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Target killing: Violence in Kashmir jolts BJP in Uttar Pradesh and other assembly election states
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टारगेट किलिंग: अशांत कश्मीर से भाजपा की रणनीति को भी नुकसान, पांचों चुनावी राज्यों में अब नहीं कर पाएगी ये दावा
गृहमंत्री अमित शाह 22-23 अक्तूबर को कश्मीर और 24 अक्तूबर को जम्मू के दौरे पर जा रहे हैं। वे स्थानीय नेताओं और अधिकारियों के साथ मिलकर हालात का जायजा लेंगे और घाटी के अमन-चैन को वापस लाने के लिए उपयुक्त रणनीति बनाने पर काम करेंगे।
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- फोटो : अमर उजाला
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कश्मीर से अनुच्छेद 370 के विवादित अंशों की समाप्ति को केंद्र सरकार अपनी एतिहासिक उपलब्धि बताती रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह अनेक अवसरों पर इसे इतिहास की ‘गलती’ सुधारना करार देते रहे हैं। इन नेताओं का दावा रहा है कि घाटी से अनुच्छेद 370 और 35ए की समाप्ति ने उसके विकास की संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। घाटी में आतंकी घटनाओं और पत्थरबाजी की घटनाओं में कथित तौर पर कमी आने के बाद केंद्र सरकार की इसी नीति का परिणाम बताया जाता रहा है। लेकिन आतंकियों ने एक बार फिर से घाटी में खून-खराबे की शुरुआत कर केंद्र के इस दावे को कमजोर कर दिया है कि घाटी में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है। इससे भाजपा की चुनावी रणनीति को भी झटका लगा है क्योंकि वह इसे अपनी बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश करती रही है।
‘एक देश के अंदर दो राष्ट्र’ की संकल्पना को समाप्त किया
भाजपा के एक शीर्ष नेता के अनुसार, कश्मीर हमारे लिए कभी चुनावी मुद्दा नहीं रहा है। यह वह मुद्दा रहा है जिसके लिए हमारी पार्टी के संस्थापक नेताओं में से एक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपनी जान गंवाई थी। जनता ने जब भी हमें अवसर दिया, हमने अपना वायदा निभाया और ‘एक देश के अंदर दो राष्ट्र’ की संकल्पना को समाप्त किया। यह हमारे लिए राष्ट्रीय गौरव का विषय है। इस निर्णय की राजनीतिक कीमत चाहे जो भी चुकानी पड़ती, पार्टी उसके लिए तैयार थी।
पार्टी नेता ने दावा किया कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद घाटी के हालात तेजी से सुधर रहे थे। कश्मीर के पर्यटन, खेती और व्यापार को बढ़ोतरी हो रही थी, इसका सकारात्मक संदेश जा रहा था, जिसका पार्टी को लाभ मिल रहा था। लेकिन घाटी के हालात खराब होने से इसका नकारात्मक असर पड़ेगा। कम से कम वर्तमान माहौल में यदि कश्मीर में अमन वापस नहीं आता है तो इसे एक बड़ी राजनीतिक उपलब्धि बताना मुश्किल होगा।
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शांति प्रक्रिया से आतंकी बौखलाए
भाजपा के अवध प्रांत के एक नेता के अनुसार, चुनाव प्रचार के दौरान हम प्रदेश की शासन-व्यवस्था के साथ-साथ कश्मीर में केंद्र सरकार द्वारा किये जा रहे कार्यों को ही बड़ा मुद्दा बनाते थे। लेकिन उत्तर प्रदेश से लेकर कश्मीर तक बिगड़े हालात ने अब हमें अपने चुनावी मुद्दे तय करने में मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। नेता के मुताबिक, लोग यह बात अच्छी तरह से समझ रहे हैं कि केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को समाप्त कर एक बड़ा काम किया है, लेकिन बदले हालात में आतंकी घटनाओं की दोबारा वापसी से लोगों में खासी नाराजगी देखी जा रही है। लोग किसी भी कीमत पर इस आतंक का खात्मा चाहते हैं।
आरएसएस के वरिष्ठ नेता राममाधव ने कहा है कि घाटी में टारगेट किलिंग होती रही है। इस दौर में भी यही काम करके आतंकी घाटी की शांति प्रक्रिया को पटरी से उतारना चाहते हैं। यह उनकी हताशा का ही परिणाम है। इससे यह साबित होता है कि घाटी में वापस आती शांति को देखकर वे बौखला गए हैं और इसी बौखलाहट में इस तरह की हरकतों को अंजाम दे रहे हैं।
पाकिस्तान और आतंकियों को अब जनता का समर्थन नहीं
जम्मू-कश्मीर भाजपा के लीगल सेल के इंचार्ज अधिवक्ता भानु सिंह जसरोटिया ने अमर उजाला से कहा कि अनुच्छेद 370 की समाप्ति से घाटी की स्थिति में तेजी से बदलाव हो रहा था। एक बार फिर घाटी का पर्यटन वापस लौट रहा था, जिससे लोगों में कामकाज-व्यापार के सामान्य होने की उम्मीद पैदा हो रही थी। लेकिन आतंकियों ने खूनी खेल शुरू कर केंद्र सरकार की मुहीम को चोट पहुंचाने की कोशिश की है। इससे पर्यटन और व्यापार को नुकसान हुआ है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान और आतंकियों की छवि बेहद नकारात्मक बनी है। जनता का उनके प्रति कोई समर्थन शेष नहीं बचा है।
भानु सिंह जसरोटिया ने बताया कि आम नागरिकों और मजदूरों को निशाना बनाकर आतंकी केंद्र सरकार की उसी रणनीति को असफल बनाना चाहते हैं, जिसके अंतर्गत वह पूरे देश के नागरिकों को जम्मू-कश्मीर में आने-जाने को अन्य जगहों की तरह आसान बनाना चाहती है। केंद्र सरकार की इस नीति का विरोध कर कुछ कश्मीरी नेताओं और अलगाववादियों ने अपनी सोच उजागर कर दी है।
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