मुंबई में क्रूज जहाज पर स्वापक नियंत्रण ब्यूरो यानी एनसीबी छापे में मादक पदार्थ रखने के आरोप में गिरफ्तार लोगों के खिलाफ चल रही जांच का रुख अब उल्टी दिशा में मुड़ गया लगता है। अब उसी मामले में खुद एनसीबी के वरिष्ठ अधिकारी फंसते जा रहे हैं। एनसीबी के क्षेत्रीय निदेशक समीर वानखेड़े पर उनके ही एक गवाह ने आरोप लगाया है कि वे अभिनेता शाहरुख खान से पच्चीस करोड़ रुपए वसूलना चाहते थे। इसके लिए वानखेड़े के दो करीबी लोगों ने शाहरुख खान के प्रबंधक से संपर्क भी किया था। जिस व्यक्ति ने हलफनामा दायर कर और मीडिया के सामने यह बात कही है, वह दरअसल केपी गोसावी का अंगरक्षक था और उसे भी एनसीबी ने क्रूज मामले में गवाह बनाया था। गोसावी की एनसीबी निदेशक से निकटता प्रमाणित हो चुकी है। अब समीर वानखेड़े के खिलाफ सतर्कता विभाग जांच करने जा रहा है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता नवाब मलिक ने भी वानखेड़े पर धोखाधड़ी सहित अनेक गंभीर आरोप लगाए हैं। इस तरह अब स्पष्ट होने लगा है कि एनसीबी ने दुर्भावनावश या पैसा वसूलने की नीयत से मादक पदार्थ रखने के आरोप में कुछ युवाओं को गिरफ्तार किया।

इस मामले में अभिनेता शाहरुख खान का बेटा आर्यन खान भी गिरफ्तार है और उसे लेकर लगातार खबरें आती रही हैं। हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि आर्यन के पास से कोई मादक पदार्थ बरामद नहीं हुआ। कुछ पुराने संदेशों की वजह से उसे शक के दायरे में लिया गया और पूछताछ चल रही है। उस पर ऐसा कोई गंभीर आरोप नहीं है कि जमानत न दी जाए, मगर एनसीबी किसी न किसी तरह उस पर अपना शिकंजा कसे हुए है। इसलिए भी एनसीबी की कार्यशैली को लेकर सवाल उठते रहे हैं। एनसीबी निदेशक पर जो आरोप लगे हैं, उनमें कितना दम है, यह तो सतर्कता विभाग की जांच के बाद ही सही-सही पता चल सकेगा, मगर इस प्रकरण से एक बार फिर साबित हो गया है कि इस तरह की निष्पक्ष काम करने वाली एजेंसियां भी बेदाग नहीं हैं। क्रूज मादक पदार्थ मामला अब राजनीतिक रंग ले चुका है। महाराष्ट्र सरकार और दूसरे कई दल भी इसमें कूद पड़े हैं और वे साफ कह रहे हैं कि एनसीबी ने यह छापा केंद्र के इशारे पर मारा और जानबूझ कर शाहरुख खान के बेटे सहित तेरह लोगों को गिरफ्तार किया। उस गिरफ्तारी में जिन लोगों को गवाह बनाया गया उनमें से कुछ भाजपा के कार्यकर्ता बताए जाते हैं।

अपने ऊपर लगे आरोपों की सफाई में वानखेड़े का कहना है कि वे निर्दोष हैं और उन्होंने वही किया, जो उन्हें ऊपर से आदेश मिला था। यह ऊपर से आदेश वाली बात एनसीबी की निष्पक्षता पर स्वत: सवाल खड़े कर देती है। हालांकि यह छिपी बात नहीं है कि जांच एजेंसियों को बिना किसी दबाव में आए और निष्पक्ष तरीके से काम करने की आजादी की बात सभी सरकारें करती हैं, मगर ये संस्थाएं वास्तव में स्वतंत्र कभी नहीं रह पार्इं। सत्ता पक्ष अपने स्वार्थ के लिए उनका इस्तेमाल सदा से करता रहा है। अपने विरोधियों पर शिकंजा कसने के लिए इन एजेंसियों का खुलेआम उपयोग होता रहा है। चाहे वह केंद्रीय जांच ब्यूरो हो, प्रवर्तन निदेशालय या आयकर विभाग, सत्ता पक्ष इन्हें हथियार की तरह उपयोग करता रहा है। मगर इससे इन संस्थाओं की जो साख लगातार गिरती गई है और इनके शिकंजे में फंस कर जो कई लोग बेवजह शरीरिक-मानसिक प्रताड़ना झेलते हैं, उसकी भरपाई कैसे होगी।