उत्तर प्रदेश: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अखिलेश यादव की 'लाल टोपी' को क्यों बताया रेड अलर्ट

  • वात्सल्य राय
  • बीबीसी संवाददाता
नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बयान के बाद उत्तर प्रदेश के सियासी संघर्ष को लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को गोरखपुर में थे. ये ज़िला उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ माना जाता है.

गोरखपुर एम्स समेत कई परियोजनाओं का उद्घाटन करने आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लंबा भाषण दिया और कई मुद्दों को छुआ, लेकिन राजनीतिक हलकों में जिस बात की सबसे ज़्यादा चर्चा हुई वो है अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी पर उनका तीखा हमला.

प्रधानमंत्री मोदी ने अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी का नाम नहीं लिया लेकिन इशारों में चोट सीधी की.

मोदी ने कहा, "याद रखिए, लाल टोपी वाले यूपी के लिए रेड अलर्ट हैं यानी ख़तरे की घंटी हैं."

अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव समेत समाजवादी पार्टी के नेता आम तौर पर लाल टोपी पहनते हैं.

अखिलेश यादव और चौधरी जयंत सिंह

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नरेंद्र मोदी बनाम अखिलेश यादव

बजरिया 'लाल टोपी' प्रधानमंत्री मोदी ने समाजवादी पार्टी के नेताओं पर गंभीर आरोप लगाए और कहा, "लाल टोपी वालों को लाल बत्ती से मतलब रहा है. लाल टोपी वालों को सत्ता चाहिए घोटालों के लिए. अपनी तिजोरी भरने के लिए. अवैध कब्ज़ों के लिए. माफ़ियाओं को खुली छूट देने के लिए. लाल टोपी वालों को सरकार बनानी है आतंकवादियों पर मेहरबानी दिखाने के लिए आतंकियों को जेल से छुड़ाने के लिए."

प्रधानमंत्री मोदी के वार पर समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने पलटवार करने में देर नहीं की. अखिलेश यादव ने कहा, "भाजपा के लिए 'रेड अलर्ट' है 'लाल टोपी' का क्योंकि वो ही इस बार भाजपा को सत्ता से बाहर करेगी."

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इसके पहले मंगलवार को ही राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख चौधरी जयंत सिंह के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले की एक रैली में अखिलेश यादव ने ऐसा ही दावा किया, "ये जनसैलाब बता रहा है कि इस बार पश्चिम में भारतीय जनता पार्टी का सूरज डूब जाएगा. किसानों का इंकलाब होगा. 22 में बदलाव होगा. कोई बदलाव रोक नहीं सकता."

अखिलेश यादव बीते कुछ महीनों से इसी तरह के दावे कर रहे हैं. अगले साल यानी 2022 की शुरुआत में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी और सहयोगी दलों को भारतीय जनता पार्टी का विकल्प बता रहे हैं.

बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस के नेता भी ख़ुद को बीजेपी के विकल्प के तौर पर पेश करते रहे हैं, लेकिन गोरखपुर से प्रधानमंत्री मोदी के समाजवादी पार्टी पर सीधे हमले के बाद ये पूछा जा रहा है कि क्या बीजेपी मान चुकी है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में उसका मुक़ाबला अखिलेश यादव के गठबंधन से ही है?

नरेंद्र मोदी, अमित शाह और योगी आदित्यनाथ

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'महाबली मोदी ने माना लड़ाई अखिलेश से'

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उत्तर प्रदेश की राजनीति पर कई दशक से क़रीबी नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव इस सवाल का जवाब देते हैं. वो कहते हैं कि अभी ज़मीनी स्थिति देखकर तो यही लगता है कि 'मुक़ाबला दो ही पार्टियों में है. हालांकि, सही तस्वीर दो हफ़्ते बाद सामने आएगी.'

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समाजवादी पार्टी पर किए गए हमले को वो अखिलेश यादव के बढ़ते क़द का असर देखते हैं.

के विक्रम राव कहते हैं, "ये अखिलेश का महत्व दिखाता है. सत्तारुढ़ महाबलशाली मोदी ये मानकर चल रहे हैं कि लड़ाई अखिलेश यादव से है. इससे अखिलेश यादव को अपने आप बल मिलता है."

साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और नरेंद्र मोदी का करिश्मा अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी पर भारी पड़ा. दोनों लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी सिर्फ़ पांच-पांच सीट जीत सकी. जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को सिर्फ़ 47 सीटें मिलीं और अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी.

हालांकि, इस साल हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में समाजवादी पार्टी के अच्छे प्रदर्शन की चर्चा देशभर में हुई. उसके बाद ही प्रदेश स्तर पर बीजेपी पर बदलाव की चर्चाएं चलीं. हालांकि, ज़िला पंचायत और ब्लॉक प्रमुख चुनाव में बीजेपी डैमेज कंट्रोल की कोशिश में दिखी, लेकिन तब पार्टी और प्रदेश सरकार को कई सवालों का सामना करना पड़ा.

अखिलेश यादव और चौधरी जयंत सिंह

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'सीधा होगा मुक़ाबला'

वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र सिंह को भी लगता है कि बीजेपी ये मान चुकी है इस बार अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से सीधा मुक़ाबला होगा.

राजेंद्र सिंह कहते हैं, "अगर आप लगातार देख रहे हों तो समझ पाएंगे कि (मुख्यमंत्री) योगी आदित्यनाथ हर जगह अखिलेश यादव और उनके गठबंधन पर हमला कर रहे हैं. ऐसा लगता है कि बीजेपी ने मान लिया है कि इन्हीं के साथ मुक़ाबला होना है."

राजेंद्र सिंह ये भी कहते हैं कि उन्हें लगता है कि बीजेपी को समाजवादी पार्टी पर हमला बोलने में फ़ायदा भी नज़र आता है. इससे उनके 'समर्थकों के एकजुट होने की संभावना बढ़ती है.'

वो कहते हैं, "पहले समाजवादी का जो आधार रहा है, उनमें अल्पसंख्यक समुदाय यानी मुसलमान अहम रहे हैं. मुझे लगता है कि इसी वजह से (बीजेपी के नेता) कैराना और मुजफ़्फ़रनगर दंगे के मामले उठाते हैं. शायद उन्हें लगता है कि इससे हिंदू वोट साथ आएंगे. "

राजेंद्र सिंह ये भी कहते हैं कि किसान आंदोलन के अलावा समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन ने भी बीजेपी की चिंता बढ़ा दी है.

वो कहते हैं, " इस गठबंधन के पक्ष में दो तीन फ़ैक्टर हैं. अब अजित सिंह दुनिया में नहीं हैं और इसे लेकर इस बार पश्चिमी यूपी में कुछ सहानुभूति है. अजित सिंह के अंतिम चुनाव (2019 लोकसभा चुनाव) मामूली वोटों से हारने को लेकर भी सहानुभूति है. फिर राष्ट्रीय लोकदल ने भाईचारा सम्मेलन बड़ी संख्या में किए हैं. इसमें जाट और मुसलमानों के अलावा जातियां भी आई हैं. "

वो कहते हैं कि ये दोनों दल प्रतीकों का इस्तेमाल भी कर रहे हैं. राम मनोहर लोहिया, चौधरी चरण सिंह के साथ बीआर आंबेडकर भी बात कर रहे हैं. इसका फ़ायदा भी मिल सकता है.

2014, 2017 और 2019 के चुनावों में बीजेपी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़ी कामयाबी हासिल की. राजेंद्र सिंह कहते हैं कि अगर समाजवादी पार्टी-राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन की ताक़त बढ़ेगी तो बीजेपी की ही मुश्किल बढ़ेगी.

वो कहते हैं कि मेरठ में मंगलवार को हुई रैली कुछ हद तक लोगों के मूड का संकेत देती है.

राजेंद्र सिंह ने कहा, " रैली में भीड़ अच्छी थी और लोग उत्साह में थे. भीड़ के दो पैमाने हैं. एक तो ये है कि भीड़ आप ले आओ भर के ट्रैक्टर ट्रॉलियों या बसों में और वो नीरस भीड़ हो. एक वो भीड़ होती है जो रेस्पॉन्स देती है. यहां नेताओं को ज़बरदस्त रेस्पॉन्स मिल रहा था. "

राजनीतिक विश्लेषकों की राय है कि ये संकेत और संदेश बीजेपी के आला नेताओं तक भी पहुंच रहे हैं और वो उसी आधार पर अपनी रणनीति बदल और बना रहे हैं.

मायावती और सतीश मिश्र

बीएसपी और कांग्रेस

लेकिन, इस सियासी लड़ाई में उत्तर प्रदेश की दो अन्य प्रमुख पार्टियां बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस कहां हैं? समाजवादी पार्टी ने 2017 में कांग्रेस और 2019 में बहुजन समाज पार्टी के साथ गठजोड़ किया था, लेकिन दोनों ही बार गठबंधन के प्रयोग कामयाब नहीं हुए. चुनाव के बाद रास्ते अलग हो गए.

हाल में, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस ने बीजेपी के अलावा समाजवादी पार्टी पर भी तीखे हमले किए हैं और समाजवादी पार्टी ने भी दोनों दलों को निशाने पर लिया है. समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने तो हाल में दावा किया कि कांग्रेस आने वाले चुनाव में कोई सीट नहीं जीत सकेगी.

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इसके जवाब में मंगलवार को कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने कहा, " हो सकता है कि अखिलेश यादव ज्योतिषी हों जो उन्हें लगता है कि कांग्रेस को ज़ीरो सीट मिलेगी. देखते हैं कि क्या होता है?"

वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव को भी यूपी में फ़िलहाल कांग्रेस की चुनौती में ख़ास दम नहीं दिखता है. हालांकि, वो बहुजन समाज पार्टी को ख़ारिज करने को तैयार नहीं हैं.

राव कहते हैं, "रेस में जैसे फ़िसड्डी आते हैं, वैसे ही कांग्रेस है. बीएसपी को तीसरे नंबर पर रहना चाहिए. दो हफ़्ते बाद सही तस्वीर साफ़ हो पाएगी."

2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सात और बीएसपी ने 19 सीटें हासिल की थीं.

वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र सिंह भी बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस की स्थिति मुश्किल में मान रहे हैं.

वो कहते हैं, "बीएसपी थोड़ा संकट में दिखती है. कांग्रेस के साथ कुछ लोगों की हमदर्दी ज़रूर है लेकिन उनके साथ वोट नहीं दिखाई दे रहे हैं. "

राजनीतिक विश्लेषक ये भी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में अभी कुछ महीने का वक़्त बाकी है और राजनीति में स्थितियां बदलने के लिए कई बार इतना समय बहुत होता है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के मौजूदा रूख से साफ़ है कि विधानसभा चुनाव के लिए वो अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी शायद चुन चुके हैं.

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