जीवन और सेहत के मोर्चे पर आया एक बड़ा वैश्विक संकट खरीदारी से जुड़े पूरे मनोविज्ञान को कैसे बदल सकता है, यह जिज्ञासा आज चलन-प्रचलन में जाहिर होने वाला यथार्थ है। कोरोनाकाल के दौरान खाद्यान्न, किताबें, सौंदर्य उत्पाद, बच्चों के सामान जैसी चीजों की आनलाइन खरीदारी जमकर हुई। बिना किसी संपर्क के फौरी तौर पर अपने दरवाजे पर सामान मंगाने के लिए लोग धड़ल्ले से आनलाइन विकल्प का सहारा ले रहे हैं। इनमें जरूरी और गैरजरूरी दोनों तरह के सामान शामिल हैं। पिछले साल अप्रैल में कनाडा में पूर्णबंदी के दौरान अपने घरों में फंसे लोगों ने सितार के तार से लेकर बच्चों के लिए ट्रैंपोलिन तक की आनलाइन खरीदारी की।

हड़बड़ाहट में होने वाली खरीदारी और जमाखोरी जैसी चीजों के साथ इस महामारी के तनाव ने भी हमारी खरीदारी की आदतों पर असर डाला है। हालांकि, आनलाइन खरीदारी कोई नई बात नहीं है। पर यह मुख्यधारा में हाल में ही आई है। एमेजन 90 के दशक के मध्य से हमारे बीच है, लेकिन अमेरिका में 2010 से ही आनलाइन खरीदारी की कुल खुदरा बिक्री में हिस्सेदारी छह फीसदी से थोड़ी ज्यादा के स्तर को पार कर गई थी। आज यह स्तर खरीदारी से जुड़े नव-प्रचलन की नई दुनिया रच चुका है।