पंजाब विधानसभा चुनाव मतगणना: वोटिंग से लेकर नतीजों तक सभी अहम सवालों के जवाब
पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए मतदान पूरा हो चुका है और नतीजे 10 मार्च को घोषित किए जाएंगे.
हर किसी के मन में ये सवाल है कि क्या पंजाब में सियासी टकराव कांग्रेस और अकाली दल के बीच ही रह जाएगा या इस बार आम आदमी पार्टी का जादू चलेगा?
पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए 20 फरवरी को मतदान हुआ था. पंजाब विधानसभा चुनाव, साल 2022 यानी 16वीं पंजाब विधानसभा के लिए 117 सीटों पर चुनाव संपन्न हुए.
पंजाब में एक ही चरण में वोट डाले गए. नतीजा 10 मार्च को सामने आएंगे.
पिछला विधानसभा चुनाव 2017 में हुआ था, जिसका कार्यकाल 28 मार्च 2022 को ख़त्म हो जाएगा.
पंजाब में देश के बाक़ी राज्यों की तरह हर 5 साल बाद चुनाव होते हैं.
कितने हैं चुनाव क्षेत्र और क्या है बहुमत का आंकड़ा?
पंजाब विधानसभा में 117 विधानसभा चुनाव क्षेत्र हैं.
विधानसभा चुनाव जीतने के लिए किसी भी दल या गठबंधन को 59 का आंकड़ा हासिल करना होता है.
इस तरह जो भी पार्टी चुनाव में 59 या इससे अधिक सीटें जीत लेती है, वो पंजाब में अपनी सरकार बनाती है.
मुख्य उम्मीदवार कौन हैं?
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चरणजीत सिंह चन्नी - पंजाब में कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के तौर पर चरणजीत सिंह चन्नी को चेहरा बनाया है. वो पंजाब के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो दलित समुदाय से संबंध रखते हैं. अपने छोटे कार्यकाल में चन्नी ने लोगों से जुड़ने की पूरी कोशिश की है. वो दो विधानसभा सीटों भदौर और चमकौर साहिब से चुनाव मैदान में उतरे. कांग्रेस ने राज्य में अपने लिए दलित वोट बैंक मज़बूत करने की ओर क़दम बढ़ाए हैं लेकिन इससे कांग्रेस को कितना फ़ायदा होगा ये देखने की बात होगी.
नवजोत सिंह सिद्धू - पंजाब कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद से सिद्धू का क़द और बढ़ गया है लेकिन पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया. लेकिन वो अमृतसर पूर्वी सीट से चुनाव मैदान में उतरे. ऐसा माना जाता है कि पंजाब कांग्रेस प्रमुख के पद से एक बार गुस्से में इस्तीफा देने के बाद दोबारा पद पर बने रहने के फैसले ने उनकी छवि को थोड़ा नुक़सान पहुंचाया है. लेकिन अगर कांग्रेस की सरकार फिर सत्ता में लौटती है तो उन्हें अहम भूमिका मिलने की उम्मीद की जा रही है.
परगट सिंह - ओलंपियन परगट सिंह (जो मौजूदा मंत्रीमंडल में शिक्षा मंत्री हैं) को पंजाब सरकार में कोई अहम पद नहीं मिला था, लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू से उनकी नज़दीकी उन्हें अहम पद दिला सकती है. वो भी जालंधर कैंट से चुनावी मैदान में उतरे.
शिरोमणि अकाली दल
प्रकाश सिंह बादल - 5 बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके प्रकाश सिंह बादल लांबी विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे.
सुखबीर सिंह बादल - शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल भले ही वर्तमान में सांसद हैं, लेकिन वो राज्य विधानसभा चुनावों के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और अकाली दल का प्रमुख चेहरा हैं. वो जलालाबाद से चुनाव मैदान में उतरे.
बिक्रमजीत सिंह मजीठिया - सुखबीर सिंह बादल के साले और हरसिमरत कौर बादल के भाई बिक्रमजीत सिंह मजीठिया ने नवजोत सिंह सिद्धू को अमृतसर ईस्ट में चुनौती दी.
आम आदमी पार्टी
भगवंत मान - भगवंत मान आम आदमी पार्टी के राज्य में अकेले सासंद हैं. पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया है और वो धूरी सीट से चुनाव मैदान में उतरे.
कुंवर विजय प्रताप सिंह - पंजाब पुलिस के पूर्व आईजी कुंवर विजय प्रताप सिंह, पुलिस से समय से पहले सेवानिवृत्ति के बाद आम आदमी पार्टी में शामिल हुए और अमृतसर नार्थ से चुनाव लड़े. बेअदबी मामले की जांच में उनकी अहम भूमिका रही है.
बलजिंदर कौर - आम आदमी पार्टी में महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली बलजिंदर कौर भी पार्टी का अहम चेहरा हैं.
अनमोल गगन मान - पंजाब की जानी-मानी गायिक अनमोल गगन मान वर्तमान में पंजाब की राजनीति में एक नया लेकिन बहुत सक्रिय चेहरा हैं.
मुख्य विधानसभा क्षेत्र कौन से हैं?
• पटियाला (शहरी) - कैप्टन अमरिंदर सिंह का निर्वाचन क्षेत्र
• लम्बी - प्रकाश सिंह बादल का निर्वाचन क्षेत्र
• जलालाबाद - सुखबीर सिंह बादल का निर्वाचन क्षेत्र
• अमृतसर (पूर्व) - नवजोत सिंह सिद्धू का निर्वाचन क्षेत्र
• डेरा बाबा नानक - सुखजिंदर सिंह रंधावा का निर्वाचन क्षेत्र
पंजाब विधानसभा चुनाव में क्या रहे मुख्य मुद्दे?
कृषि क़ानूनों का विरोध - केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ विरोध कर रहे किसानों ने दिल्ली की सीमा पर पहुंचकर महीनों तक प्रदर्शन किया. इन्हीं क़ानूनों की वजह से अकाली दल ने बीजेपी से अपना दशकों पुराना गठबंधन तोड़ दिया.
बेअदमी मामले में न्याय न मिलना - बेअदबी मामले में अभी भी न्याय का इंतज़ार है. नवजोत सिंह सिद्धू ने इस मुद्दे पर अपनी ही सरकार को घेरा.
बेरोज़गारी - कैप्टन का 'घर-घर नौकरी' का वादा कई बार पंजाब की राजनीति में भूचाल ला चुका है.
इस सभी मुद्दों के अलावा नशा, खनन और बिजली के मुद्दे भी इस विधानसभा चुनाव में अहम रहे.
2017 के चुनावी परिणाम क्या कहते हैं?
वर्तमान में राज्य सरकार का नेतृत्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी कर रहे हैं. इससे पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री पद पर आसीन थे.
2017 के विधानसभा चुनावों में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पंजाब के 117 विधानसभा क्षेत्रों में से 77 पर जीत हासिल की थी.
जबकि पंजाब चुनावों में पहली बार उतरी आम आदमी पार्टी 20 सीटें जीतकर राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी.
कांग्रेस की इस बड़ी जीत ने पंजाब की पारंपरिक पार्टी शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी के गठबंधन को राज्य में तीसरे स्थान पर ला कर खड़ा कर दिया था. शिरोमणि अकाली दल को 15 और बीजेपी को 3 सीटें मिली थीं.
लोक इंसाफ़ पार्टी ने दो सीटों पर जीत हासिल की थी. लगभग तीन दशकों से बीजेपी की सहयोगी रही शिरोमणि अकाली दल ने, साल 2020 में केंद्र सरकार की ओर से पारित तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में बीजेपी से अलग होने का फ़ैसला किया.
इसके बाद शिरोमणि अकाली दल ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया.
आम आदमी पार्टी ने 2017 में लोक इंसाफ पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था, लेकिन बाद में गठबंधन टूट गया था.
• 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 38.5 फ़ीसदी (59,24,995) वोट मिले थे.
• शिरोमणि अकाली दल को 25.3 फ़ीसदी (38,98,161) वोट मिले थे.
• आम आदमी पार्टी को 23.8 फ़ीसदी (36,59,266) वोट मिले थे.
• बीजेपी को 5.3 प्रतिशत (8,19,927) वोट मिले थे.
यदि पंजाब में 2017 के चुनाव परिणाम के दौरान मालवा, माझा और दोआबा के समीकरण को समझना हो तो आंकड़े इस प्रकार हैं:
• मालवा - कांग्रेस (40), आम आदमी पार्टी (18), शिरोमणि अकाली दल (8), भारतीय जनता पार्टी (1), लोक इंसाफ़ पार्टी (2)
• माझा - कांग्रेस (22), शिरोमणि अकाली दल (2), भारतीय जनता पार्टी (1)
• दोआबा - कांग्रेस (15), शिरोमणि अकाली दल (5), आम आदमी पार्टी (2), भारतीय जनता पार्टी (1)
EVM और VVPAT क्या है?
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) एक ऐसी मशीन है जिस पर उम्मीदवारों के नाम और पार्टी के चुनाव चिह्न बने होते हैं.
उम्मीदवारों के नाम उन भाषाओं में लिखे जाते हैं जो निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक बोली जाती हैं.
निरक्षर मतदाताओं के लिए प्रत्येक उम्मीदवार की पहचान के लिए चुनाव चिन्ह भी होते हैं. जैसे कि कमल बीजेपी का चुनाव चिन्ह है और हाथ कांग्रेस का.
जब आप वोट देने के लिए तैयार हों, तो अपने पसंदीदा उम्मीदवार के नाम के आगे वाले नीले बटन को दबाएं.
थोड़ी देर रुकिए, केवल बटन दबाने का मतलब ये नहीं है कि आपका वोट दर्ज हो गया है.
ये तभी होगा जब आप एक बीप की आवाज़ सुनेंगे और कंट्रोल यूनिट की लाइट बंद हो जाएगी.
अब आपने अपना वोट दे दिया है! वोट देने के बाद मतदान अधिकारी की ओर से ईवीएम के "क्लोज़" बटन को दबाने के बाद, मशीन वोटों को रिकॉर्ड करना बंद कर देती है ताकि उसके साथ कोई छेड़छाड़ न की जा सके.
इसे मोम और सुरक्षात्मक पट्टी से सील कर दिया जाता है और चुनाव आयोग की ओर से सीरियल नंबर दिया जाता है.
मतगणना शुरू होने पर ही इसे खोला जाता है.
मतगणना शुरू होने से पहले मतगणना कर्मचारी और उम्मीदवार एजेंट इसकी जांच करते हैं. ये सारा कार्य "रिटर्निंग ऑफ़सर" की देखरेख में होता है.
जब रिटर्निंग अफ़सर पुष्टि कर लेता है कि वोटिंग मशीन से छेड़छाड़ नहीं की गई है, तो वह "रिज़ल्ट" बटन को दबा देता है.
कंट्रोल यूनिट पर दिखाई दे रहे, प्रत्येक उम्मीदवार के लिए डाले गए वोटों की समीक्षा अफ़सर द्वारा की जाती है.
पुष्टि के बाद, रिटर्निंग अफ़सर परिणाम वाले पत्र पर हस्ताक्षर करता है और उसे चुनाव आयोग को सौंप देता है.
चुनाव आयोग तुरंत इस परिणाम को अपनी वेबसाइट पर भी प्रदर्शित करता है.
VVPAT (वोटर वेरिफ़ाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) सिस्टम के तहत वोट देने के तुरंत बाद कागज़ की एक पर्ची बनाई जाती है. जिस पर, उस उम्मीदवार का नाम और चुनाव चिन्ह होता है जिसे वोट दिया गया है.
ये व्यवस्था इसलिए है ताकि किसी भी विवाद की स्थिति में ईवीएम के वोट के साथ पर्ची का मिलान किया जा सके.
ये पर्ची ईवीएम से जुड़ी ग्लास स्क्रीन (शीशे की स्क्रीन) पर 7 सेकेंड तक दिखाई देती है.
इस मशीन को साल 2013 में भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड द्वारा डिज़ाइन किया गया था.
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