फ्रीडम हाउस रिपोर्ट में इंटरनेट पाबंदी, नए आईटी नियमों को लेकर भारत सरकार पर निशाना साधा

फ्रीडम ऑफ द नेट रिपोर्ट डिजिटल प्लेटफॉर्म मानवाधिकारों की स्थिति का वार्षिक विश्लेषण करती है. इस रिपोर्ट के 11वें संस्करण के तहत जून 2020 से मई 2021 के बीच 70 देशों में 88 फीसदी वैश्विक इंटरनेट यूज़र्स को शामिल किया गया है. रिपोर्ट कहती है कि लगातार ग्यारहवें वर्ष वैश्विक स्तर पर इंटरनेट स्वतंत्रता कम हुई है.

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(फोटो: रॉयटर्स)

फ्रीडम ऑफ द नेट रिपोर्ट डिजिटल प्लेटफॉर्म मानवाधिकारों की स्थिति का वार्षिक विश्लेषण करती है. इस रिपोर्ट के 11वें संस्करण के तहत जून 2020 से मई 2021 के बीच 70 देशों में 88 फीसदी वैश्विक इंटरनेट यूज़र्स को शामिल किया गया है. रिपोर्ट कहती है कि लगातार ग्यारहवें वर्ष वैश्विक स्तर पर इंटरनेट स्वतंत्रता कम हुई है.

(फोटोः रॉयटर्स)

नई दिल्लीः फ्रीडम हाउस की ताजा फ्रीडम ऑफ द नेट रिपोर्ट का ताजा संस्करण जारी किया गया है, जिसमें दुनियाभर के कई देशों में इंटरनेट की स्वतंत्रता का उल्लेख किया गया है.

रिपोर्ट में बीते साल ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ भारत सरकार के टकराव का भी उल्लेख है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना से निपटने को लेकर भारत सरकार की आलोचना संबंधी ट्वीट्स को प्लेटफॉर्म से हटाने के लिए सरकार ने ट्विटर पर दबाव डाला था. सरकार ने सत्तारूढ़ पार्टी और इसके नेताओं द्वारा शेयर किए जा रहे ट्वीट को मैनिपुलेटेड मीडिया टैग लगाने से ट्विटर को रोका और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ टकराव बढ़ने पर ट्विटर के विकल्प के तौर पर बेंगलुरू स्थित माइक्रोब्लॉगिंग साइट ‘कू’ का रुख किया.

बता दें कि फ्रीडम ऑफ द नेट रिपोर्ट डिजिटल प्लेटफॉर्म पर मानवाधिकारों के स्टेटस का वार्षिक विश्लेषण करती है.

इस रिपोर्ट के 11वें संस्करण के तहत जून 2020 से मई 2021 के बीच 70 देशों में 88 फीसदी वैश्विक इंटरनेट यूजर्स को शामिल किया गया है.

फ्रीडम हाउस की रिपाेर्ट के अनुसार, लगातार 11वें वर्ष वैश्विक स्तर पर इंटरनेट स्वतंत्रता कम हुई है. रिपोर्ट में नए आईटी नियमों और मनमाने ढंग से इंटरनेट पर पाबंदी सहित डिजिटल रेगुलेशन को लेकर मोदी सरकार की आलोचना की है.

डिजिटल बाजार का ‘सरकारी नियमन’

रिपोर्ट में विस्तृत रूप से वैश्विक रूझान का उल्लेख किया गया है, जिसके तहत सरकारें यूजर्स के लिए अधिक व्यापक अधिकार हासिल करने और उत्पीड़न, चरमपंथ और धोखाधड़ी जैसे हानिकारक ऑनलाइन प्रभावों को कम करने के नाम पर टेक कंपनियों पर सरकारी और राजनीतिक जिम्मेदारियां थोपती हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, बीते साल भारत सरकार का ट्विटर के साथ लगातार टकराव बना रहा. भारत सरकार की आलोचना करने वाले ट्वीट को प्लेटफॉर्म से हटाने और ट्विटर को सत्तारूढ़ भाजपा पार्टी या इसके नेताओं द्वारा पोस्ट किए गए ट्वीट को मैनिपुलेटेड टैग के रूप में चिह्नित करने से रोकने को लेकर लगातार सोशल मीडिया कंपनी पर दबाव बनाया.

रिपोर्ट में अब तक के सबसे खराब स्थिति का विवरण देते हुए कहा गया है, ‘अगर सरकार के पास सेंसर करने, सर्विलांस, लोगों को नियंत्रित करने की क्षमता है तो इससे व्यापक स्तर पर राजनीतिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है, लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नुकसान पहुंच सकता है और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी और हाशिए पर मौजूद आबादी का दमन हो सकता है.’

नए आईटी नियमों से समस्याएं

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के नए सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 रिपोर्ट की कवरेज अवधि के दौरान सबसे व्यापक पहल में से एक है.

रिपोर्ट में कहा गया कि इन नए नियमों के तहत शिकायत निवारण तंत्र, एआई-आधारित मॉडरेशन टूल्स की तैनाती, मुख्य अनुपालन अधिकारी सहित तीन स्थानीय अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान है.

रिपोर्ट के मुताबिक, नए आईटी नियमों में देश की संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरनाक कंटेंट पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है कि लेकिन इसे स्पष्ट तरीके से परिभाषित नहीं किया गया है.

रिपोर्ट में किसान आंदोलन के दौरान ट्विटर और केंद्र सरकार के बीच के टकराव का भी उल्लेख है. इस दौरान भारत सरकार के खिलाफ पत्रकारों और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के पोस्ट को हटाए जाने के बारे कहने पर ट्विटर ने नए आईटी नियमों का पालन करने को लेकर अपने मूल फैसले को पलट दिया.

परिणामस्वरूप ट्विटर को पुलिस जांच, कर्मचारियों पर आरोप जैसे उत्पीड़न का सामना करना पड़ा.

इंटरनेट पाबंदी

रिपोर्ट में ‘फ्री एक्सप्रेशन इन डेंजर’ शीर्षक के तहत कहा गया है कि भारत उन लगभग 20 देशों में शामिल है, जहां इस साल समाज के एक निश्चित वर्ग के लिए इंटरनेट सेवा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.

केंद्र सरकार के तीन विवादित कृषि कानूनों के विरोध में इस साल जनवरी और फरवरी में किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली में कई बार इंटरनेट सेवा बाधित की गई.

रिपोर्ट में कहा गया, दिल्ली में एक बार में इंटरनेट पाबंदी से पांच करोड़ से ज्यादा मोबाइल सब्सक्राइबर प्रभावित हुए.

रिपोर्ट में 2020 में भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच तनाव के दौरान बड़ी संख्या में चीनी मोबाइल ऐप्स पर पाबंदी का जिक्र किया गया है.

रिपोर्ट में कहा गया कि इससे पता चलता है कि किस तरह भूराजनीतिक तनाव अभिव्यक्ति की आजादी और सूचना तक पहुंच को नष्ट कर सकता है.

फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन इंटरनेट पाबंदी के मामले में सबसे बुरी स्थिति में है. चीन में ऑनलाइन असहमति के लिए जेल की सजा का प्रावधान है. अमेरिका में लगातार पांचवें साल इंटरनेट स्वतंत्रता में गिरावट आई है.

रिपोर्ट कहती है कि इन 70 में से 45 देशों में एनएसओ ग्रुप के पेगासस, सेलेब्राइट, सर्किल्स और फिन फिशर जैसे स्पाईवेयर के इस्तेमाल का संदेह है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)