कैप्टन अमरिंदर सिंह क्या पंजाब कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन सकते हैं
- अतुल संगर
- संपादक, बीबीसी पंजाबी सेवा
अपने ही बुने जाल में बुरी तरह फंसने के बाद पंजाब कांग्रेस अब उस जाल को ख़ुद ही खोलने की कोशिश कर रही है.
इस बीच पार्टी ने एक तरफ़ अपना कीमती वक़्त खोया और अपनी छवि को ख़ुद ही नुक़सान पहुंचाया, तो दूसरी तरफ़ साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों में जीत हासिल कर सरकार बना सकने की संभावना को भी ख़तरे में डाल दिया है.
कांग्रेस हाई कमान के एक फ़ैसले के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए शर्मनाक़ स्थिति पैदा हो गई थी और उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने का फ़ैसला लिया.
इससे पहले कांग्रेस ने एक ट्वीट कर जानकारी दी थी कि कई विधायकों की मांग पर केंद्रीय पर्यवेक्षकों के नेतृत्व में पंजाब कांग्रेस के विधायकों की एक बैठक शनिवार को होनी है.
इस पर अमरिंदर सिंह ने कहा कि पंजाब में मेरे नेतृत्व में कांग्रेस काम कर रही है और मुझे ही इसकी जानकारी नहीं दी गई.
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कैप्टन से पल्ला झाड़ना चाहती थी कांग्रेस?
पंजाब की राजनीति में अपना अलग दबदबा रखने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह प्रदेश में पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेताओं में शुमार हैं. वो कुल नौ साल तक मुख्यमंत्री के तौर पर प्रदेश का नेतृत्व कर चुके हैं.
प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. उससे महज़ कुछ महीने पहले अमरिंदर सिंह के अपमानित महसूस कर पद से इस्तीफ़ा देने से पार्टी को चुनाव में कोई फायदा होगा, ऐसा नहीं लगता.
कांग्रेस के आला नेताओं और मंत्रियों से बात करने के बाद उसका खेल स्पष्ट दिखता है.
कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार के ख़िलाफ एंटी-इंकम्बेंसी अधिक है. पार्टी में कई नेताओं को लगता है कि अगर कैप्टन को कुर्सी से अलग किया गया जाएगा तो पार्टी के ख़िलाफ़ एंटी-इंकम्बेंसी भी काफी हद तक उनके साथ ख़त्म हो जाएगी. ऐसे में आने वाले पांच महीनों के भीतर यदि चुनाव हुए तो पार्टी के लिए जीत का रास्ता साफ़ हो सकता है.
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सिद्धू ने असंतोष को बनाया हथियार
लेकिन साल भर पहले प्रदेश में न तो कांग्रेस के लिए और न ही कैप्टन के लिए स्थिति इतनी बुरी थी.
ऐसी चर्चा थी कि सरकार तक लोगों की पहुंच कम हो गई है, सरकार कई काम कर पाने में नाकाम रही है और सरकार के कुछ वादे आधे अधूरे रह गए हैं. असंतोष इतना अधिक नहीं था कि एक दिन ज्वालामुखी की तरह फट पड़े.
लेकिन इस असंतोष को ज्वालामुखी का रूप देने का पूरा श्रेय जाता है क्रिकेटर से राजनेता बने नवजोत सिंह सिद्धू को जो पहले ही कैप्टन से नाराज़ चल रहे थे.
पाकिस्तान जा कर सिद्धू वहां के सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा से गले मिले थे जिसके लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उनकी कड़ी आलोचना की थी. सिद्धू का कहना था कि बाजवा ने उनसे कहा था कि पाकिस्तान भारत और पाकिस्तान के बीच करतारपुर कॉरिडोर को हकीक़त बनते देखना चाहते हैं.
करतारपुर साहेब सिख धर्मावलंबियों का जानामाना धार्मिक स्थल है. पहले सिख गुरु, गुरु नानक ने यहां अपनी ज़िंदगी के आख़िरी कुछ साल बिताए थे. ये जगह अब पाकिस्तान में है.
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सिद्धू कैबिनेट मंत्री हुआ करते थे लेकिन कैबिनेट की बैठकों में और बाहर सरकार की आलोचना करने और सरकार के साथ मतभेद होने के कारण सिद्धू ने दो साल में ही इस पद से इस्तीफ़ा दे दिया था.
हालांकि बीते एक साल में नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने यूट्यूब चैनल में कैप्टन के नेतृत्व वाली सरकार की काफी आलोचना की. उन्होंने कैप्टन अमरिंदर सिंह पर जनता से किए वादे पूरे न करने का आरोप लगाया और उनके ख़िलाफ़ तैयार हो रही एंटी-इंकम्बेंसी को और हवा दी.
देखा जाए तो अकेले सिद्धू ने वो कर दिया जो अकाली दल के सुखबीर सिंह बादल और आम आदमी पार्टी के भगवंत मान साथ आकर भी नहीं कर सके.
हालांकि इसका मतलब ये कतई नहीं है कि कैप्टन के नेतृत्व वाली सरकार का प्रदर्शन बीते चार सालों में बेहतरीन रहा था.
कैप्टन सरकार का प्रदेश में नशे के कारोबार पर लगाम लगाने, सभी घर में कम से कम एक व्यक्ति को नौकरी देने, किसानों का बचा कर्ज़ माफ़ करने और साल 2014-15 में बरगाड़ी में हुई बेअदबी की घटना में दोषियों को सज़ा दिलवाने का वादा पूरा नहीं हो सका.
कैप्टन बदलने से क्या मिलेगी जीत?
साल 2015 में बरगाड़ी गांव के गुरुद्वारा साहिब के बाहर भद्दी भाषा वाले पोस्टर लगाए और सिखों के पवित्र माने जाने वाले गुरु ग्रंथ साहेब के साथ बेअदबी की. इस घटना के बाद सिखों में व्यापक स्तर पर रोष फैल गया था और कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए थे.
पूरे न किए जा सके वादों को लेकर सिद्धू ने अपनी ही सरकार के लिए मांगों की एक लिस्ट बनाई और इसके लिए सरकार की आलोचना की.
दिलचस्प बात ये है कि उन्हें गांधी परिवार का पूरा साथ मिला और पंजाब प्रदेश कांग्रेस के तनाव को घर-घर में चर्चा का मुद्दा बनाने वाले को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंप दी गई.
लेकिन इससे आगे बढ़ाना अब कांग्रेस के लिए बेहद मुश्किल हो सकता है. चार महीनों में पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं.
भले ही पंजाब कांग्रेस एक नए मुख्यमंत्री के चेहरे के साथ मैदान में उतरे लेकिन उसके साथ मंत्री और विधायक वही रहेंगे जो पहले थे और जिनसे जनती की नाराज़गी है. ऐसे में उसके लिए ये साबित करना मुश्किल होगा कि अब वो बदल चुके हैं और उन पर फिर से भरोसा किया जा सकता है.
- ये भी पढ़ें - सिद्धू क्यों बोले- तुम आप में आओगे तो कोई बात नहीं...
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कांग्रेस नेताओं का मानना है कि सुखबीर सिंह बादल और अन्य विरोधी पार्टियों के नेताओं के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए सिद्धू मुख्यमंत्री का चेहरा बन सकते हैं.
लेकिन अभी ये देखना बाकी है कि पंजाब में कांग्रेस अगले चार महीनों में ऐसा क्या हासिल करती है जो वो बीते चार सालों में न कर सकी, ताकि वो पंजाब के वोटरों को ये बता सके कि उस पर एक बार फिर भरोसा किया जा सकता है.
माना जा रहा है कि इन चार महीनों के लिए पार्टी के लिए मुख्यमंत्री का नया चेहरा पूर्व प्रदेश कांग्रेस समिति प्रमुख सुनील जाखड़ हो सकते हैं. लेकिन शायद लंबे वक्त के लिए पार्टी के अभियान के नेतृत्व नवजोत सिंह सिद्धू करें और अगर पार्टी को बहुमत मिला तो वही पार्टी के लिए मुख्यमंत्री का नया चेहरा बनें.
हालांकि अब तक मिली जानकारी के अनुसार अगला मुख्यमंत्री कौन होगा इसका फ़ैसला पार्टी हाई कमान को करना है.
लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह ने फिलहाल अपने सभी विकल्प खुले रखे हैं और कहा कि भविष्य में उनकी राजनीति की दिशा क्या होनी चाहिए इसके लिए वो अपने सहयोगियों के साथ चर्चा करेंगे.
उन्होंने कहा, "जब सही वक्त आएगा मैं अपने विकल्प का इस्तेमाल ज़रूर करूंगा."
अमरिंदर सिंह का ये बयान इस बात की ओर इशारा है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नौ साल रह चुके कैप्टन पंजाब में अपने सहयोगियों के बीच अभी भी खासी पकड़ रखते हैं और अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर सकते हैं.
ऐसे में चुनाव होने में कम ही वक़्त बचा है और कांग्रेस के लिए आगे का रास्ता कांटों भरा होना लगभग तय है.
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