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कोरोना से बच्चों पर असर की ग्राउंड रिपोर्ट:स्मार्टफोन न होने से गांव का हर तीसरा बच्चा पढ़ाई से महरूम, शहरी बच्चों में मेंटल हेल्थ बड़ी समस्या

नई दिल्ली3 वर्ष पहलेलेखक: वैभव पलनीटकर
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कोविड के चलते पिछले 18 महीनों में स्कूली बच्चों की पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हुई है। शहरी इलाकों में तो कुछ हद तक डिजिटल लर्निंग की सुविधाएं ज्यादा रहीं, लेकिन गांवों में खास करके सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे सिर्फ कागजों पर ही 2 क्लास आगे बढ़े हैं, असल में वे कुछ भी नया नहीं सीख पाए हैं। डिजिटल डिवाइड की इस हकीकत को समझने के लिए दैनिक भास्कर शहरी और ग्रामीण इलाकों में ग्राउंड जीरो पर पहुंचा। इसके लिए हमने दिल्ली से करीब 80 किमी दूर UP के हापुड़ जिले के पूठा हुसैनपुर गांव और नोएडा के एक शहरी इलाके को चुना। वहां के पैरेंट्स, टीचर्स और बच्चों से बात की। आइए पहले हापुड़ चलते हैं...

हापुड़ जिले में स्थित पूठा हुसैनपुर दलित बहुल गांव है। यहां ज्यादातर परिवारों के बच्चे सरकारी स्कूल में ही पढ़ने जाते हैं। गांव के सरकारी स्कूल में जैसे ही हम दाखिल हुए वैसे ही बच्चों की हंसी-ठिठोली, शोर-शराबा हमारे कानों में गूंजने लगा। इसी गांव की रहने वाली 9 साल की महक चौथी क्लास में पढ़ती है और पिछले 18 महीने में एक भी दिन स्कूल नहीं गई है। घर पर इतनी गरीबी है कि दो वक्त के भोजन के लिए मां-पिता को संघर्ष करना पड़ता है।

लवेश जाटव पिछले 18 महीने में महज दो चार दिन ही स्कूल जा पाए हैं। उनके पापा मजदूरी करते हैं, स्मार्टफोन खरीदने के पैसे नहीं हैं।
लवेश जाटव पिछले 18 महीने में महज दो चार दिन ही स्कूल जा पाए हैं। उनके पापा मजदूरी करते हैं, स्मार्टफोन खरीदने के पैसे नहीं हैं।

महक की मां सरिता बताती हैं, "बेटी महक चौथी क्लास में पहुंच


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