घाटे से जूझ रही एअर इंडिया को बेचने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। 15 सितंबर को इसे खरीदने की इच्छुक कंपनियों के लिए बोली लगाने की आखिरी तारीख थी। इस दिन तक टाटा समूह और स्पाइस एअरलाइंस ने इसके लिए बोली लगाई है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो दिसंबर तक एअर इंडिया को बेचने की प्रक्रिया पूरी हो सकती है।

एअर इंडिया के अधिग्रहण के लिए सरकार के पास कई कंपनियों ने संपर्क किया, जिसमें सबसे बड़ा नाम टाटा समूह का है। टाटा के साथ ही स्पाइसजेट के अध्यक्ष अजय सिंह ने भी बोली लगाई है। अगर टाटा समूह एअर इंडिया को खरीदता है, तो 68 साल बाद टाटा दोबारा एअर इंडिया का मालिक बनेगा।

सरकार एअर इंडिया को बेच क्यों रही है? वर्ष 2007 में सरकार ने एअर इंडिया और इंडियन एअरलाइंस का विलय कर दिया था। विलय के पीछे सरकार ने ईंधन की बढ़ती कीमत, निजी एअरलाइन कंपनियों से मिल रही प्रतियोगिता को वजह बताया था। हालांकि, साल वर्ष 2000 से लेकर 2006 तक एअर इंडिया मुनाफा कमा रही थी, लेकिन विलय के बाद परेशानी बढ़ गई। कंपनी की आय कम होती गई और कर्ज लगातार बढ़ता गया। कंपनी पर 31 मार्च 2019 तक 60 हजार करोड़ से भी ज्यादा का कर्ज था। वित्त वर्ष 2020-21 के लिए अनुमान लगाया गया था कि एअरलाइन को नौ हजार करोड़ का घाटा हो सकता है।

वर्ष 2018 के बाद जनवरी 2020 में नए सिरे से प्रक्रिया शुरू की गई। इस बार 76 फीसद की जगह सौ फीसद हिस्सेदारी बेचने का फैसला लिया गया। कंपनियों को 17 मार्च 2020 तक ‘एक्सप्रेशन आॅफ इंटरेस्ट’ (ईओआइ) जमा करने को कहा गया, लेकिन कोरोना की वजह से उड्डयन उद्योग पर बुरा असर पड़ा, इस वजह से कई बार तारीख को आगे बढ़ाया गया और 15 सितंबर 2021 आखिरी तारीख निर्धारित की गई। सरकार एअर इंडिया की 100 फीसद हिस्सेदारी बेच रही है। इसमें एअर इंडिया एक्सप्रेस की भी 100 फीसद हिस्सेदारी शामिल है। साथ ही माल ढुलाई और ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी की 50 फीसद हिस्सेदारी शामिल है।

विमानों के अलावा एअरलाइन की संपदा, कर्मचारियों के लिए बनी हाउसिंग सोसायटी और हवाई अड्डे की पार्किंग जैसी जगहें भी सौदे का हिस्सा होंगी। नए मालिक को भारतीय हवाई अड्डों पर 4400 घरेलु और 1800 अंतरराष्ट्रीय ‘लैंडिंग’ और ‘पार्किंग स्लॉट’ मिलेंगे। साथ ही विदेशी हवाई अड्डों पर भी करीब नौ सौ स्लॉट मिलेंगे। 31 मार्च 2019 तक कंपनी पर 60,074 करोड़ रुपए का कर्ज था। जनवरी 2020 में ‘दीपम’ द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, एअरलाइंस को खरीदने वाले को 23,286 करोड़ रुपए का कर्ज चुकाना होगा। बाकी के कर्ज को सरकार की कंपनी एअर इंडिया एसेट होल्डिंग्स को हस्तांतरित किया गया है।

इस बार बोली लगाने वालों में टाटा समूह भी है। वर्ष 1932 में जेआरडी टाटा ने देश में टाटा एअरलाइंस की शुरुआत की थी, लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दुनियाभर में उड्डयन क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ था। योजना आयोग ने सुझाव दिया कि सभी एअरलाइन कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाए। मार्च 1953 में संसद ने ‘एअर कॉरपोरेशंस’ अधिनियम पारित किया।

इसके पारित होने के बाद देश में काम कर रही आठ एअरलाइंस का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। इसमें टाटा एअरलाइंस भी शामिल थी। सभी कंपनियों को मिलाकर इंडियन एअरलाइंस और एअर इंडिया बनाई गई। एअर इंडिया को अंतरराष्ट्रीय और इंडियन एअरलाइंस को घरेलू उड़ानें संभालने का जिम्मा दिया गया। अगर एअर इंडिया को टाटा ग्रुप खरीद लेता है, तो यह एक तरह से एअर इंडिया की घर वापसी होगी।

क्या हुआ था 2018 में

वर्ष 2018 में सरकार ने एअर इंडिया के विनिवेश की तैयारी की थी। फैसला लिया था कि सरकार एअर इंडिया में अपनी 76 फीसद हिस्सेदारी बेचेगी। इसके लिए कंपनियों से ‘एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट’ (ईओआइ) मंगवाए गए थे। जिसे जमा करने की आखिरी तारीख 31 मार्च 2018 थी, लेकिन निर्धारित तारीख तक सरकार के पास एक भी कंपनी ने दस्तावेज जमा नहीं किए थे।