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कोविड के प्रतिरोधियों की तलाश, कोरोना काल में लोगों पर अलग-अलग प्रभावों के चलते हो रही शोध

कुल व्यासदो मनुष्यों में कम से कम 99.9 प्रतिशत आनुवंशिक समानता होती है लेकिन 0.1 प्रतिशत का अंतर एक दूसरे को कुछ अलग बनाता है। जीनों में इस फर्क के कारण कुछ लोग रोगों का प्रतिरोध कर सकते हैं और कुछ उनके शिकार हो सकते हैं।

By Pooja SinghEdited By: Published: Sun, 24 Oct 2021 11:07 AM (IST)Updated: Sun, 24 Oct 2021 11:07 AM (IST)
कोविड के प्रतिरोधियों की तलाश, कोरोना काल में लोगों पर अलग-अलग प्रभावों के चलते हो रही शोध
कोविड के प्रतिरोधियों की तलाश, कोरोना काल में लोगों पर अलग-अलग प्रभावों के चलते हो रही शोध

मुकुल व्यास। कुल व्यासदो मनुष्यों में कम से कम 99.9 प्रतिशत आनुवंशिक समानता होती है, लेकिन 0.1 प्रतिशत का अंतर एक दूसरे को कुछ अलग बनाता है। जीनों में इस फर्क के कारण कुछ लोग रोगों का प्रतिरोध कर सकते हैं और कुछ उनके शिकार हो सकते हैं। ऐसा कुछ खास जीनों की वजह से होता है। यदि हम इन जीनों को बेहतर ढंग से समझ सकें तो इससे न केवल व्यक्ति को, बल्कि पूरे समाज को फायदा हो सकता है।

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जीनों के प्रभावों के अनुकरण के लिए लाभदायक दवाएं की जा सकती है विकसीत

ऐसी दवाएं विकसित की जा सकती हैं, जो लाभदायक जीनों के प्रभावों का अनुकरण कर सकें। इस बात को ध्यान में रखकर शोधकर्ता दुनिया में ऐसे लोगों की तलाश कर रहे हैं, जो कोरोना वायरस का प्रतिरोध कर सकते हैं। शायद इन लोगों के जीनों में कोविड के इलाज की कुंजी छिपी हुई हो। दुनिया में फैली कोरोना महामारी के दौरान संक्रमित होने वाले लोगों में भिन्नता दिखाई दी।

कुछ लोगों में बीमारी के लक्षण नहीं दिखे, जबकि कुछ गंभीर रूप से बीमार हो गए। एकेडमी आफ एथेंस के इम्युनोलाजिस्ट इवानगेलोस आंद्रियाकोस ने अपने शोधपत्र में लिखा है कि दिसंबर 2019 में नई बीमारी के प्रकट होने के बाद कोविड के बारे में हमारी समझदारी में काफी वृद्धि हुई है, लेकिन हम अभी तक यह नहीं जानते कि कुछ लोगों में कोविड के खिलाफ जन्मजात प्रतिरोध का आनुवंशिक कारण क्या है और इसका क्या इम्यून सिस्टम से भी कोई संबंध है?

शोधकर्ताओं ने इस बात को नोट किया कि कई मामलों में घर के प्राय: सभी सदस्य संक्रमित हो गए, लेकिन उनमें एक सदस्य ऐसा था जिसे कुछ नहीं हुआ। ऐसी भी खबरें मिलीं कि सबसे ज्यादा संक्रमित इलाकों से कई बार गुजरने के बाद भी लोगों को कोविड नहीं हुआ। इस बारे में कुछ शोध हुए हैं, लेकिन इसमें बहुत मामूली अंतर ही सामने आए।

मसलन इन शोधकर्ताओं ने पिछले वर्ष बताया था कि कुछ ब्लड टाइप के लोग खासकर ओ टाइप वाले कोविड के गंभीर मामलों में कुछ प्रतिरोध दिखाते हैं। कुछ अन्य शोध में एसीई2 रिसेप्टर जैसे प्रोटीनों का अध्ययन किया गया है। ध्यान रहे कि मानव कोशिका में दाखिल होने या उसमें अपना विस्तार करने के लिए वायरस को एसीई2 रिसेप्टर प्रोटीन की जरूरत पड़ती है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि आबादी में जिन लोगों में कोरोना वायरस के संक्रमण के विरुद्ध कुदरती प्रतिरोध है, उनकी पहचान करनी चाहिए। शोध के लिए ऐसे लोगों की भर्ती की जानी चाहिए और उनका आनुवंशिक विश्लेषण किया जाना चाहिए। कोविड अभी लंबे समय तक हमारे बीच रहेगा। यदि हमें ऐसे लोग मिल जाएं, जो आनुवंशिक दृष्टि से कोविड को झेलने में सक्षम हैं तो इससे शेष अन्य लोगों को फायदा हो सकता है। इस तरह का अध्ययन भविष्य में वायरस की नई खतरनाक किस्मों का मुकाबला करने में भी सहायक होगा।

(लेखक विज्ञान के जानकार हैं)


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