विलास जोशी

दुनिया का एक सत्य यह है कि जन्म से मिले रिश्ते तो प्रकृति की देन हैं, लेकिन जीवन के सफर मेंं हम जो रिश्ते बनाते हैं, वह हमारी अमिट पूंजी होते हैं, बशर्ते उन्हेें दोनों तरफ से सहेजा जाए। रिश्ते और रास्ते तब खत्म होते है, जब पांव नहीं, दिल थक जाते हैं। एक सच यह भी है कि रिश्तों में जितनी दूरियां बढ़ती जाती हैं, घुटन उतनी ही अधिक बढ़ती है। एक बात यह भी महत्त्वपूर्ण है कि अगर हम दूसरों के बहकावे में न आकर अपने रिश्तों में किसी को गड़बड़ी न पैदा करने दें तो रिश्तों का पुल टूटने से बच सकता है।

जीवन की एक सच्चाई यह है कि हमें उन रिश्तों को हमेशा सहजना चाहिए जो हमें स्नेह और ऊर्जा देते हैं। मानवीय जीवन की सबसे बड़ी उलझन यह है कि हमें अपने रिश्तेदार चुनने की छूट नहीं है। हमने जिस परिवार में जन्म लिया, आमतौर पर उससे जुड़े लोग ही हमारे रिश्तेदार होते हैं। रिश्ते सहेजना और उनको निभाना एक बहुत कठिन काम है। जब रिश्तों में स्वार्थ जगह बना लेते हैं, तब उसकी नैया डगमगाने लगती है। जब दुनियादारी की बात आती है तो हर कोई पहले अपना हित साधने में लग जाता है और यहीं से रिश्तों में एक हल्की-सी दरार आने लगती है। रिश्तों को निभाने की बुनियाद इस बात पर ज्यादा निर्भर करती है कि हम अपनी आंख, कान और जुबान, हाथ-पैर और सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण बुद्धि कौशल का सकारात्मक ढंग से किस प्रकार उपयोग करते हैं।

जीवन में कई बार संकट आते हैं और हमारी परीक्षा लेते हैं कि हम उन स्थितियों को कैसे संभाल पाते हैं। एक अकाट्य सत्य यह है कि हर एक संकट एक विकल्प भी देता है। जब संकट आता है, तो दिमाग उससे बचने की तरकीबें बताता है। इस स्थिति के दौरान जो रिश्तेदार और मित्र हमारा साथ देते हैं, वे हमें जिंदगी भर याद रहते हैं। कहा भी जाता है कि अगर रिश्तों की पहचान करना है तो वह संकट काल में कीजिए। जिंदगी में रिश्तेदारियां चलती रहती हैं, लेकिन इस बीच आदमी अपनी निजी सफलता के लिए नया रास्ता खोजता रहता है। जिसे एक बार सफलता मिल जाती है, वह असफलता को अपने जीवन का एक खलनायक मानने लगता है।

अगर कोई व्यक्ति अपने निजी जीवन में किसी व्यवसाय में असफल हो जाता है, तो उसका असर उसके परिवार के साथ-साथ रिश्तेदारों और मित्रों पर भी पड़ता है। इसके चलते कई रिश्ते टूट जाते हैं या कमजोर हो जाते है और कई लोग मुंह फेर लेते हैं। कई लोग दबी जुबान में ही सही, लेकिन कहते जरूर हैं कि दुनिया में ऐसे लोग बहुत हैं जो ‘केवल चलती के यार’ होते हैं यानी असफल व्यक्ति का कोई दोस्त नहीं होता। बस यहीं रिश्तों की मिठास एक खटास में बदलने लगती है। हमें यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी क्षेत्र में मिली असफलता जीवन की अंतिम असफलता नहीं होती। ऐसे समय में आवश्यकता होती है सच्चे रिश्तों की, रिश्तेदारों की, जो हमारा हौसला कायम रखे। एक बेहतर दोस्त या रिश्तेदार व्यक्ति की नाकामी का सिरा कामयाबी की ओर मोड़ देता है और कोई स्वार्थी व्यक्ति अपने बर्ताव से अपने कामयाब दोस्त को एक नाकाम इंसान बना दे सकता है।

हमारा वर्तमान जीवन भौतिकवादी होता जा रहा है। हमारे पास आज भौतिक सुख पाने के सारे साधन हैं, पैसा और प्रतिष्ठा भी है। लेकिन इन सब सुख साधनों के होते हुए भी हम एक प्यासे हिरण की तरह अदृश्य ‘मृगजल’ यानी मृग-मरीचिका की तरफ दौड़ रहे हैं। जब हम इस प्रकार दौड़ते होते है, तब दुख और हताशा भी अदृश्य रूप में हमारे पीछे दौड़ती रहती है। नतीजनत, कभी-कभी हम उस सुख या आंनद को अनुभव नहीं कर पाते हैं, जो हमने मेहनत से हासिल किया होता है। जो लोग रिश्तों की डोर, उसकी महक और मिठास को अच्छे से जानते-समझते हैं, वे उन्हें मिले हुए सुख-आनंद को एक साधारण व्यक्ति बन कर हजम कर लेते हैं। इसके लिए आवश्यकता इस बात की है कि हम असाधारण सुख मिलने पर एक साधारण व्यक्ति बन कर रिश्तों को सहेजने की कला में पारंगत हो जाएं।

जो इंसान अपने दिमाग को अपने दिल पर हावी नहीं होने देते, वे रिश्तों की महक की कीमत को जानते हुए उन्हें जाया नहीं जाने देते। बल्कि प्यार से बांध कर रखते हैं। दरअसल, रिश्ते मोती की तरह होते हैं। अगर गिर जाए तो उन्हें झुक कर उठा लेना चाहिए। जिसके पास रिश्तों का ‘शामियाना’ होता है, वहां तनाव, अवसाद, नाराजगी और रूठने जैसी बातें स्थान नहीं बना पातीं। जब तक रिश्तों की नदी में स्नेह और प्यार का जल झर-झर बहता रहता है, तब तक वहां खुशियों के फूलों की महक फैलती रहती है। हमें चाहिए कि हम रिश्तों में प्यार का निवेश बढ़ाएं। खुद को समय देने के साथ-साथ रिश्तों को महकाने के लिए अपनों को भी समय दें। ाबसे अच्छा रिश्ता वह है जो मनमुटाव के बाद भी संवाद का रास्ता न छोड़े।