बात जायके की हो और उनका जिक्र न हो, ऐसा होना लाजिमी ही नहीं। वैसे उनका ताल्लुक पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा से भी रहा, लेकिन पत्रकारिता की दुनिया में दिल्ली के दबंग साबित हुए। यहां तक कि जब भी कुछ खास कार्यक्रमों का जिक्र होता है तो मिसाल उनके ही नाम की दी जाती है। बात हो रही है दिग्गज पत्रकार और कलमकार विनोद दुआ की, जिन्होंने शनिवार (4 दिसंबर) को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। या यूं कह लीजिए कि ऊपरवाले ने अब खबरों की दुनिया का 'जायका' छीन लिया...
विनोद दुआ के माता-पिता भले पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में डेरा इस्माइल खां से ताल्लुक रखते थे, लेकिन कलम के इस सिपाही ने दुनिया में 11 मार्च 1954 को पहला कदम रखा तो वह जमीन दिल्ली की थी। हालांकि, कहा जाता है कि 1947 में बंटवारे के दौरान उनके माता-पिता भारत आ गए थे। इसके बाद विनोद दुनिया की पढ़ाई-लिखाई दिल्ली में ही हुई। उन्होंने हंसराज कॉलेज से इंग्लिश लिटरेचर में स्नातक और परास्नातक किया।
जानकारों की मानें तो विनोद स्कूल-कॉलेज के दौर में सिंगिंग व डिबेट इवेंट में भी हिस्सा लिया था। इसके अलावा 1980 के दौर में उन्होंने थिएटर भी किया। उस वक्त श्रीराम सेंटर फॉर आर्ट एंड कल्चर के सूत्रधार कठपुतली ने बच्चों के लिए दो नाटक आयोजित किए थे, जिन्हें विनोद दुआ ने ही लिखा था। वहीं, नवंबर 1974 के दौरान युवा मंच के माध्यम से विनोद पहली बार टेलीविजन पर नजर आए। इसके बाद 1975 में युव जन कार्यक्रम ने उनकी लोकप्रियता को बढ़ा दिया। इसी साल वह कार्यक्रम जवान तरंग से जुड़े और 1980 तक इसके लिए काम करते रहे।
1981 में विनोद दुआ ने आप के लिए कार्यक्रम में एंकरिंग शुरू की, जिसे 1984 तक जारी रखा। वहीं, 1984 के दौरान दूरदर्शन की ओर से आयोजित चुनावी चर्चा ने उनके करियर में चार चांद लगा दिए। दूरदर्शन में लंबी पारी खेलने के बाद विनोद आजतक, एनडीटीवी और जीटीवी समेत कई चैनलों से जुड़े। धीरे-धीरे उनकी लोकप्रियता बढ़ती चली गई।
1996 में विनोद दुआ को रामनाथ गोयनका पुरस्कार मिला। यह अवॉर्ड हासिल करने वाले वह पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडियाकर्मी थे। 2008 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वहीं, 2016 में आईटीएम विश्वविद्यालय, ग्वालियर ने उन्हें डीलिट की उपाधि दी। इसके अलावा पत्रकारिता के क्षेत्र में लाइफटाइम अचीवमेंट के लिए साल 2017 में मुंबई प्रेस क्लब ने उन्हें रेडइंक अवॉर्ड देकर सम्मानित किया।
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