जब ज़ख़्म ठीक हुए, तब रहमतुल्लाह अपने बेटे को मेडिकल वीज़ा पर दिल्ली लेकर आए, जहाँ अमानुल्लाह को कृत्रिम पैर लगाए गए और उनकी नाक की प्लास्टिक सर्जरी भी हुई. सफल सर्जरी के बाद दोनों वतन वापसी की तैयारी कर रहे थे. लेकिन तब तक अफ़ग़ानिस्तान के हालात बिगड़ गए और पूरा देश हिंसा की चपेट में आ गया.
रहमतुल्लाह बताते हैं कि घर पर भी उनकी पत्नी और बच्चों के लिए अब पैसे नहीं बचे हैं. वो कहते हैं कि बस जाने की तैयारी कर ही रहे थे कि अफ़ग़ानिस्तान में सब कुछ अचानक ही हो गया. वो दुआ कर रहे हैं कि भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच उड़ानें जल्द शुरू हो जाएँ ताकि वो घर लौट सकें. पिछले महीने तालिबान की सरकार में नागरिक उड्डयन और यातायात मंत्री हमीदुल्लाह अख़ुंदज़ादा ने भारत के सिविल एविएशन महानिदेशक अरुण कुमार को चिठ्ठी लिखी और काबुल से उड़ानों को फिर से चालू करने का अनुरोध किया. लेकिन भारत के नागरिक उड्डयन मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि ये नीतिगत फ़ैसला है जिसमें कई पहलुओं को देखने की ज़रूरत है.अफ़ग़ानिस्तान से मोहिउद्दीन भी अपनी पत्नी को लेकर दिल्ली इलाज के लिए आए हैं.
इनमें से ज़्यादातर लोग लगभग हर रोज़ अफ़ग़ानिस्तान के दूतावास का चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन उनका कहना है कि वहाँ से उन्हें कोई ठोस आश्वासन नहीं मिल रहा है. जलाल ख़ान सिनुज़ादा भी इनमें से एक हैं जो अफ़ग़ानिस्तान लौटने के लिए भारतीय विदेश मंत्रालय और अफ़ग़ानिस्तान के दूतावास के चक्कर लगा रहे हैं.बीबीसी से बात करते हुए जलाल ख़ान ने बताया कि दूतावास ने उन सबसे उनके इलाज के दस्तावेज़ मांगे. वो कहते हैं कि एक महीने पहले ही उन्होंने सारे काग़ज़ात जमा कर दिए थे, लेकिन कोई कुछ नहीं कर रहा है.
इलाज कराने आए इन सभी 675 अफ़ग़ान नागरिकों की हालत परेशानी वाली इसलिए है क्योंकि इनके पास पैसे ख़त्म हो गए हैं और उनके परिवार के लोग उन्हें वहाँ से पैसे भेजें, इसकी सुविधा अब नहीं है. इसलिए ये सभी लोग दिल्ली में पहले से रह रहे अफ़ग़ान नागरिकों से मदद मांग रहे हैं.
उलझना ही चाहिए भारत कोई धर्मशाला तो है नहीं, हम अपने ही जनसंख्या कम करने के चक्कर में है,आप आने के बाद और बढ़ जाएगा और इसी कारण आपकी जिंदगी उलझ गया है ! इस्लामिक देश 57 है वहां तो जा सकते थे भारत में ही क्यों आना ? फिर आप यहां अधिकार जमाना शुरू करेंगे यह डर तो हमें है !
Jisko Apne Desh se hi Prem Na Ho Jo log desh ki Suraksha ke liye kurbani nahin diye hai itihaas gavah hai vah kabhi Shanti Purn j jivan prapt nahin kar Paya hai 20 sal Tak America Raha to vahan loktantra banaa Raha unko jaate Hi ye ek mahine ke andar gulam Ho Gaye.
BBC is speaking as the people of Afghanistan who went to england or europe as refugees, they are living life as European or Britishers, are they So the refugees are refugees either they live in india or anywhere else, so please do some genuine reporting
और ज्यादा ना उलझने, उससे पहले ही वापस भेज दो
सुवरछााप जिहाादी बीबीसी अपना अब्बा बनाके अपनी अम्मी के रूम मे जगह देदे इन हलाालााछापो कों 😠
Un ko ab pata chal gaya hoga k aatank kiya hota hai.jab daily desh ki haalat ko sunte honge.
विश्व में कुल कितने देश हैं?
वो लोग इंग्लैंड चले जाते तो अच्छी जिंदगी जीते..
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