFCs RBI Under dal di Arthah Gundo ki vsuli krayegi Vyvstha dekhegi RBI !

Aaj tak bale ko thora jhukne bole Modi ji ab wo rengle lage.

Jhakkas🔝

पुरानी व्यवस्था को अर्थव्यवस्था से बडा कर दिया देशकाबजट

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