उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए सभी दलों ने तैयारी शुरू कर दी है। इन चुनावों में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ेंगी। हालांकि 90 के दशक में एक समय ऐसा भी आया था जब सपा-बसपा साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरी थीं। इस चुनाव के बाद दोनों पार्टियां मिलकर सरकार बनाने में भी कामयाब हुई थीं और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने थे।

मुलायम सिंह के मुख्यमंत्री रहते हुए मायावती पर उनके कामकाज में दखल देने के भी आरोप लगते थे। वहीं, दूसरी तरफ सियासी गलियारों में चर्चा थी कि मायावती और कांशीराम से मुलायम सिंह यादव डरते भी थे कि कहीं वो अपना समर्थन वापस न ले लें। पत्रकार रहे राजीव शुक्ला ने तब बीएसपी सुप्रीमो मायावती से एक इंटरव्यू में इस बारे में सवाल किया था। राजीव शुक्ला ने पूछा था, ‘कांशीराम जी से मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव इतना नहीं डरते हैं, जितना आपसे डरते हैं। उन्हें लगता है कि आप समर्थन वापस ले लेंगी।’

मायावती ने दिया था ऐसा जवाब: मायावती ने कहा था, ‘ऐसा नहीं है, ये लोगों की अपनी-अपनी सोच हो सकती है। वह मुझसे और हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष से भी डरते हैं। जिन लोगों को ये लगता है कि मुख्यमंत्री सिर्फ आपसे डरते हैं, कांशीराम से नहीं। आप खुद ही देख लीजिए कि वह मेरे साथ कांशीराम से भी कितने भयभीत थे। कांशीराम जी का गुस्सा शायद सीएम साहब ने पहली बार देखा होगा। गलत बात को गलत तो हम शुरुआत से ही कहते हैं। अब उसका कोई भी नतीजा हो बहुजन समाज पार्टी हमेशा सच के साथ ही खड़ी होती है।’

बता दें, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने साल 1993 में मिलकर चुनाव लड़ा था। 422 सीटों वाली उत्तर प्रदेश विधानसभा में दोनों ने 420 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। इन चुनावों में दोनों पार्टियों के गठबंधन को 176 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। वहीं, राम मंदिर की लहर के बीच बीजेपी ने 177 पर जीत हासिल की थी।

बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए दोनों दलों ने अन्य विजयी उम्मीदवारों को भी अपने साथ मिलाया और मुलायम सिंह यादव को सूबे की कमान सौंप दी गई थी। हालांकि ये गठबंधन लंबे समय तक नहीं चल सका था और साल 1995 में सपा से अलग होकर मायावती सीएम बन गई थीं। मायावती भी लंबे समय तक मुख्यमंत्री के पद पर नहीं रह सकीं। इसके बाद 21 सितंबर 1997 को बीजेपी के दिवंगत नेता कल्याण सिंह सीएम बन गए थे।