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Kotkapura Assembly Seat: क्या 41 साल पुराने इतिहास को दोहरा पाएगी AAP?

कोटकापुरा विधानसभा सीट पर 1980 से लेकर अब तक किसी भी दल को लगातार जीत नसीब नहीं हुई है. अब 2017 में एक नई पार्टी की एंट्री हुई और आम आदमी पार्टी के खाते में जीत गई.

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Kotkapura assembly seat
Kotkapura assembly seat
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कोटकापुरा विधानसभा सीट पर आम आदमी पार्टी का कब्जा
  • 2017 में अपने पहले ही प्रयास में जीत गए कुलतार सिंह संधवां
  • AAP MLA कुलतार संधवां पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के पोते

ऐतिहासिक रूप से पंजाब के लिए अहम माने जाने वाले फरीदकोट जिले की अपनी राजनीतिक महत्ता है और कोटकापुरा विधानसभा सीट की क्रम संख्या 88 है. पिछले 41 सालों से यहां पर किसी भी दल ने लगातार जीत हासिल नहीं की है. फिलहाल इस समय आम आदमी पार्टी का कब्जा है. यह सीट फरीदकोट संसदीय सीट के तहत आती है.

पंजाब के जिला फरीदकोट में तीन विधानसभा सीटें आतीं हैं. कोटकापुरा (88) के अलावा फरीदकोट (87) और जैतो (89) शामिल हैं. 

सामाजिक तानाबाना
फरीदकोट कभी रियासत हुआ करता था. यहां करीब 12वीं सदी तक फरीदकोट का नाम मोकल हर था मगर 12वीं सदी के अंत में एक सूफी संत बाबा बाबा शेख फरीद जी इस नगरी में पहुंचे. कहा जाता है कि उस समय इस नगरी के राजा मोहकल देव थे. तब वह अपने यहां किला बनवा रहे थे. सिपाहियों ने सूफी संत बाबा सेख फरीद को भी काम पर लगा दिया.

लेकिन बाबा के ऊपर सिर पर मिट्टी की टोकरी टिक ना पाई और हवा में ऊपर रुक गई. यह चमत्कार देख सिपाहियों ने राजा को सारी बात बताई. तब राजा नंगे पांव दौड़े आए और बाबा जी से क्षमा मांगी और यहां रहने को कहा मगर बाबा जी ने रहने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि मैं फरीक आदमी हूं. यहां नहीं रुक सकता. बाद में राजा ने उन्हीं के नाम पर शहर का नाम फरीदकोट रख दिया.

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राजनीतिक पृष्ठभूमि
कोटकापुरा विधानसभा की तो यहां पर करीब 91,978 आबादी है जिसमें 48,598 पुरुष और 43,381 महिलाएं शामिल हैं. 2012 के चुनाव में शिरोमणि अकाली दल के विधयाक मनतार सिंह बराड़ करीब ने कांग्रेस के रिपजीत सिंह बराड़ को हराया था.

इस सीट पर 1980 से लेकर अब तक किसी भी दल को लगातार जीत नसीब नहीं हुई है. 1980 में कांग्रेस को जीत मिली तो 1985 में अकाली दल को जीत मिली. 1992 में कांग्रेस, 1997 में निर्दलीय, 2002 में अकाली दल, 2007 में कांग्रेस और 2012 में अकाली दल को जीत मिली थी. 2017 में आम आदमी पार्टी के खाते में जीत गई.

हालांकि 1997 में मंतर सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की लेकिन 2002 में वह अकाली दल के टिकट पर उतरे और जीत गए. 

2017 का जनादेश

5 साल पहले 2017 में चुनाव पर नजर डालें तो यहां बड़ा फेरबदल हो गया. कांग्रेस और अकाली दल के अलावा पहली बार किसी तीसरी पार्टी ने कब्जा जमाया. पिछले चुनाव में यहां से कुलतार सिंह संधवां ने आम आदमी पार्टी के टिकट पर बाजी मारी.

कुलतार सिंह को 47401 वोट मिले जबकि अकाली दल के मनतार बराड़ को 33895 वोट मिले और कांग्रेस के भाई हर्निपाल सिंह कुकू को 37326 वोट मिले थे और वह दूसरे स्थान पर रहे थे. कुलतार संधवां पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के पोते हैं.

रिपोर्ट कार्ड

कोटकपुरा के विधायक कुलतार सिंह संधवां आम आदमी पार्टी से विधयाक हैं. कुलतार का परिवार भी सियासत से जुड़ा हुआ है. फरीदकोट के ही रहने वाले भारत के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह उनके दादा हैं और 2017 में पहली बार सियासत में कदम रखा.

कुलतार सिंह ने आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और विजयी हुए. यह चुनाव इसलिए खास रहा क्योंकि पहली बार यहां से किसी तीसरी पार्टी ने कब्जा जमाया. 

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