रूस यूक्रेन बॉर्डर पर टैंक क्यों खड़े कर रहा है, क्या है उसका इरादा
- सारा रेंसफोर्ड
- बीबीसी संवाददाता
जब बीते साल अप्रैल में रूस ने ये चाहा कि उसकी गतिविधियां अमेरिका की नज़र में आए तो उसने यूक्रेन की सीमा की तरफ़ टैंक भेज दिए.
रूस की ताक़त का ये प्रदर्शन काम कर गया. राष्ट्रपति जो बाइडेन ने राष्ट्रपति पुतिन से फ़ोन पर बात की और फिर जून में जेनेवा में पुतिन और बाइडन के बीच मुलाक़ात भी हो गई.
उस मुलाक़ात में यूक्रेन को लेकर दोनों नेताओं के बीच जो भी सहमति बनी हो, लेकिन इस दौरान कुछ तो ऐसा हुआ, जहां गड़बड़ हो गई है.
हाल के दिनों में रूसी टैंक फिर से पश्चिमी यूक्रेन की तरफ़ बढ़ रहे हैं और इसके मद्देनज़र अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेंसियां गंभीर चेतावनियां दे रही हैं. यहां तक कहा जा रहा है कि संघर्ष सीमा पार तक पहुंच सकता है.
रूस यूक्रेन में अलगाववादी ताक़तों का समर्थन तो करता है लेकिन उनकी मदद करने से इनकार करता रहा है. रूस ऐसी चिंताओं को पश्चिमी देशों का पागलपन कहकर ख़ारिज करता है. बहुत से रक्षा विश्लेषक भी ये मानते हैं कि रूस के सीमा पार करने और संघर्ष को बेतहाशा बढ़ा देने के पीछे कोई ठोस कारण नहीं है.
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इसके उलट, विश्लेषक ये मानते हैं कि रूस ये संकेत दे रहा है कि वो यूक्रेन को लेकर अपनी लाल रेखा को पार नहीं होने देगा और वो यूक्रेन को नेटो में शामिल होने से रोकने के लिए कुछ भी करेगा.
आर डॉट पॉलीटिक की राजनीतिक विश्लेषक तातियाना स्तानोवाया बीबीसी से कहती हैं, "मुझे लगता है कि ये पुतिन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. उन्हें लगता है कि पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को ये उम्मीद दी है कि वो नेटो का हिस्सा बन सकता है."
"प्रशिक्षण, हथियारों की खेप, ये सब पुतिन के लिए ऐसे है जैसे सांड को लाल झंडा दिखाना. उन्हें लगता है कि अगर वो आज कार्रवाई नहीं करेंगे तो कल यूक्रेन में नेटो का अड्डा बन जाएगा. उन्हें इसे रोकना होगा."
यूक्रेन की नेटो में शामिल होने की इच्छा कोई नई नहीं है. ना ही इसे लेकर रूस का विरोध नया है. रूस को लगता है कि यूक्रेन अगर नेटो में शामिल हुआ तो ये सुरक्षा संगठन उसके दरवाज़ें तक पहुंच जाएगा.
रूस आजकल यूक्रेन के तुर्की में बने ड्रोन के इस्तेमाल को लेकर भी असहज है. यूक्रेन की सेना ने पूर्वी यूक्रेन में रूस समर्थक अलगाववादियों के ख़िलाफ़ ड्रोन हमले किए हैं. वहीं क्राइमिया के पास परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम अमेरिकी बमवर्षक विमानों की उड़ानों ने भी रूस को परेशान किया है.
यूक्रेन में सात साल से चल रहे संघर्ष को समाप्त करने के लिए हुए मिंस्क समझौते को लेकर भी चिंताएं हैं. माना जा रहा है कि ये समझौता इतना विवादित है कि इसे लागू करना आसान नहीं होगा और नए समझौते में यूक्रेन को कुछ और राहतें दी जा सकती हैं.
पुतिन क्या संकेत देना चाहते हैं?
अप्रैल में रूस को ये लगा था कि सैन्य ताक़त दिखाने की रणनीति काम कर रही है और अब वो इसे ही दोहरा रहा है.
राष्ट्रपति पुतिन ने बीते सप्ताह रूसी राजनयिकों से कहा था, "हमारी हालिया चेतावनियों को सुना गया है और प्रभाव देखने लायक रहा है. तनाव बढ़ गया है."
पुतिन ने तर्क दिया कि तनाव बढ़ने से पश्चिमी देश रूस को नज़र में लाते हैं और उसे नज़रअंदाज़ नहीं करते हैं.
मॉस्को स्थित थिंक टैंक आरआईरएसी से जुड़े आंद्रेई कोर्तुनोफ़ कहते हैं, "यदि यूक्रेन के नज़दीक सैन्य गतविधियां आक्रामकता से दिख रही हैं, तो इसका मतलब ये नहीं है कि सीधी सैन्य कार्रवाई होने जा रही है, असल में ये संदेश है जो पुतिन देना चाहते हैं."
यूक्रेन के लिए ये संदेश है कि कुछ ऊंटपटांग न करे, जैसे की डोनबास पर फिर से नियंत्रण करने की कोशिश करना.
कोर्तुनोफ़ मानते हैं कि पश्चिमी देशों के लिए रूस का संदेश ये है कि यूक्रेन में नेटो की ताक़त न पहुंचाई जाए जैसे की नए तरह के उन्नत हथियार.
इसी सप्ताह रूस की बाहरी इंटेलिजेंस एजेंसी एसवीआर ने यूक्रेन पर बयान देते हुए 2008 के जॉर्जिया युद्ध का ज़िक्र किया है.
यूक्रेन को याद दिलाया गया कि जब जॉर्जिया के राष्ट्रपति मिख़ाइल साकाशविली ने साउथ ओसेटिया पर नियंत्रण करने के लिए रूस के साथ युद्ध छेड़ दिया तो उन्हें कितनी भारी क़ीमत चुकानी पड़ी थी. रूस जॉर्जिया के अलगाववादी क्षेत्र साउथ ओसेटिया का समर्थन करता है.
तातियाना स्तानोवाया तर्क देती हैं कि जो जॉर्जिया में हुआ था वह यूक्रेन में भी हो सकता है. वो कहती हैं, "लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि रूस इसकी तैयारी कर रहा है, या इससे पीछे हटने का कोई रास्ता नहीं है. मुझे लगता है कि अभी ये सिर्फ़ एक विकल्प है ना कि पक्का निर्णय."
'हम हमला नहीं कर रहे हैं'
रूसी सैनिकों के जमावड़ों को लेकर अमेरिका की चिंताओं को पहले स्वयं यूक्रेन ने ख़ारिज किया था लेकिन अब वो भी अब चिंताओं में शामिल हो गया है.
यूक्रेन की मिलिट्री इंटेलिजेंस के प्रमुख काइराइलो बूडानोफ़ के मुताबिक इस समय यूक्रेन के क़रीब 90 हज़ार रूसी सैनिक तैनात हैं. हालांकि ये संख्या बीते साल मार्च-जून में हुए तनाव के समय की तैनाती से कम है.
उन्हें लगता है कि रूस अगले साल कई दिशाओं से आक्रमण कर सकता है.
वहीं शुक्रवार को यूक्रेन के राष्ट्रपति ने ये स्पष्ट किया कि उनका देश डोनबास में घुसने की किसी योजना पर काम नहीं कर रहा है.
हालांकि अन्य लोग इसे लेकर आशंकित हैं.
कोर्तुनोफ़ तर्क देते हैं, "रूस निश्चित तौर पर ये संदेश देना चाहेगा कि यदि उसे लड़ने के लिए मजबूर किया गया तो वो लड़ेगा. लेकिन मैं ये नहीं समझ पा रहा हूं कि यूक्रेन के ख़िलाफ़ सीधे सैन्य आक्रमण से क्या हासिल हो पाएगा."
"नतीजा जो भी हो लेकिन युद्ध में जो नुक़सान होगा वो इसके किसी भी फ़ायदे पर हावी होगा."
ऐसे में ये संभव है कि पुतिन बस तीर चलाकर देख रहे हों.
सुरक्षा विश्लेषक मार्क गेलियोटी ने अपने पॉडकास्ट इन मॉस्कोज़ शैडो में कहा कि, "मुझे लगता है कि ये रूस की आपात स्थिति की योजना है."
वो कहते हैं कि रूस हर तरह के मौके बना रहा है और अभी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है.
लेकिन उन्हें इस बात पर शक है कि रूस सीधा संघर्ष चाहता है. इससे रूस पर प्रतिबंध बढ़ेंगे और पश्चिमी देशों के साथ उसके रिश्ते टूट जाएंगे.
मार्क गेलियोटी चेताते हैं, "यूक्रेन में युद्ध रूस की सरकार की वैधता और एकजुटता पर सवाल खड़े कर देगा. अच्छी बात ये है कि मुझे ये लगता है कि रूस की सरकार भी इस बात को समझती है."
मार्क मानते हैं कि रूस ये परिस्थिति को और ख़राब न करने के कारण खोज लेगा.
वार्ता के लिए टैंक?
ऐसे संकेत भी हैं कि रूस अपने टैंकों के ज़रिए अमेरिका पर वार्ता के लिए दबाव बनाना चाहता है और दोनों देशों के नेताओं के बीच बैठक का इच्छुक है.
ये कूटनीति का ख़तरनाक तरीका है लेकिन पुतिन के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है.
कोर्तुनोफ़ तर्क देते हैं, "पुतिन और बाइडन के बीच बैठक में कोई भी ठोस वादा नहीं करेगा लेकिन इस बात को लेकर ज़रूर सहमति बन सकती है कि यूक्रेन की सैन्य मदद के लिए अमेरिका किस हद तक जा सकता है. ऐसा होना असंभव नहीं है."
रूस से जुड़े सूत्रों के कहना है कि ये वार्ता अगले कुछ सप्ताह के भीतर भी हो सकती है, हो सकता है कि पहले बैठक वर्चुअल ही हो. हालांकि व्हाइट हाऊस ने अभी इसकी कोई पुष्टि नहीं की है.
ततानिया स्तानोवाया कहती हैं, "पुतिन को भले ही ये उम्मीद हो कि वो बाइडेन के साथ समझौता कर सकते हैं, वो जल्दबाज़ी में कोई क़दम नहीं उठाएंगे. लेकिन अगर उन्हें ये लगा कि सब बर्बाद हो गया है तो वो इतना बुरा भी कर सकते हैं जिसकी हम कल्पना भी शायद न कर पाएं."
वो कहती हैं कि जब तक रूस के नेता पुतिन को ये उम्मीद है चीज़ें इतनी ख़राब नहीं हो पाएंगी.
(रूस की सरकार ने सारा रेंसफोर्ड को सुरक्षा के लिए ख़तरा बताते हुए अगस्त के अंत में देश से निकाल दिया था.)
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