उद्धव ठाकरे भारतीय जनता पार्टी पर इतनी बेबाकी से हमलावर क्यों हैं?

  • टीम बीबीसी मराठी
  • नई दिल्ली
उद्धव ठाकरे

विजयादशमी के दिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने दशहरा रैली के अपने संबोधन में सीधे-सीधे भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधा.

उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि बीजेपी की सत्ता की भूख नशे की लत की तरह हो गई है.

उन्होंने बीजेपी को चुनौती दी है कि वे राज्य की मौजूदा गठबंधन सरकार को गिराकर दिखाए. उद्धव ठाकरे ने हिंदुत्व, और केंद्रीय एजेंसियों के कामकाज इत्यादि को मुद्दा बनाते हुए भारतीय जनता पार्टी पर हमला किया.

उन्होंने कहा, "जब हम आपके साथ थे, तो अच्छे थे. ईडी का उपयोग ना करें. सामने से हमला करें. हमारी सरकार अस्थिर करने के तमाम प्रयासों के बावजूद अगले महीने कार्यकाल के दो साल पूरे कर लेगी. मैं आपको उसे गिराने की चुनौती देता हूं."

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उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर तंज़ भरे अंदाज़ में कहा कि 'मैं फ़कीर नहीं हूं जो झोला उठाकर चल दूंगा.'

सावरकर और गांधी पर भी बोले

महाराष्ट्र में आयकर विभाग के छापों और हाल की घटनाओं को देखते हुए उनके बयान को दिलचस्पी से देखा जा रहा है.

उन्होंने कांग्रेस नेता हर्षवर्धन पाटिल के बीजेपी में जाने की घटना पर एक टीवी विज्ञापन की नकल करते हुए कहा कि हर्षवर्धन पाटिल बीजेपी में जाने के बाद बोल रहे हैं, "पहले मुझे नींद नहीं आती थी, दरवाज़े पर टकटक होती थी तो रोंगटे खड़े हो जाते थे, फिर मैं बीजेपी में चला गया, अब मैं कुंभकरण जैसा सोता हूं."

ठाकरे ने अपने संबोधन में राजनाथ सिंह की गांधी की सलाह पर सावरकर की दया याचिका वाले मुद्दे पर कहा कि भाजपा ना तो वीडी सावरकर को समझ पायी है और न ही महात्मा गांधी को.

राजनीतिक तौर पर पहला मौका है जब उद्धव ठाकरे ने भारतीय जनता पार्टी पर इस तरह सीधा-सीधा हमला किया है. उनके भाषण और बीजेपी पर लगाए आरोपों के राजनीतिक मायने जानने के लिए बीबीसी मराठी ने कुछ राजनीतिक विश्लेषकों से बात की.

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बाल ठाकरे वाला अंदाज़?

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई ने कहा कि उद्धव ठाकरे का भाषण बेहद आक्रामक था.

उन्होंने बताया, "उद्धव ठाकरे ने अपने भाषण में कई मुद्दों की बात की, एक तरह से वह काफी समावेशी था. लेकिन उनका अंदाज़ शिवसेना वाला या कहें बाल ठाकरे जैसा दिखा."

वहीं वरिष्ठ पत्रकार विजय चोरमारे के मुताबिक उद्धव ठाकरे पहली बार उस आत्मविश्वास से भरे नज़र आए, जिसका अब तक उनमें अभाव दिखता था.

विजय चोरमारे ने कहा, "दो साल तक सरकार चलाने के बाद मुख्यमंत्री में आत्मविश्वास दिख रहा है. उन्होंने विजयादशमी से दो दिन पहले चिप्पी एयरपोर्ट के उद्घाटन के दौरान ऐसा ही संबोधन दिया था. दशहरा रैली के दौरान भी वे आक्रामक दिखे."

विजय चोरमारे के मुताबिक उद्धव ठाकरे के आत्मविश्वास से ज़ाहिर हो रहा है कि उनकी सरकार को कहीं से कोई ख़तरा नहीं है.

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वहीं वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार दीपक भातुसे ने कहा, "राज्य में यह चर्चा चलने लगी थी कि क्या राज्य में लगातार एजेंसियों के पड़ने वाले छापों से उद्धव ठाकरे दबाव में हैं? ये चर्चाएं होने लगी थीं लेकिन उद्धव ठाकरे के भाषण से साफ़ है कि चाहे जितना भी दबाव हो वे बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे."

तुम्हारा हिंदुत्व और हमारा...

वहीं विजय चोरमारे ने बताया, "महाविकास अघाड़ी सरकार के गठन के बाद से ही शिवसेना को हिंदुत्व के मुद्दे पर निशाना बनाया जाता रहा है, लेकिन उद्धव ठाकरे लगातार यह दर्शाते रहे हैं कि शिवसेना ने हिंदुत्व के मुद्दे को नहीं छोड़ा है."

विजयादशमी के अपने संबोधन में गुजरात दंगे के दौरान मारे गए लोगों और दूसरी घटनाओं का ज़िक्र करते हुए ठाकरे ने कहा कि यह हिंदुत्व हमारा नहीं है बल्कि शिवसेना का हिंदुत्व सबको समाहित करने वाला है.

उद्धव ठाकरे ने कहा, "शिवसेना ने हिंदुत्व की ख़ातिर ही बीजेपी से गठबंधन किया था. अगर शिवसैनिक मुख्यमंत्री की बात की गई होती तो आज अलग-अलग राह नहीं होती. मैं फ़कीर नहीं कि झोला लेकर चला जाऊं."

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हेमंत देसाई ने इस बारे में कहा, "उद्धव ठाकरे ने अपने संबोधन में ज़ोर देते हुए कहा कि वे हिंदुत्व की राजनीति बीजेपी की तरह नहीं करेगी."

इन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि शिवसेना ने इससे पहले ऐसा कभी नहीं कहा है.

दीपक भातुसे ने कहा, "हिंदुत्व के मुद्दे पर बीजेपी देश भर में मुस्लिम विरोधी ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही है. लेकिन हिंदुत्व मुस्लिम विरोधी नहीं है. उद्धव ठाकरे ने ऐसा कहकर यह दर्शाने की कोशिश की है कि बीजेपी और शिवसेना का हिंदुत्व अलग अलग है."

उद्धव ठाकरे ने अपने संबोधन में कहा, "देश में अक्सर कहा जाता है कि हिंदुत्व ख़तरे में है. हिंदुत्व को बाहरी लोगों ने नहीं बल्कि नव हिंदुओं और इस विचारधारा का इस्तेमाल करके सत्ता की सीढ़ी चलने वालों से ख़तरा है."

उद्धव ठाकरे ने शाहरुख़ ख़ान के बेटे आर्यन ख़ान के ड्रग्स के इस्तेमाल पर हुई गिरफ़्तारी पर भी कहा, "मुंद्रा पोर्ट पर करोड़ों रुपये के नशीले पदार्थ पकड़े गए, उस पर कोई हल्ला नहीं हुआ. यहां केवल एक चुटकी गांजा पकड़ा तो उसका जमकर ढोल बजाया जा रहा है."

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बीजेपी पर निशाना लेकिन आरएसएस से परहेज़?

सरसंघचालक मोहन भागवत के हालिया बयान कि सभी भारतीयों के पूर्वज समान थे इसका संदर्भ देते हुए उद्धव ठाकरे ने अपने संबोधन में सवाल पूछा, "अगर सबके पूर्वज एक हैं तो क्या विपक्ष वाले के पूर्वज इसमें नहीं हैं क्या, किसानों के पूर्वज नहीं हैं क्या, जिन पर गाड़ी चढ़ाया गया यह नहीं हैं क्या?"

हेमंत देसाई के मुताबिक उद्धव ठाकरे संघ के साथ अपने संबंधों को बनाए रखना चाहते हैं.

उन्होंने कहा, "संघ की कोशिश शुरुआत से ही शिवसेना को अपने साथ रखने की रही है और उद्धव ठाकरे अपने भाषण में भी संघ के साथ संबंध बनाए रखने की कोशिश करते नज़र आते हैं."

विजय चोरमारे के मुताबिक मोहन भागवत, संघ, सावरकर ये वैसे मुद्दे हैं जो शिवसेना को बीजेपी से जोड़ते हैं, ऐसे में भविष्य में दोनों एक साथ आ सकते हैं, लिहाज़ा पुल को बनाए रखने की कोशिश है.

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केंद्र के सामने नहीं झुकेंगे?

उद्धव ठाकरे ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार से चाहे जो भी चुनौतियां आएं, वे नहीं झुकेंगे. उन्होंने पश्चिम बंगाल के उदाहरण का ज़िक्र भी किया.

हेमंत देसाई के मुताबिक उद्धव इसके ज़रिए यह स्पष्ट संदेश देना चाहते होंगे कि उनकी पार्टी भी पश्चिम बंगाल को दोहराना चाहती है.

उद्धव ठाकरे ने अपने संबोधन में कहा, "शिवाजी महाराज और शिवसेना प्रमुख ने सिखाया कि किसी से डरना नहीं है, ईडी, सीबीआई से हम नहीं डरते हैं. धमकाने पर पुलिस के पीछे छिपने वाले हम नहीं हैं."

विजय चोरमारे कहते हैं, "उद्धव ठाकरे ने बीजेपी को स्थानीय स्तर से लेकर केंद्र स्तर पर चुनौती देने की बात कही है, उन्होंने अब तक ऐसा नहीं किया था, लेकिन अब लग रहा है कि वे चुनौती देने के लिए तैयार हैं."

दीपक भातुसे का मानना है कि अपनी रैली से उद्धव ठाकरे ने स्पष्ट किया है कि वे बीजेपी के साथ मज़बूती से लड़ने के लिए तैयार हैं.

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राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा के संकेत

संजय राउत अपने संबोधनों में लगातार कहते आए हैं कि उद्धव ठाकरे राष्ट्रीय राजनीति में अहम भूमिका निभाएंगे. हेमंत देसाई उद्धव ठाकरे के संबोधन को इस महत्वाकांक्षा से जोड़कर देखते हैं.

देसाई ने कहा, "शरद पवार अभी केंद्रीय स्तर पर विपक्ष का चेहरा बनने की रेस में नहीं हैं. वे ममता बनर्जी और राहुल गांधी के साथ मिलकर उद्धव ठाकरे को विपक्ष का चेहरा बनाने की कोशिश कर सकते हैं."

उद्धव ठाकरे के संबोधन से ज़ाहिर होता है कि वे ख़ुद को इसके लिए तैयार कर चुके हैं. अपने संबोधन में उन्होंने राष्ट्रीय स्तर के कई मुद्दों का ज़िक्र किया, जिसमें उत्तर प्रदेश की घटना, किसान आंदोलन शामिल थे. हेमंत देसाई के मुताबिक उनके भाषण को इसलिए इस दृष्टिकोण से देखे जाने की ज़रूरत है.

उद्धव ठाकरे ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि केंद्र राज्यों को नुकसान पहुंचा रहा है और केवल गुजरात को अहमियत मिल रही है. विजय चोरमारे के मुताबिक उद्धव ठाकरे भले राष्ट्रीय मुद्दों की बात कर रहे हों लेकिन वे राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष का चेहरा बन पाएंगे, इसमें संदेह है.

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विजय चोरमारे कहते हैं, "राष्ट्रीय स्तर पर महत्व पाने की लिए ना तो शिवसेना के पास ताक़त है और न ही वह अपनी ताक़त बढ़ाने की कोशिश कर रही है. अगर लोकसभा में पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी तो ज़्यादा सीटें नहीं जीत पाएगी. शिवसेना के पास ममता बनर्जी जितनी ताक़त नहीं है."

वहीं दीपक भातुसे कहते हैं, "उद्धव ठाकरे के संबोधन से ज़ाहिर होता है कि वे बीजेपी के ख़िलाफ़ ममता बनर्जी जैसी भूमिका निभाने की कोशिश कर रहे हैं."

उद्धव ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि चूंकि उनकी पार्टी ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया है, इसलिए महाराष्ट्र और शिवसेना को निशाना बनाया जा रहा है.

ऐसे में एक सवाल यह भी है कि क्या केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाईयों के बदले महाराष्ट्र सरकार अपने राज्य की एजेंसियों के माध्यम से बीजेपी नेताओं पर पश्चिम बंगाल की तरह निशाना साधेंगे?

दीपक भातुसे का मानना है कि उद्धव ठाकरे के संबोधन से इसके संकेत मिल रहे हैं. उद्धव ठाकरे ने अपने शिवसैनिकों को संबोधित करते हुए कहा, "अगर कोई तुम्हें कुछ कहता है तो उसे शेर की भाषा में जवाब दो. शिवसेना प्रमुख होने के नाते अगर मुझे किसी को धमकी देनी है तो मैं अपने शिवसैनिकों के बल पर धमकी दूंगा ना कि राज्य के मुख्यमंत्री होने के नाते."

बहरहाल, इन सबसे ज़ाहिर है कि आने वाले दिनों में महाविकास अघाड़ी और बीजेपी के बीच संघर्ष बढ़ेगा. इस संघर्ष से ही ज़ाहिर होगा कि उद्धव ठाकरे ममता बनर्जी जैसी भूमिका निभा पाते हैं या नहीं.

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