Move to Jagran APP

जानिए लड्डुओं के लज्जतदार किस्से, भारतीय समाज में कई शुभ अवसर पर इनका होता है आदान-प्रदान

लड्डुओं बिना हर त्योहार अधूरा है। जब पर्व हो दीवाली का तब तो भगवान गणेश की पूजा में लड्डू विशेष स्थान रखते हैं। लज्जत भरे इस गोल-मटोल आकर्षण की दुनिया दीवानी है। तमाम तरह से तैयार किए जाने वाले लड्डुओं की कहानी बता रही हैं रेणु जैन...

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Tue, 26 Oct 2021 04:55 PM (IST)Updated: Tue, 26 Oct 2021 04:58 PM (IST)
जानिए लड्डुओं के लज्जतदार किस्से, भारतीय समाज में कई शुभ अवसर पर इनका होता है आदान-प्रदान
शहर दर शहर लड्डू अपने अलग रंग, रूप और स्वाद में रंगता जाता है

रेणु जैन, इंदौर। त्योहार हों या कोई खुशखबरी, बात जब मुंह मीठा कराने की हो, तो भले ही चलन में कुछ भी हो जाए, लड्डुओं की लज्जत अपनी जगह कभी नहीं खो सकती। भारतीय समाज में कई शुभ अवसर पर लड्डुओं का आदान-प्रदान होता है। सामान्यत: पीले रंग का लड्डू ऐसी आभा लिए होता है कि सारे मिष्ठान एक तरफ हो जाते हैं। लड्डू ही एक ऐसी मिठाई है जो कई तरह से तैयार की जाती है। सैकड़ों प्रकार से बनाए जाने वाले लड्डुओं की एक विशेषता यह भी है कि शहर दर शहर लड्डू अपने अलग रंग, रूप और स्वाद में रंगता जाता है। गोल-गोल लड्डू का इतिहास भी कई रोचक और दिलचस्प कथाओं से भरा है। मानव इतिहास का अध्ययन करने वाले बताते है कि ईसा पूर्व चौथी सदी में लड्डू का आविष्कार हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति के महानुभव सुश्रुत ने किया था। उस समय घी, तिल, गुड़, शहद, मूंगफली जैसी चीजों को कूटकर गोल आकार के पिंड बनाए जाते थे जो मरीजों के इलाज में इस्तेमाल होते थे। लड्डू दवा के तौर पर दिए जाएं या मिठाई के रूप में, इसको चाहने वालों की कमी नहीं है।

loksabha election banner

सेहत व स्वाद का साथी

लड्डू शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द लड्डुका से हुई है जिसका अर्थ होता है -छोटी गेंद। लड्डुओं के प्राचीन इतिहास में यह बात भी दर्ज है कि चोल वंश के शासन के दौरान नारियल के लड्डू बहुत पसंद किए जाते थे। सूखा नारियल, आटा, गुड़, सूखे मेवे जैसी चीजों के कारण लड्डू लंबे समय तक खाने योग्य रहते थे। लंबी-लंबी यात्राओं पर जाने वाले व्यापारी तथा युद्ध के मैदानों में जाने वाले सैनिक अपने साथ लड्डू ले जाते थे जो उन्हें भूख से तृप्ति भी देते और साथ ही ऊर्जा भी। इससे लड्डू बाहरी दुनिया के संपर्क में भी आता गया और लड्डू बनाने के नए नए तरीके जुड़ते गए। हर कोई अपनी जरूरत स्वाद और सामग्री की उपलब्धता के अनुसार लड्डू की रेसिपी में बदलाव लाता रहा। ब्रिटिश जमाने में चीनी के प्रचलन के कारण लड्डुओं में भी मिठास के लिए उसका प्रयोग होने लगा। कहते है भारत में लड्डू बनाने में सबसे ज्यादा व नए-नए पारसियों ने किए। खजूर, अंजीर, सूखे मेवे यहां तक कि उन्होंने सूखे फल, सब्जियों के बीज तक डालकर लड्डुओं को और अधिक लज्जतदार बनाया। प्राचीन भारत मे तिल, शहद भी डालकर लड्डू को नया स्वाद दिया गया। तब इम्युनिटी के रूप में रोज एक लड्डू खाने की सलाह भी दी जाने लगी। एक अच्छी बात यह भी जुड़ गई कि महीनों खराब नहीं होने वाला लड्डू नाश्ते का जिसे नायाब साथी भी बन गया।

मानेर से इंग्लैंड तक पहुंचा जायका

नुक्ती(बूंदी) के लड्डू का नाम सुनकर भला किसे मुंह में पानी नहीं आता! कहते हैं पहली बार मुगल बादशाह आलम दिल्ली से बूंदी के लड्डू लेकर मनेर शरीफ (पटना) पहुंचे थे। वहां जब लड्डू खाया गया तो सभी लड्डुओं के दीवाने हो गए। फिर शाह आलम दिल्ली से अपने कारीगर लेकर मनेर पहुंचे तथा वहां स्थानीय कारीगरों को लड्डू बनाना सिखाया। एक मजेदार तथा रोचक बात यह भी थी कि शाह आलम पहली बार इमली के पत्तों से बने दोने में लड्डू लकर पहुंचे थे। आज आलम यह है कि मनेर के कारीगर लड्डू बनाने में इतने माहिर हो गए कि इनके बनाए लड्डुओं के दीवाने अमेरिका, इंग्लैंड, दुबई के अलावा कई अन्य देशों में भी हो गए। इन लड्डुओं का स्वाद अंग्रेजों को ऐसा भाया कि उन्होंने मनेर के लड्डुओं को विश्व प्रसिद्ध लड्डू का प्रमाणपत्र देकर नवाजा। कहते हैं मनेर के लड्डू का जायका कई अभिनेताओं की भी पसंद है। कई नामी हस्तियां हैं जो तीज-त्योहार, शादियों तथा अन्य समारोह का शुभारंभ आर्डर देकर बनवाए गए इन्हीं लड्डुओं से करते हैं।

मिला शुद्धता का प्रमाणपत्र भी

पटन्स के महावीर मंदिर में हनुमान जी को लगाया जाने वाले प्रसाद (लड्डू) को भारत सरकार के खाद्य मंत्रालय से शुद्धता की गारंटी के लिए 'ब्लेजफुल हाइजीन आफरिंग टू गाडÓ का प्रमाण पत्र दिया है। पटना के इस महावीर मंदिर में देसी घी, बेसन, मेवे से बने लड्डू नैवेद्यम् का भोग भगवान हनुमान को लगाया जाता है। तिरुपति से आए खास कारीगर इन लड्डुओं को बनाते हैं।

मेहमानों का स्वागत बस लड्डुओं से

वैसे तो राजस्थान अपने रंग-बिरंगे पहनावे के अलावा अन्य कई चीजों के लिए भी मशहूर है। राजस्थान के सोजत को विश्व प्रसिद्ध मेंहदी नगरी भी कहा जाता है। यहां विदेश से कई व्यापारी मेंहदी खरीदने आते हैं। मेहमान हो या व्यापारी, जो भी यहां आते हैं मेहमाननवाजी में माहिर सोजतवासी मेंहदी के साथ यहां के स्पेशल गाल के लड्डू भी देते है। ये लड्डू देसी गेंहू के कण या मैदे में घी, मावा, शक्कर, इलायची, सूखे गुलाब आदि से तैयार किए जाते हैं। यहां के लड्डू मुंबई, हैदराबाद, चेन्नई, दिल्ली के साथ अमेरिका तथा दुबई तक अपनी छाप छोड़ चुके हैं।

मंदिर जहां बनते है करोड़ों लड्डू

वैसे तो मंदिर में प्रसाद की परंपरा से हम सब वाकिफ हैं। भारत के विख्यात मंदिर में शामिल तिरुपति बालाजी में प्रतिदिन तीन लाख लड्डू तैयार होते हैं। कहते हैं इस मंदिर में लड्डू का इतिहास 300 साल से भी ज्यादा पुरारा है। खास बात यह है कि आसानी से कम कीमत में मिलने वाला यह लड्डू कई दिनों तक खराब नहीं होता। इन लड्डुओं को बनाने की जगह को खुफिया रसोई या पोटू कहते हैं। यहां कुछ खास लोगों को ही जाने की अनुमति है। इस मंदिर के प्रसाद का लड्डू पाने के लिए एक सुरक्षा दायरे से होकर गुजरना पड़ता है। हैरानी की बात यह है कि 174 ग्राम का यह लड्डू अपने आप में बड़ा खास होता है। इसे बेसन, किशमिश, मक्खन, इलायची और काजू से तैयार किया जाता है। कई लोग इसकी रेसिपी से इस लड्डू को बनाने का प्रयास कर चुके पर तिरुपति मंदिर के लड्डू जैसा कभी बना नहीं पाए।

विश्व रिकार्ड में दर्ज लड्डू का नाम

दुनिया का सबसे बड़ा लड्डू आंध्र प्रदेश स्थित तपेश्वर के निवासी बी. बी. एस. मल्लिकाजुर्न राव ने बनाया था। 29,465 किलोग्राम का एक लड्डू बनाकर उन्होंने सबको अचंभित किया था। 6 सितंबर 2016 को उन्होंने यह स्वादिष्ट रिकार्ड दर्ज किया।

लड्डू की होली निराली

वैसे तो सभी रंगों से होली खेलते है। रंगों का यह त्योहार सभी गिले-शिकवे भुलाने के लिए भी मशहूर है। बरसाना, गोकुल और वृंदावन में होली की मस्ती देखने देश विदेश से लोग आते हैं। पर क्या इस बात पर यकीन करेंगे कि द्वापर युग से ही बरसाना में लड्डुओं से होली खेली जाती है। जी हां, इस अनोखी होली खेलने के दौरान बरसाना में लड्डुओं की डिमांड बढ़ जाती है। उन दिनों यहां टनों के हिसाब से लड्डू बनाए जाते है। ये लड्डू बूंदी, बेसन तथा मावे के होते है।

फायदे लड्डुओं के

वैसे तो हर तरह के लड्डू का अपना स्वाद होता है पर सर्दियों का मौसम आते ही घर के बड़े-बुजुर्ग कहते सुने जा सकते है कि गोंद तथा सूखे मेवे के लड्डू खाने से शरीर मे गर्माहट, ताकत तथा स्फूर्ति बनी रहती है। गर्भवती व स्तनपान करवाने वाली मांओं को भी गोंद के लड्डू खिलाने की सलाह दी जाती है। आमतौर पर गोंद, सूखे मेवे, घी गुड़, शक्कर जैसी चीजें को लड्डू में डालने से लड्डू बहुत पौष्टिक हो जाते है। ठंड में इसकी एक तय मात्रा में सेवन करने से शरीर मे रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। हड्डियां मजबूत करने के साथ याद्दाश्त भी तेज रहती है। मौसमी बीमारियां आपसे दूर रहती हैं। जोड़ों के दर्द में बुजुर्ग लड्डू में मेथी दाने भी डालते हैं जो उन्हें दर्द से निजात देते हैं। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.