24 करोड़ डोज़ क्या हो जाएंगे बर्बाद, ग़रीबों को नहीं मिलेगी कोरोना वैक्सीन?

  • स्टेफ़नी हेगार्टी
  • बीबीसी की जनसंख्या संवाददाता
दिल्ली में वैक्सीन का इंतेज़ार करते लोग

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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दुनिया के नेताओं से कहा है कि वो अगले साल सितंबर तक 70 फ़ीसदी आबादी को कोरोना वैक्सीन लगवाने की प्रतिबद्धता ज़ाहिर करें. लेकिन शोध से पता चला है कि अमीर देशों के पास ज़रूरत से अधिक वैक्सीन का स्टॉक है और जल्द ही ये एक्सपायर हो सकता है.

बहार इस साल जब ईरान जाने के लिए विमान में बैठीं तो वो अपने पिता को देखने के लिए उत्साहित थीं.

उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि जल्द ही कोरोना वायरस अपनी दूसरी लहर में ईरान में और उनके परिवार में तबाही मचाने वाला है.

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सबसे पहले अपने बेटे की शादी की तैयारी कर रहे एक पारिवारिक मित्र बीमार पड़ीं, जल्द ही उनकी मौत हो गई. फिर उनके पिता के एक चाचा और फिर एक बूढ़ी चाची की मौत हुई. बहार को अपनी दादी की सेहत की चिंता हो रही थी जिन्हें वैक्सीन का एक डोज़ तो लग चुका था लेकिन दूसरा नहीं लग सका था.

बीस साल की बहार अमेरिका में रहती हैं और अप्रैल में उन्होंने कोरोना वैक्सीन लगवाई थी.

बहार

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बहार जानती थीं कि वो बहुत हद तक सुरक्षित हैं लेकिन उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान अधिकतर समय अपने पिता के घर में ही बिताया. वो चिंतित थीं कि कोविड का अगला निशाना कौन बनेगा.

ईरान में वैक्सीन की सप्लाई बहुत अधिक नहीं हैं और उनके परिवार के कुछ लोगों का ही टीकाकरण हुआ है.

अमेरिका लौटने के कुछ दिन बाद ही उन्हें पता चला कि उनके पिता बीमार हैं. वो दूर थीं और बेहद डरी हुईं थीं.

बहार कहती हैं, "मुझे बचने का अपराध बोध सा था. मैंने अमेरिका में फ़ाइज़र की दो डोज़ लीं थीं और मैं सुरक्षित लौट आई लेकिन मेरे पिता और कई परिजन संक्रमित हो गए थे. मेरे पिता तो बच गए लेकिन कई रिश्तेदार नहीं बच सके. इस बात से मुझे बहुत दुख होता है."

कोरोना वैक्सीन

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आधी आबादी अभी भी असुरक्षित

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दुनिया भर में वैक्सीन आपूर्ति के आँकड़ों का असंतुलन एक डराने वाली वास्तविकता पेश करता है. दुनिया में आधी से अधिक आबादी (वाले देशों) को अभी वैक्सीन की एक डोज़ भी नहीं मिली है.

ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक दुनियाभर में कोविड वैक्सीन का 75 फ़ीसदी स्टॉक सिर्फ़ दस देशों के पास है.

वहीं द इकोनॉमिस्ट की इंटेलिजेंस यूनिट की गणना के मुताबिक दुनियाभर में उत्पादित कुल वैक्सीन का आधे से अधिक स्टॉक दुनिया की 15 फ़ीसदी आबादी के पास पहुंचा है.

दुनिया के सबसे अमीर देशों ने सबसे ग़रीब देशों की तुलना में सौ गुणा अधिक टीके लगाए हैं.

इस साल जून में जी-7 देशों- कनाडा, फ़्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका, इटली और जापान ने अगले एक साल के भीतर दुनिया के ग़रीब देशों को एक अरब डोज़ देने का संकल्प लिया.

इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट की वैक्सीन आपूर्ति को लेकर प्रकाशित ताज़ा रिपोर्ट की प्रमुख लेखक और पूर्व राजनयिक अगाथा डेमारेज़ कहती हैं, "मैंने जब ये देखा तो मैं हंसी, मैं ऐसी बहुत सी बातें सुनती हूं लेकिन आप जानते हैं कि ऐसा कभी होने वाला नहीं है."

इस संकल्प में ब्रिटेन ने दस करोड़ डोज़ देने का वादा किा था लेकिन अभी तक वह 90 लाख से कुछ कम डोज़ ही दान कर पाया है

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 58 करोड़ डोज़ देने का वादा किया था, अभी तक अमेरिका 14 करोड़ ही दे पाया है.

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वहीं यूरोपीय यूनियन ने 25 करोड़ डोज़ इस साल के अंत तक देने का वादा किया था, ईयू ने अब तक अपने वादे की 8 प्रतिशत डोज़ ही दी हैं.

मध्यम आय वर्ग वाले दूसरे देशों की तरह ही ईरान ने भी कोवैक्स से वैक्सीन ख़रीदी थी. विश्व स्वास्थ्य संगठन के समर्थन वाली इस वैक्सीन स्कीम का मक़सद वहां वैक्सीन पहुंचाना है जहां इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है.

कोवैक्स वैक्सीन ख़रीदती है और फिर इन्हें मध्यम आय वाले देशों को बेचती है और ग़रीब देशों को दान करती है.

लेकिन कोवैक्स के सामने आपूर्ति का बड़ा संकट खड़ा हो गया. कोवैक्स को इस साल के अंत तक दो अरब डोज़ वितरित करनी थीं और इनमें से अधिकतर उसे भारत की एक निर्माता कंपनी से मिलनी थी.

लेकिन जब मई में भारत में कोरोना की दूसरी लहर आई तो सरकार ने वैक्सीन के निर्यात पर रोक लगा दी.

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इसके बाद से कोवैक्स अमीर देशों से दान में मिल रही वैक्सीन डोज़ पर निर्भर है. जिन देशों को कोवैक्स वैक्सीन पहुंचा रही हैं उनमें से कुछ ऐसे हैं जहां अभी दो प्रतिशत आबादी को भी वैक्सीन नहीं लगी है.

कोवैक्स के एक केंद्र की प्रबंध निदेशक ओरेलिया ग्यूएन कहती हैं, "आजकल हमें कम वैक्सीन कम तादाद में मिलती है और इसकी एक्सपायरी डेट भी जल्द होती है, साथ ही हमें अधिक नोटिस भी नहीं दिया जाता है, जिसकी वजह से इन्हें ऐसे देशों में पहुंचाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है जो इनका इस्तेमाल समय रहते कर पाएं."

दुनियाभर में वैक्सीन की सप्लाई पर रिसर्च कर रही वैज्ञानिक विश्लेषण कंपनी एयरफिनीटी के मुताबिक ये एक वैश्विक सप्लाई समस्या नहीं हैं क्योंकि अमीर देश ज़रूरत से अधिक वैक्सीन जमा कर रहे हैं. वैक्सीन निर्माता इस समय हर महीने 1.5 अरब डोज़ बना रहे हैं. यानी इस साल के अंत तक 11 अरब डोज़ बन जाएंगी.

एयरफिनीटी के लीड रिसर्चर डॉ. मैट लिनले कहते हैं, "बीते तीन चार महीनों में निर्मात क्षमता काफ़ी बढ़ी है, वो बड़ी तादाद में वैक्सीन का उत्पादन कर रहे हैं."

डॉ लिनले कहते हैं, यदि दुनिया के सबसे अमीर देश बूस्टर डोज़ भी लगाएं तब भी उनके पास ज़रूरत के मुक़ाबले 1.2 अरब डोज़ अधिक हैं.

डॉ. लिनले कहते हैं कि यदि बहुत जल्द ही दान नहीं किया गया तो इनमें से 24.1 करोड़ डोज़ बहुत जल्द ही एक्सपायर (बर्बाद) हो जाएंगी.

ऐसी संभावना है कि ग़रीब देश उन वैक्सीन डोज़ को स्वीकार नहीं कर पाएंगे जिनके एक्सपायर होने में कम से कम दो महीनों का वक़्त न हो.

डॉ. लिनले कहते हैं, "मैं ये नहीं कह सकता कि अमीर देश लालची हैं, बल्कि ऐसा हो सकता है कि उन्हें पता न हो कि कौन सी वैक्सीन अधिक प्रभावी होगी और इसलिए उन्होंने कई वैक्सीन ख़रीदीं."

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अपने शोध के ज़रिए एयरफ़िनीटी सरकारों को ये बताना चाहती है कि वैक्सीन की सप्लाई की समस्या नहीं हैं और उन्हें आवश्यकता से अधिक वैक्सीन ख़रीदने की ज़रूरत नहीं है.

बल्कि सरकारों के पास अभी जो अतिरिक्त वैक्सीन हैं उन्हें दान करना बेहतर है और भविष्य में ज़रूरत होने पर उन्हें वैक्सीन मिल जाएगी.

डॉ. अगाथा कहती हैं, "वो नहीं चाहते कि किसी मुश्किल परिस्थिति में वो तैयार न हों. घरेलू राजनीति का दबाव भी है क्योंकि बहुत से वोटर वैक्सीन को दान करने से नाख़ुश हो सकते हैं, यदि उन्हें ऐसा लगा कि उनके लिए देश में वैक्सीन मौजूद नहीं है और दूसरे देशों को दी जा रही हैं."

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वहीं ब्रिटेन का कहना है कि उसके पास वैक्सीन का भंडार नहीं है और उसने ऑस्ट्रेलिया के साथ चालीस लाख डोज़ साझा करने का समझौता किया है, ये वैक्सीन इस साल के अंत में ऑस्ट्रेलिया के कोटे से वापस कर दी जाएगी.

स्वास्थ्य और सामाजिक देखभाल विभाग के एक प्रवक्ता कहते हैं, "ब्रिटेन में वैक्सीन का प्रबंधन बहुत ध्यान से किया जा रहा है और वैक्सीन के लिए योग्य हर व्यक्ति को जल्द से जल्द वैक्सीन लगाने की व्यवस्था की गई है."

वहीं कोवैक्स से जुड़ी ओरेलिया ग्यूएन कहती हैं कि सिर्फ़ सरकारों का ही क़दम उठाना काफ़ी नहीं है.

वे कहती हैं, "वैक्सीन निर्माताओं को भी कोवैक्स के प्रति अपनी सार्वजनिक प्रतिबद्धताओं को पूरा करना होगा और उन देशों के साथ हुए द्विपक्षीय समझौतों पर हमें प्राथमिकता देनी होगी जिनके पास पर्याप्त वैक्सीन हैं."

वे कहती हैं कि यदि इस समय वैक्सीन निर्माता हर महीने डेढ़ अरब डोज़ बना रहे हैं तो सवाल ये है कि ग़रीब देशों के पास इतनी कम वैक्सीन क्यों पहुंच रही हैं.

"जहां कोवैक्स की ज़रूरत सबसे अधिक है वहां सरकारों को वैक्सीन की लाइन में अपनी जगह कोवैक्स से बदल लेनी चाहिए ताकि हमें वो वैक्सीन जल्द प्राप्त हो सकें जिनका हमने ऑर्डर दिया है."

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बहार और उनके परिवार के लिए ये सब सिर्फ़ आँकड़े नहीं है बल्कि परिजनों और रिश्तेदारों की जानें हैं जो दांव पर लगी हैं.

हर दूसरे दिन उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति की कहानी पता चलती है जो अब इस दुनिया में नहीं है.

जब यूनिवर्सिटी में उनके दोस्त वैक्सीन न लगवाने की बात करते थे तो वो पहले वैक्सीन लगवाने के तर्क दिया करतीं थीं लेकिन अब वे बहस नहीं करतीं.

"मैं अब बात को जाने देती हूं लेकिन जब लोग उस सहूलियत का इस्तेमाल नहीं करते जो उनके पास है तो ये देखकर दुख होता है."

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