अर्दोआन की ज़िद के कारण क्या तुर्की की मुद्रा लीरा हो रही है कमज़ोर

  • ओज़्गे ओज़ेमीर
  • बीबीसी तुर्की
तुर्की

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तुर्की की राष्ट्रीय मुद्रा में इस साल डॉलर के मुक़ाबले 45 फ़ीसदी गिरावट दर्ज की गई है और इसके बावजूद तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यब अर्दोआन को देखकर ऐसा नहीं लगता है, उन्हें कोई ख़ास फ़र्क पड़ा.

लीरा तुर्की की नेशनल करेंसी है. इस सप्ताह लीरा, डॉलर के मुक़ाबले रिकॉर्ड स्तर पर नीचे गई लेकिन तुर्की के राष्ट्रपति अब भी अपने पुराने रवैये को बनाए हुए हैं. वह अब भी कम ब्याज़ दरों के ज़रिए अपनी 'आर्थिक स्वतंत्रता' की लड़ाई जारी रखे हुए हैं.

ऐसे में सवाल ये उठ रहे हैं कि आख़िर अर्दोआन एक ऐसे मॉडल को क्यों बढ़ावा दे रहे हैं, जिसके संदर्भ में महंगाई, बेरोज़गारी और ग़रीबी को लेकर आलोचक पहले ही चेतावनी दे चुके हैं और तुर्की के लोगों के लिए इसके क्या मायने हैं?

अर्दोआन

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अपरंपरागत नीति

तुर्की की राष्ट्रीय मुद्रा लीरा में डॉलर के मुक़ाबले आई इस व्यापक गिरावट का एक सबसे प्रमुख कारण तुर्की के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए कम ब्याज़ दर रखने की उनकी अपरंपरागत आर्थिक नीति है.

इस गिरावट के साथ ही लीरा उभरते हुए बाज़ारों में सबसे ख़राब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बन गई है.

कई अर्थशास्त्री मानते हैं कि अगर मुद्रास्फीति बढ़ रही है तो आप ब्याज दरें बढ़ाकर इसे नियंत्रित कर सकते हैं. लेकिन अर्दोआन ब्याज दरों में बढ़ोतरी को एक ऐसी बुराई के तौर पर देखते हैं जो अमीर को और अमीर जबकि ग़रीब को और ग़रीब बनाती है.

एक स्थानीय फल के बाज़ार में खड़े सेविम यिल्दिरिम ने बीबीसी से कहा, "सब कुछ बहुत महंगा है."

उन्होंने कहा, "क़ीमत इतनी अधिक है कि इस क़ीमत पर एक परिवार के लिए खाना पका पाना भी असंभव है."

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तुर्की में वार्षिक मुद्रास्फीति दर 21 फ़ीसदी से पार कर गई है लेकिन तुर्की के सेंट्रल बैंक ने ब्याज दरों को 16 फ़ीसदी से घटाकर 15 फ़ीसदी कर दिया है. इसके साथ ही एक साल में यह तीसरा मौक़ा है, जब ब्याज दरों में कटौती की गई है.

अर्दोआन मानते हैं कि ऊंची ब्याज दरें महंगाई के लिए ज़िम्मेदार हैं. हालांकि, ये बात पारंपरिक आर्थिक समझ के विपरीत है.

लेकिन इसके बावजूद अर्दोआन ने ब्याज़ दरें कम रखने का फ़ैसला किया है.

दुनिया भर में महंगाई दर बढ़ रही है और केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में वृद्धि करने की बात कर रहे हैं लेकिन तुर्की में नहीं, क्योंकि अर्दोआन का मानना है कि एक दिन मुद्रास्फ़ीति कम हो जाएगी.

साल 2019 से अब तक अर्दोआन इसका विरोध करने वाले केंद्रीय बैंक के तीन गवर्नरों को उनके पदों से हटा चुके हैं. इसी हफ़्ते उन्होंने तुर्की की मुद्रा लीरा में ऐतिहासिक गिरावट के बाद अपने वित्त मंत्री लुत्फे एल्वान को उनके पद से हटा दिया है.

साथ ही नूरेद्दीन नेबती को नया वित्त मंत्री बना दिया गया है.

बढ़ती क़ीमतें

तुर्की की अर्थव्यवस्था खाद्य पदार्थों से लेकर वस्त्रों के उत्पादन तक के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर करती है. ऐसे में लीरा के मुक़ाबले में डॉलर की क़ीमत के बढ़ने से उपभोक्ता उत्पादों पर इसका सीधा असर होता है.

तुर्की के व्यंजनों में टमाटर ख़ासतौर पर इस्तेमाल होता है. टमाटर उगाने के लिए इम्पोर्टेड खाद और गैस ख़रीदने की ज़रूरत होती है.

किसान

अंताल्या के साउथ कोस्ट एग्रीकल्चर हब के चैंबर ऑफ़ कॉमर्स के मुताबिक, बीते साल की तुलना में, इस साल अगस्त में टमाटर की कीमतों में 75% की वृद्धि हुई थी.

इस्तांबुल से तीन घंटे ड्राइव करके एक छोटा सा शहर पामुकोवा आता है. यहाँ अंगूर की खेती करने वाली सादिय कलेसी पूछती हैं कि आख़िर हम पैसे कैसे कमाएं?

वह कहती हैं, "हम इन्हें सस्ते में बेचते हैं, लेकिन ख़रीदना महंगा पड़ता है."

वह डीज़ल, खाद और सल्फ़र की उच्च लागत का हवाला देते हुए नाराज़गी ज़ाहिर करती हैं.

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एक अन्य किसान फ़ेराइड टुफ़ान शिकायत करती हैं कि अब उनके पास अपनी क़ीमती चीज़ें बेचने के अलावा दूसरा कोई ज़रिया नहीं है. वह कहती हैं, "अपनी ज़मीन और अंगूर के बाग बेचकर ही हम अपना क़र्ज़ चुका सकते हैं लेकिन अगर हम सारा कुछ बेच ही देंगे तो हमारे पास बचेगा क्या."

तुर्की में मुद्रा इतनी अस्थिर हो चुकी है कि उसकी क़ीमत हर रोज़ बदल रही है. अकेले उत्पादकों की बात करें तो उनके लिए मुद्रास्फीति की दर 50 फ़ीसदी से अधिक है.

एक बाज़ार में ख़रीदारी कर रहे हकन अयरान ने बताया कि उन्होंने अपने हर ख़र्च में कटौती की है.

सोशल मीडिया पर ऐसी कई तस्वीरें हैं, जिनमें एक ही चीज़ की क़ीमत के बढ़े दाम के बाद अंतर दिखाया जा रहा है.

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तुर्की के इज़मिर शहर में एक बेकरी ने अपने बेकरी उत्पाद की बढ़ी क़ीमतों को अपने उपभोक्ताओं को समझाते हुए एक पर्ची लगा रखी है.

इसमें बेकरी की चीज़े बनाने में इस्तेमाल होने वाले आटा, तेल, तिल जैसी चीज़ों की क़ीमतों का ब्यौरा दिया हुआ है. साथ ही इस पर्चे पर नीचे की ओर एक संदेश भी लिखा हुआ है- अल्लाह हमारे साथ रहे.

विदेशी मुद्रा ऋण, निजी क्षेत्र के लिए एक समस्या है. ज़्यादातर कंपनियां लीरा की अस्थिरता के कारण और महंगाई की वजह से उत्पाद को बेचने के स्थान पर उसकी जमाखोरी को अधिक फ़ायदे का सौदा मानती हैं.

इससे ग़रीबी और बढ़ती है. साथ ही आय का अंतर भी.

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तुर्की के युवाओं में ग़ुस्सा

पेट्रोल स्टेशन और स्थानीय सरकारी कार्यालयों के बाहर सस्ते दामों में रोटी लेने के लिए क़तारें लगती हैं.

वहीं विपक्षी पार्टियां मध्यावधि चुनाव पर ज़ोर डाल रही हैं. उन्होंने रैलियां करने का भी आह्वान किया है. इससे पहले अभी जब 23 नवंबर को एक दिन के भीतर लीरा में 18% की गिरावट आई थी तो तुर्की में प्रदर्शन हुए भी थे.

लेकिन तुर्की के युवाओं की नाराज़गी ट्विटर, फ़ेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर साफ़ दिखाई पड़ती है.

एक यूट्यूब चैनल के एक रिपोर्टर से एक युवा ने कहा, "मैं इस सरकार से बिल्कुल भी ख़ुश नहीं हूँ. मुझे इस देश में अपना कोई भविष्य नहीं दिखाई देता."

तुर्की में हर पाँच में से एक युवा के पास काम नहीं है. महिलाओं और लड़कियों के मामले में यह आँकड़ा और भी बुरा है.

वीडियो कैप्शन,

तुर्की में अर्दोआन के फ़ैसले के ख़िलाफ़ महिलाएं सड़कों पर आईं

तुर्की के युवा अपने जीवन की तुलना दूसरे देशों में रहने वाले युवाओं से करते हैं और जो उन्हें दिखता है वो उससे हताश हैं.

यह वह पीढ़ी है, जो तुर्की की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है.

साल 1990 के आख़िरी दौर से लगभग 90 लाख बच्चे तुर्की में पैदा हुए हैं. जो साल 2023 में यानी अगले चुनाव में मतदान करने के योग्य हों जाएंगे और अभी युवाओं में जो ग़ुस्सा और हताशा है, वह अर्दोआन और उनकी पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है.

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अनुमान लगा पाना असंभव सा है

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साल 2008 के वित्तीय संकट के बाद सत्ताधारी पार्टी को मिली आंशिक कामयाबी के पीछे विदेशों से मिली भारी आर्थिक सहायता थी.

लीरा की स्थिति में सुधार के लिए अर्दोआन से नए आर्थिक मॉडल की उम्मीद कम ही है.

तुर्की में मुख्य रूप से उत्पादन, आयात पर निर्भर रहता है. वहीं अर्थव्यवस्था मुद्रा के उतार-चढ़ाव की स्थिति पर.

इस अनिश्चितता के बीच अर्थशास्त्री अरदा टुनका का कहना है कि "ऐसा पहली बार है, जब हम आर्थिक सिद्धांत से पूरी तरह इतर एक मॉडल का इस्तेमाल कर रहे हैं. यहाँ तक कि जब संकट भी था तब भी हम कम से कम अनुमान लगा सकते थे कि अब आगे क्या होगा लेकिन मौजूदा स्थिति में अब यह संभव नहीं लगता."

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