पंजाब का अगला मुख्यमंत्री कौन, सिद्धू, बाजवा या फिर रंधावा? - प्रेस रिव्यू

पंजाब

इमेज स्रोत, Getty Images

पंजाब में कांग्रेस विधायक दल ने राज्य के नए मुख्यमंत्री के चुनाव का फ़ैसला कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर छोड़ दिया है. हालांकि सीएम पद के लिए कांग्रेस के चार नेताओं- सुनील जाखड़, नवजोत सिंह सिद्धू, सुखजिंदर सिंह रंधावा और प्रताप सिंह बाजवा के नाम की सबसे अधिक चर्चा और संभावना जतायी जा रही है.

पंजाब में अगले साल फरवरी महीने में विधानसभा के चुनाव होने हैं और ऐसे में जो भी मुख्यमंत्री बनेगा उसका कार्यकाल कुछ महीनों का ही होगा.

अगर साल 2017 के चुनावों को आधार बनाकर देखें तो साल 2022 के जनवरी महीने से ही आचार संहिता लागू कर दी जाएगी. ऐसे में जो भी नेता पंजाब का नया मुख्यमंत्री बनेगा उसके पास करिश्मा दिखाने के लिए महज़ 12 सप्ताह से कुछ ही अधिक समय होगा.

सुनील जाखड़

इमेज स्रोत, NARINDER NANU

इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार, पूर्व पीसीसी अध्यक्ष सुनील जाखड़ के नाम को लेकर संभावना जतायी जा रही है. अगर जाखड़ सीएम बनते हैं तो 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के बाद यह पहली बार होगा जब राज्य में कोई हिंदू मुख्यमंत्री होगा.

सुनील जाखड़ किसान परिवार से आते हैं और पंजाब के हिंदू समुदाय में भी उनकी पकड़ है. जिसका दोहरा लाभ उनके पक्ष में जा सकता है.

जाखड़ अबोहर के जाने-माने ज़मींदार हैं और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ के बेटे हैं. 67 वर्षीय कांग्रेस नेता अबोहर निर्वाचन क्षेत्र (2002-2017) से तीन बार विधायक रहे हैं और उन्होंने गुरदासपुर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी किया है.

सुनील जाखड़ के राजनीतिक करियर को झटका तब लगा जब वह 2017 के विधानसभा चुनाव में अबोहर से भाजपा उम्मीदवार से हार गए.

हालांकि 2017 में उन्हें राज्य कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किया गया लेकिन 2019 में उन्हें एक और चुनावी हार का सामना करना पड़ा जब वह भाजपा के उम्मीदवार सनी देओल से गुरदासपुर लोकसभा सीट हार गए.

पंजाब

इमेज स्रोत, Hindustan Times

छोड़कर पॉडकास्ट आगे बढ़ें
दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर (Dinbhar)

वो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख़बरें जो दिनभर सुर्खियां बनीं.

दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर

समाप्त

62 साल के सुखजिंदर सिंह रंधावा, कैप्टन अमरिंदर सिंह की कैबिनेट में जेल और सहकारिता मंत्री हैं.

पंजाब के माझा क्षेत्र के गुरदासपुर ज़िले के रहने वाले रंधावा तीन बार के कांग्रेस विधायक रहे हैं और 2002, 2007 और 2017 में निर्वाचित हुए हैं. वह राज्य कांग्रेस के उपाध्यक्ष और एक जनरल सेक्रेटरी के पद पर रह चुके हैं. वह एक कांग्रेस परिवार से आते हैं. उनके पिता संतोख सिंह दो बार राज्य कांग्रेस अध्यक्ष थे और माझा क्षेत्र में मशहूर शख्सियत भी.

सुखजिंदर सिंह रंधावा, बादल परिवार के ख़िलाफ़ बहुत आक्रामक रहे हैं. रंधावा ने 2015 में पंजाब में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी और उसके बाद पुलिस फ़ायरिंग में दो युवकों की मौत के मामलों में आरोपियों पर मुक़दमा न चलने का मुद्दा उठाया था.

बाद में नवजोत सिंह सिद्धू के सुर में सुर मिलाते हुए उन्होंने चुनावी वादों को पूरा ना कर पाने का आरोप लगाते हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह के ख़िलाफ़ खुला विद्रोह भी किया.

गुरदासपुर ज़िले के 64 वर्षीय प्रताप सिंह बाजवा भी सीएम पद के संभावित उम्मीदवारों में से हैं. वह राज्य के सबसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं में से एक हैं और वर्तमान में पंजाब से राज्यसभा सांसद भी हैं.

पंजाब

इमेज स्रोत, Hindustan Times

प्रताप सिंह बाजवा के पिता सतनाम सिंह बाजवा भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे और मंत्री रह चुके थे.

प्रताप सिंह बाजवा के छोटे भाई फ़तेह जंग सिंह बाजवा भी मौजूदा कांग्रेस विधायक हैं. जबकि उनकी पत्नी चरणजीत कौर बाजवा भी पिछली विधानसभा में विधायक रही हैं.

बाजवा राज्य कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे हैं और 1994 से 2007 के बीच राज्य की विभिन्न कांग्रेस सरकारों में तीन बार विधायक और मंत्री रह चुके हैं.

वह गुरदासपुर से लोकसभा सांसद भी रहे हैं.

नवजोत सिंह सिद्धू के कांग्रेस में आने के बाद से जिस तरह घटनाक्रम बदले हैं वो किसी से छिपा नहीं है.

पंजाब

इमेज स्रोत, Hindustan Times

नवजोत सिंह सिद्धू प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वर्तमान अध्यक्ष हैं. वह कैप्टन अमरिंदर सिंह की कैबिनेट में मंत्री पद पर भी थे लेकिन बाद में उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया था. बाद में उन्होंने कैप्टन अमरिंदर सिंह के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया था और कई सार्वजनिक मंचों पर उनके और उनकी सरकार के ख़िलाफ़ बयानबाज़ी भी की थी.

एक पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर और एक टेलीविजन कॉमेडी शो के मेज़बान रह चुके सिद्धू, अमरिंदर सिंह के विरोध के बावजूद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने और अब उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने में भी कामयाब रहे हैं. यह सबकुछ महज़ पांच महीने के भीतर हुआ है.

अमृतसर लोकसभा क्षेत्र से तीन बार के सांसद रह चुके और भाजपा के राज्यसभा के लिए मनोनीत सदस्य रह चुके सिद्धू इन नामों की फ़ेहरिश्त में भले ही सबसे कम उम्र के हों लेकिन उनके नाम की चर्चा सबसे अधिक है

2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सिद्धू बीजेपी छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए. बाकी तीन संभावित उम्मीदवारों की तरह वह भी एक कांग्रेस परिवार से आते हैं.

राहुल गांधी

इमेज स्रोत, Hindustan Times

कैसे हुआ ये परिवर्तन

पंजाब के नेतृत्व को लेकर काफी लंबे समय से सुगबुगाहट शुरू हो गई थी लेकिन बीते दिन सबकुछ साफ़ हो गया. अमरिंदर सिंह ने यह कहते हुए राज्यपाल को अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया कि वह अपमानित महसूस कर रहे हैं.

लेकिन इस परिणाम का अंदाज़ा काफी हद तक शुक्रवार को लग गया था जब शुक्रवार दोपहर को पार्टी महासचिव अजय माकन के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मिलने गए. उनके पास राज्य के कम से कम 60 कांग्रेस विधायकों के हस्ताक्षर वाला एक दस्तावेज़ भी था.

हिंदुस्तान टाइम्स ने जानकारों के हवाले से लिखा है कि शुक्रवार सुबह लिए गए हस्ताक्षरों से पता चल गया था कि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपने ही विधायक दल का समर्थन नहीं मिला.

इस बात पर यक़ीन करने की एक वजह यह भी है कि अमरिंदर सिंह ने खुद स्वीकार किया कि ज्यादातर विधायक आमतौर पर वही करते हैं जो पार्टी आलाकमान उनसे चाहता है.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चुनाव से पहले यह पार्टी ही तय करती है कि कौन चुनाव लड़ेगा और कौन नहीं. इसलिए ऐसा होना कोई आश्चर्य की बात नहीं.

राहुल गांधी और माकन की मुलाक़ात के बाद पंजाब में राजनीति तेज़ी से बदली.

राहुल गांधी ने माकन को पार्टी के कानून विशेषज्ञ अभिषेक मनु सिंघवी से परामर्श करने के लिए कहा. डर ये था कि अमरिंदर सिंह पंजाब विधानसभा को भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं. साथ ही राज्य के प्रभारी पार्टी महासचिव हरीश रावत को सीएलपी की बैठक बुलाने के लिए कहा गया था.

बघेल

इमेज स्रोत, Hindustan Times

कांग्रेस शासित दूसरे राज्यों में भी नेतृत्व को लेकर संशय और उथल-पुथल

पंजाब में हुए राजनीतिक बदलाव के बाद कांग्रेस शासित अन्य राज्यों में भी उथल-पुथल मच गई है.

द हिंदू के अनुसार, नेतृत्व को लेकर पंजाब में मची हलचल के बाद कांग्रेस के हलकों में यह सवाल पूछा जाने लगा है कि क्या आने वाले समय में छत्तीसगढ़ में भी नेतृत्व परिवर्तन देखने को मिल सकता है.

17 सितंबर को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से यह सवाल भी पूछा गया था. हालांकि उन्होंने इसका कोई जवाब नहीं दिया और इसे टाल दिया.

उन्होंने सिर्फ़ इतना कहा था, "हमारे प्रभारी पी.एल. पुनिया ने इस संबंध में एक बयान दिया था और वह बयान अंतिम है."

लेकिन राहुल गांधी ने भूपेश बघेल के साथी और स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव के साथ अपने किये गए वादे को पूरा करने के इच्छुक हैं, जिसमें उन्होंने ढाई साल बाद मुख्यमंत्री बदलने की बात कही थी.

बदलाव की समयसीमा 16 जून ही थी लेकिन ना तो आलाकमान फैसला कर पाया है और न ही बघेल ने पद छोड़ने की बात कही.

कई लोगों का मानना है कि राहुल गांधी की छत्तीसगढ़ की प्रस्तावित यात्रा में देरी भी इसीलिए हुई क्योंकि आलाकमान नेतृत्व को लेकर फ़ैसला नहीं कर पाया है.

वहीं राजस्थान में भी अशोक गहलोत सरकार में कैबिनेट विस्तार के मामले पर फिलहाल कोई फ़ैसला होता नहीं दिख रहा है.

इस बारे में पूछे जाने पर 16 सितंबर को अजय माकन ने कहा था कि अगर मुख्यमंत्री अस्वस्थ नहीं होते और उन्हें एंजियोप्लास्टी नहीं करवानी पड़ती तो विस्तार हो जाता.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)