हाई कोर्ट ने दुष्कर्म के आरोपित को किया बरी, 20 साल की सजा के आदेश रद, जानें पूरा मामला
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने दुष्कर्म के आरोपित को सुनाई गई 20 वर्ष सजा को रद कर दिया है। दरअसल स्कूल रिकार्ड के अनुसार लड़की नाबालिग थी जबकि पिता का कहना है कि उसकी उम्र 19 वर्ष है।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने माना है कि किसी दस्तावेज की स्वीकार्यता एक बात है और उसका संभावित प्रयोग अलग है। हाई कोर्ट ने यह निष्कर्ष दुष्कर्म मामले में एक लड़के को बरी करते हुए दिए हैं। लड़के को बरी करते हुए हाई कोर्ट ने स्कूल रिकार्ड में उल्लिखित पीड़ित लड़की की जन्मतिथि को खारिज कर दिया है और उन बयानों पर भरोसा किया है जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि पीड़िता के पिता ने जानबूझकर उसकी वास्तविक उम्र से दो साल कम उम्र दर्ज की थी।
कोर्ट ने कहा कि हमें लगता है कि स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र की इस केस के साथ कोई संभावित ठोस आधार नहीं बनाया जा सकता। अत: हमारा यह मत हैकि अभियुक्त/अपीलकर्ता की सजा कानूनी रूप से मान्य नहीं है। इसलिए, हम इसे रद करते हैं, आरोपित/अपीलकर्ता को बरी करते हैं। हाई कोर्ट के जस्टिस अजय तिवारी और जस्टिस पंकज जैन की खंडपीठ ने 16 जुलाई, 2019 को दोषी ठहराए जाने के आदेश और 18 जुलाई, 2019 को अतिरिक्त जिला न्यायाधीश पलवल द्वारा पारित सजा के आदेश के खिलाफ आरोपित नवीन द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिए।
आराेपित के खिलाफ पुलिस स्टेशन सदर पलवल में अपहरण और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 की अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था। जिला अदालत ने इस मामले में आरोपित को 20 साल की सजा थी। लड़की के पिता की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया था, जिसमें कहा गया था कि उसकी 14 साल की बेटी को स्कूल जाने के दौरान बार-बार प्रताड़ित किया गया था। आरोपित ने उसकी बेटी को बहकाया और उसके साथ दुष्कर्म किया। मामले की सुनवाई के दौरान पीड़िता और उसके पिता समेत दो मुख्य गवाह मुकर गए।
दोनों ने दावा किया कि कोई दुष्कर्म नहीं हुआ था और आगे कहा कि लड़की बालिग थी। उसके पिता ने दावा किया कि उसने अपनी बेटी के स्कूल में दाखिले के समय उसकी उम्र कम कर दी थी। हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने चिकित्सा साक्ष्य पर भरोसा किया, जिसमें पीड़ित के अंडरवियर पर अपीलकर्ता के वीर्य के निशान दिखाई दिए। ट्रायल कोर्ट ने आगे कहा कि स्कूल के रिकार्ड पर लड़की की उम्र के बारे में मौखिक बयान को प्राथमिकता नहीं दी जा सकती और परिणामस्वरूप, अपीलकर्ता को दोषी ठहराया गया और 20 साल की सजा सुनाई गई।
अपीलकर्ता के वकील एडवोकेट सुनील सिहाग ने हाई कोर्ट में दलील दी कि स्कूल रिकार्ड में दिखाई गई उम्र जन्म प्रमाण पत्र जैसे किसी सबूत पर आधारित नहीं थी और पिता के बयान पर दर्ज की गई थी। उन्होंने आगे तर्क दिया कि अपनी गवाही में, लड़की के पिता ने स्पष्ट रूप से कहा कि उनकी बेटी वास्तव में 19 वर्ष की थी और उसने जानबूझकर स्कूल में प्रवेश लेने के समय कम उम्र दर्ज की थी। हाई कोर्ट ने तथ्यों की जांच के बाद आरोपित को बरी करने का आदेश दिया है।