दूरसंचार के क्षेत्र में सौ फीसद विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की मंजूरी से इस क्षेत्र में तेजी से सुधार की उम्मीद की जा रही है। अभी तक इसमें उनचास फीसद एफडीआइ की इजाजत थी। दरअसल, पिछले कुछ समय से दूरसंचार कंपनियां काफी दबाव महसूस कर रही थीं। प्रमुख दूरसंचार कंपनियों पर बड़ी देनदारियां हैं। सरकार लगातार उन्हें चुकाने का दबाव बनाती रही है, पर वे आंशिक भुगतान ही कर पाई हैं। हालांकि पिछले दिनों इसके लिए कंपनियों को अपने शुल्कों में बढ़ोतरी भी करनी पड़ी। इस तरह प्रतिस्पर्धी माहौल कुछ असंतुलित होता दिखने लगा।

ऐसे में सरकार ने न सिर्फ दूरसंचार कंपनियों में विदेशी निवेश की छूट, बल्कि उन्हें बकाया रकम चुकाने की चार साल की मोहलत भी दे दी है। अब समायोजित सकल राजस्व यानी एजीआर की परिभाषा भी बदली जाएगी, जिसके तहत कंपनियों को केवल दूरसंचार से संबंधित आय पर कर भुगतान करना पड़ेगा। उससे जुड़े दूसरे कारोबारों को उसमें समायोजित नहीं किया जाएगा। नए नियमों के तहत स्पेक्ट्रम खरीद को भी लचीला बनाया गया है और अगर कोई कंपनी चाहे, तो दस साल बाद अपना स्पेक्ट्रम वापस भी कर सकती है। स्वाभाविक ही सरकार के इस फैसले से दूरसंचार कंपनियां संतुष्ट और उत्साहित हैं। उनका कहना है कि इस फैसले से डिजिटल इंडिया के सपने को गति देने में काफी मदद मिलेगी।

दूरसंचार के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी वातावरण बनाने के उद्देश्य से निजी कंपनियों को बढ़ावा दिया गया था। उनमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा उनचास फीसद तक कर दी गई थी। निस्संदेह उसका लाभ भी मिला। निजी कंपनियों के इस क्षेत्र में उतरने से मोबाइल और इंटरनेट सेवाओं में तेजी आई। स्पेक्ट्रम नीलामी से सरकार का राजस्व भी बढ़ा। प्रतिस्पर्धी वातावरण का ही नतीजा है कि कंपनियों ने अपने ग्राहक बनाने के लिए अपनी दरों में लगातार कटौती की।

अब हर घर तक मोबाइल और इंटरनेट सेवा की पहुंच सबकी क्षमता के भीतर सुनिश्चित हो रही है और दूरसंचार के मामले में भारत दुनिया में सबसे तेजी से विकसित होता कारोबार बन चुका है। मगर पिछले कुछ समय से सरकार की नीतियों और नियामक कठोरता की वजह से कंपनियों पर देनदारियां बढ़ती गर्इं। उन्हें स्पेक्ट्रम की फीस चुकाना भारी पड़ने लगा। इसलिए अब तक कंपनियां अपनी दरों में कई बार बढ़ोतरी भी कर चुकी हैं, फिर भी आइडिया-वोडाफोन और एयरटेल देनदारियों के भारी बोझ से दबी हुई हैं। विदेशी निवेश आने से उन्हें काफी राहत मिलेगी और वे अपने कारोबार को नए ढंग से प्रतिस्पर्धी बनाने में जुट सकेंगी।

दूरसंचार के क्षेत्र में विस्तार पर केंद्र सरकार का जोर रहा है। डिजिटल इंडिया नारे के साथ बहुत सारी सरकारी योजनाओं और गतिविधियों को इंटरनेट से जोड़ा गया है। जब तक दूरसंचार की पहुंच सुगम और विश्वसनीय माध्यम के रूप में स्थापित नहीं किया जाएगा, तब तक लोगों को सही ढंग से योजनाओं का लाभ पहुंचा पाना संभव नहीं होगा।

अभी कोरोना काल में जिस तरह इंटरनेट के माध्यम से ही बच्चों की पढ़ाई-लिखाई संभव हो सकी, उसमें दूरसंचार कंपनियों की भूमिका ज्यादा महत्त्वपूर्ण साबित हुई है। मगर अब भी दूरदराज के गांवों तक तेज गति से इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध न होने से कई तरह की दिक्कतें पेश आ रही हैं। दुनिया के तमाम विकसित देश संचार के मामले में हमसे कहीं आगे हैं, जब तक उनकी गति से हम चलना नहीं सीखेंगे, कारोबार आदि के मामले में भी पीछे बने रहेंगे। इसलिए सरकार के ताजा फैसले से दूरसंचार कंपनियों को नई ऊर्जा मिलेगी और स्वाभाविक रूप से इसका लाभ आम नागरिकों को मिल सकेगा।