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Azadi Ka Amrit Mahotsav : Netaji Subhash Chandra Bose lives in every particle of Cuttack
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आजादी का अमृत महोत्सव : कटक के कण-कण में बसते हैं नेताजी सुभाषचंद्र बोस
आजादी के अमृत महोत्सव के समय हम पीछे मुड़कर देखें कि देश को बनाने में जिन्होंने अपना जीवन दे दिया उनकी विरासत को हमने कितना सहेजा है? उनकी स्मृतियों से हम कितनी शक्ति लेते हैं? इस महत्वपूर्ण अभियान के तहत अमर उजाला ने अपने प्रतिनिधियों को देशभर में भेजा। पिछली कड़ियों में आपने पटेल और नेहरू के जन्मस्थान से रिपोर्ट पढ़ी, इस बार नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जन्मस्थली...
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नेताजी सुभाषचंद्र बोस
- फोटो :
Amar Ujala
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महानदी के तट पर बसे शहर में जब आप उड़िया बाजार की ओर चलते हैं तो यह सोचना भर ही रोमांचक हो जाता है कि आजादी की लड़ाई के महान योद्धा की जन्मस्थली से आप रू-ब-रू होंगे...
महानदी के तट पर बसे शहर में जब आप उड़िया बाजार की ओर चलते हैं तो यह सोचना भर ही रोमांचक हो जाता है कि आजादी की लड़ाई के महान योद्धा की जन्मस्थली से आप रू-ब-रू होंगे...
देश के नामचीन वकील जानकीनाथ बोस ने अपने घर में पुत्र के जन्म के बाद डायरी में उसका समय और तारीख लिखी। उन्होंने एक सामान्य पेन से लिखा कि बच्चे का जन्म 23 जनवरी 1897 को दोपहर 12 बजे के कुछ समय बाद हुआ है। यह लिखते समय शायद उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी कि उनकी यह नौवीं संतान भविष्य में इतिहास की एक नई इबारत लिखेगी। इसी बालक को सुभाष चंद्र बोस के नाम से जाना गया।
ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से लगभग तीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित शहर कटक में उनका जन्म हुआ था। कटक लंबे समय तक ओडिशा की राजधानी रहा है और आज भी प्रदेश के बड़े व्यापारिक केंद्र के तौर पर जाना जाता है। भुवनेश्वर से कटक जाते हुए यह बात जेहन में चलती रहती है कि जिस व्यक्ति ने देश की आजादी की लड़ाई को एक नए आयाम पर पहुंचाया, जिसने विदेशी सरजमीं पर दुनिया की दूसरी ताकतों के साथ मिलकर अंग्रेजों को चुनौती दी, उसके जन्मस्थान वाले शहर में अब उसे कैसे याद किया जाता होगा? क्या हर साल कुछ एक आयोजनों पर याद करने की रस्मअदायगी होती है या फिर बात कुछ आगे की है।
तेज होती बारिश के बीच ऐसी ही एक शाम कटक की सड़कों पर थोड़ा-थोड़ा भीगते हुए नेताजी सुभाष चंद्र बोस की यादों के बारे में जानने की कोशिश की गई। आइस फैक्टरी रोड पर परचून की दुकान में बैठे युवा सूर्यकांत बोहरी से नेताजी के जन्मस्थान के बारे में पूछा तो उसने पहले उडिया और फिर थोड़ी कमजोर हिंदी में बात की। इसके बाद सड़क के एक हिस्से की ओर इशारा करते हुए बताया कि इधर से जाना होगा, उनका जन्मस्थान उडि़या बाजार में है।
सूर्यकांत ने यह भी बताया कि बारिश होने के कारण जलभराव की वजह से जाने में परेशानी भी हो सकती है। जब पूछा गया कि वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में क्या जानते हैं तो फिर अपनी शैली की हिंदी में बताया कि कौन नहीं जानता। पूरा कटक उनको याद करता है। शाम के अंधेरे में भी यह बताते हुए सूर्यकांत की आंखों में आई चमक ने बोस के प्रति इस शहर की दीवानगी के बारे में कुछ इशारा तो कर ही दिया था। इसके बाद कैब ड्राइवर लवलीन धर हों या फिर नुक्कड़ पर खड़ा कोई भी व्यक्ति, नेताजी और उनके घर की ओर जाने वाले रास्ते से सभी परिचित दिखाई दिए।
महानदी के किनारे बसे शहर में जब आप उड़िया बाजार की ओर चलते हैं तो यह सोचना भर ही रोमांचक हो जाता है कि आजादी की लड़ाई के महान योद्धा के जन्मस्थली से आप रू-ब-रू होंगे। उडि़या बाजार से नेताजी जन्मस्थल म्यूजियम के बाहर के गेट से अंदर की ओर मुड़ते ही दीवारों पर सुभाष के जीवन से जुड़े चित्र दिखने शुरू हो जाते हैं। इसके बाद आता है वह घर, जिसके कमरे में प्रभावती देवी ने अपनी नौवीं संतान के रूप में सुभाष चंद्र बोस को जन्म दिया था।
एक बड़े से गेट के अंदर जैसे-जैसे आप प्रवेश करते हैं, तो अभी तक सुभाष चंद्र बोस के बारे में पढ़ी गई जानकारियों से इतर कुछ जानने की इच्छा तेज हो जाती है। कुछ मिनटों की औपचारिकता और दस रुपये के मामूली शुल्क के साथ आप तमाम ऐसी चीजों को देख पाते हैं, जो सुभाष चंद्र बोस के जीवन से जुड़ी रहीं हों। दो मंजिला घर के आंगन में जाकर लगता है कि आप वहां खड़े हैं, जहां सुभाष चंद्र बोस के पैदा होने पर किलकारियां गूंजीं होंगी।
उस जगह के चबूतरों पर उन्होंने बाल्यावस्था में चहलकदमी की होगी। उनके घर जानकीभवन को 2004 में सरकार ने नेताजी जन्मस्थान संग्रहालय बना दिया था। घर के बाहर ही उनकी प्रतिमा लगी है और गेट के दाहिने हाथ पर वह घोड़ागाड़ी आज भी सहेज कर रखी हुई, जिसमें बैठकर कभी बोस जाया करते थे। उनके घर के अलग-अलग कमरों को संग्रहालय के अलग-अलग ब्लॉक में बांट दिया गया है।
सबसे पहली गैलरी में बोस का स्टडी रूम तैयार किया गया है। उस कमरे में रखी कुर्सी-मेज और पेन व कलम सब उसी दौर के हैं। वह सारी चीजें, जिन्हें कभी सुभाष चंद्र बोस या उनके पिता जानकीनाथ बोस ने इस्तेमाल किया था। उनके पिता ने अपनी वकालत के लिए कटक को चुना और वहां प्रैक्टिस करने लगे। वह कटक के मेयर भी रहे। जैसे-जैसे आप अलग-अलग ब्लॉक में बढ़ेंगे, बोस के जीवन से रू-ब-रू होते जाएंगे।
अपने परिवार के साथ बोस के बाल्यकाल के अनेक चित्र यहां गैलरी में लगाए गए हैं। खास बात यह है कि हर ब्लॉक का क्रम भी उनके जीवन के क्रम के साथ जोड़ा गया है। उनके बचपन में परिवार की फोटो के साथ पेड़ों पर अपने दोस्तों के साथ चढ़े हुए सुभाष भी कई तस्वीरों में दिखाई दे रहे हैं। इसी कमरे में डायरी का वह पेज भी फ्रेम में रखा गया है, जिसमें उनके पिता ने सुभाष के जन्म लेने की जानकारी लिखी थी। स्कूली जीवन के शिक्षकों के बारे में जानकारी देते हुए सुभाष के जीवन पर उनके प्रभाव की जानकारी भी दी गई है।
कुछ सीढ़ियां चढ़कर जैसे ही ऊपर पहुंचते हैं तो सुभाष चंद्र बोस के जन्म लेने वाला कमरा आता है। कमरे के अंदर आप खिड़की से ही देख सकते हैं, भीतर जा नहीं सकते। ऊपर के एक कमरे में उनके समय के ही घरेलू सामान और बर्तन आदि संभालकर रखे हुए हैं। उनके आराम करने के कमरे को भी यहां उनकी पसंदीदा किताबों के साथ तैयार किया गया है। इसमें भागवद् गीता का स्थान प्रमुख है।
दूसरी मंजिल पर पहले तीन कमरों में उनके प्रारंभिक जीवन से जुड़ी चीजों को छोड़कर बाकी दिनों में उनके क्रांतिकारी जीवन को दिखाया गया है। एक कमांडर की उनकी वर्दी के साथ आजाद हिंद फौज की झांसी रेजिमेंट की वर्दी भी रखी गई है। इसके साथ उनके बैज भी संभाल कर रखे गए हैं। यहां घूमते हुए आप तस्वीरों में ही उनके सैनिक जीवन से रू-ब-रू हो जाएंगे।
आजाद हिंद फौज के साथ ही सुभाष ने आजादी की लड़ाई का बिगुल फूंक दिया था, इसलिए उनके जीवन के इस हिस्से को संग्रहालय में काफी जगह दी गई है। मकान के ऊपर वाले हिस्से में एक लाइब्रेरी भी है। थकान होने पर किताबों के बीच समय बिताने के लिए यह बहुत ही अच्छी जगह है। लाइब्रेरी सहायक लखीमधर नायक आपका मुस्कुराकर स्वागत भी करते हैं। नेताजी जन्मस्थल संग्रहालय ट्रस्ट के इंचार्ज जेलेंद्र प्रसाद रॉय बताते हैं कि इस संग्रहालय में हर साल लगभग 15 हजार तक लोग आते हैं।
नेताजी ने आजादी की लड़ाई को एक नए आयाम तक पहुंचाया और विदेशी सरजमीं पर दुनिया की दूसरी ताकतों के साथ मिलकर अंग्रेजों को चुनौती दी। नेताजी का अध्यात्म की ओर भी झुकाव रहा... रामकृष्ण परमहंस के अनुयायियों ने कटक में रामकृष्ण कुटीर की स्थापना की थी। सुभाष रेवेनशॉ कॉलेजिएट में पढ़ाई के दौरान अपनी पॉकेट मनी कुटीर में रहने वाले छात्रों के लिए दान दे दिया करते थे।
गुरु की तलाश में बचपन में ही छोड़ दिया था घर
नेताजी सुभाषचंद्र बोस की अंतिम उपलब्ध फोटो... माना जा रहा है कि यह 17 अगस्त 1945 में सैगॉन एयरपोर्ट की है।
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Amar Ujala
म्यूजियम में लगे उनके जीवन चक्र के पोस्टर में यह भी बताया गया है कि बाल्यकाल में उन्होंने कुछ समय के लिए अपना घर छोड़ दिया था। इस दौरान वह देश के कई हिस्सों में आश्रमों में घूमे। कुछ दिनों बाद वापस लौट आए। रेवेनशॉ कॉलेजिएट के हेडमास्टर नारायण प्रसाद मोहंती ने स्कूली पढ़ाई के दौरान ही उनके मन में क्रांति के बीज बो दिए थे।
इसी स्कूल के हेडमास्टर रहे बेनीमाधव दास को बोस ने जिंदगीभर गुरु का दर्जा देकर उनकी शिक्षाओं को आत्मसात किया। म्यूजियम में उपलब्ध जानकारी के अनुसार उनका अध्यात्म की ओर काफी झुकाव रहा। इतना ही नहीं वह कटक में ही स्थित रास विहारी मठ और सच्चिदानंद मठ भी लगातार जाया करते थे। वे स्वामी विवेकानंद की शिक्षा से बहुत प्रभावित रहे।
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