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चीन के बाद रूस का तालिबान को सपोर्ट, पुतिन ने कही ये बात

अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के साथ ही कई देश ऐसे हैं जो तालिबानी सरकार को मान्यता नहीं दे रहे हैं वही कुछ देशों  ने तालिबान के साथ बेहतर संबंधों की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं. चीन और पाकिस्तान के बाद अब रूस भी तालिबान से सकारात्मक रिश्तों की पहल कर चुका है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने हाल ही में कहा है कि रूस को तालिबान के साथ मिलकर काम करना होगा. पुतिन ने चीन और रूस के नेतृत्व वाले सुरक्षा ब्लॉक, शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में ये बात कही है. 

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Vladimir putin, Photo credit: reuters
Vladimir putin, Photo credit: reuters
स्टोरी हाइलाइट्स
  • चीन के बाद रूस ने भी तालिबान का दिया साथ
  • रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने दिया बड़ा बयान

अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के साथ ही कई देश ऐसे हैं जो तालिबानी सरकार को मान्यता नहीं दे रहे हैं वही कुछ देशों  ने तालिबान के साथ बेहतर संबंधों की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं. चीन और पाकिस्तान के बाद अब रूस भी तालिबान से सकारात्मक रिश्तों की पहल कर चुका है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने हाल ही में कहा है कि रूस को तालिबान के साथ मिलकर काम करना होगा. पुतिन ने चीन और रूस के नेतृत्व वाले सुरक्षा ब्लॉक, शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में ये बात कही है. 

ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में आयोजित सम्मेलन में पुतिन ने वीडियो लिंक के सहारे अपनी बात रखी थी. पुतिन ने कहा कि रूस ने अफगानिस्तान को लेकर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में समर्थन दिया है. इसके अलावा दुनिया के प्रभावशाली देशों को भी अफगानिस्तान के हालातों को स्थिर करने पर विचार करना ही चाहिए. गौरतलब है कि चीन के बाद रूस एक ऐसा शक्तिशाली देश है जिसने तालिबान को खुले-आम सपोर्ट किया है. 

चीन और रूस के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं तालिबान के साथ संबंध

माना जा रहा है कि अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद चीन और रूस इस देश में अपने आपको स्थापित करने की कोशिशें कर सकते हैं. चीन तो पहले ही इसके लिए पहल कर चुका है. यूरोप और एशिया में अपना प्रभाव छोड़ने के लिए चीन अपनी एक महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ड एंड रोड इनशिएटिव(बीआरआई) पर काम कर रहा है. इसी का हिस्सा है चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरीडोर.

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इस व्यापारिक नेटवर्क को लेकर हाल के सालों में ईरान, रूस, ताजिकिस्तान जैसे देश अपनी दिलचस्पी दिखा चुके हैं लेकिन अमेरिका के कब्जे में होने के चलते अफगानिस्तान इस प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं बन पा रहा था. अब अमेरिका के जाने के बाद चीन को उम्मीद है कि तालिबान के साथ मिलकर वो अपने प्रोजेक्ट को पूरा कर सकता है. हालांकि चीन के लिए कई चुनौतियां भी हैं. 

वही अगर रूस की बात की जाए तो मध्य एशिया के देशों में अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी खत्म होने के बाद वो अफगानिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ा सकता है. अफगानिस्तान में अपार खनिज संसाधन की मौजूदगी भी एक बड़ा फैक्टर हो सकती है. रूसी राजनयिकों ने काबुल में तालिबान को सामान्य लोग बताते हुए कहा था कि अफगानिस्तान की राजधानी अब पहले से अधिक सुरक्षित हो गई है. 
 


 

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