तालिबान को लेकर हम जल्दबाज़ी में नहीं हैं: तुर्की

अर्दोआन

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तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत चाउसोलो ने कहा है कि वे तालिबान को मान्यता देने की जल्दबाज़ी में नहीं हैं.

उन्होंने कहा कि दुनिया को भी जल्दबाज़ी करने की ज़रूरत नहीं है. तुर्की के विदेश मंत्री ने कहा कि एक संतुलित रुख़ की ज़रूरत है. उन्होंने कहा कि तुर्की चीज़ों के हिसाब से फ़ैसला लेगा.

मेवलुत चाउसोलो ने कहा, ''हमलोग उम्मीद करते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान गृह युद्ध की तरफ़ नहीं बढ़ेगा. तुर्की में आर्थिक संकट और भुखमरी की स्थिति पैदा हो रही है. हमलोग काबुल एयरपोर्ट को लेकर क़तर और अमेरिका से बात कर रहे हैं.''

मंगलवार को तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में अंतरिम सरकार की घोषणा की है. मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद सरकार के मुखिया यानी प्रधानमंत्री होंगे और मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर उप प्रधानमंत्री होंगे. बरादर तालिबान के सह संस्थापक हैं. मुल्ला अब्दुल सलाम हनफी को भी उप प्रधानमंत्री बनाया गया है.

तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत चाउसोलो ने टर्किश प्रसारक एनटीवी को दिए इंटरव्यू में कहा कि तुर्की तालिबान से धीरे-धीरे संबंधों को आगे बढ़ाएगा.

जून महीने में तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने अमेरिकी राष्ट्रपति के सामने काबुल एयरपोर्ट की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी लेने का प्रस्ताव रखा था. लेकिन तालिबान के मज़बूत होने के कारण अफ़ग़ानिस्तान में सुरक्षा व्यवस्था ध्वस्त होती गई.

समावेशी सरकार की मांग

तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद

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मिडल-ईस्ट आई के अनुसार तुर्की और क़तर तालिबान के साथ काबुल एयरपोर्ट को लेकर समझौते के क़रीब हैं. कहा जा रहा है कि तुर्की काबुल एयरपोर्ट के बदले तालिबान को मान्यता दे सकता है.

मिडल ईस्ट आई का कहना है कि तुर्की एक निजी फर्म के ज़रिए काबुल एयरपोर्ट को सु़रक्षा मुहैया कराएगा. इसमें पूर्व सैनिकों और पुलिस बलों को ज़िम्मेदारी दी जाएगी.

चाउसोलो ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान की सरकार को समावेशी होना होगा. उन्होंने कहा कि अगर सरकार में केवल तालिबान ही होगा, तो दिक़्क़त होगी.

चाउसोलो ने कहा, ''गृह युद्ध में घिरने से अच्छा है कि तालिबान समावेशी सरकार का गठन करे. समावेशी सरकार को पूरी दुनिया स्वीकार करेगी. अफ़ग़ान महिलाओं को भी सरकार में ज़िम्मेदारी मिलनी चाहिए.''

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टर्किश विदेश मंत्री ने कहा, ''काबुल एयरपोर्ट के कैंपस के बाहर तालिबान सुरक्षा की ज़िम्मेदारी ले सकता है लेकिन एयरपोर्ट के भीतर सुरक्षा एक या दो देश या कोई निजी फ़र्म के हवाले कर देनी चाहिए''

चाउसोलो ने कहा, ''हमने अफ़ग़ानिस्तान में बड़ा निवेश किया है. हमने शिक्षा के साथ महिलाओं और बच्चों की सेहत में भी निवेश किया है. इन सबके बाद अफ़ग़ानिस्तान को छोड़ देना ग़लत होगा. जब कई देश अपने दूतावासों को काबुल में बंद कर रहे हैं तब तुर्की का वहाँ से निकलना ठीक नहीं होगा. हम ये नहीं कह रहे हैं कि हर चीज़ मैनेज कर लेंगे लेकिन हम संबंध नहीं तोड़ना चाहते.''

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टर्किश न्यूज़ वेबसाइट डाइकेन के अनुसार तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन ने कहा है कि काबुल एयरपोर्ट को लेकर अभी तक कुछ भी ठोस नहीं हुआ है.

अर्दोआन ने कहा, ''शुरुआत से ही हमारा सकारात्मक रुख़ रहा है. अभी तालिबान ने अंतरिम सरकार की घोषणा की है लेकिन कब तक रहेगी इसकी कोई गारंटी नहीं है. तुर्की की वहाँ की राजनीतिक प्रक्रिया पर नज़र बनी हुई है.''

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार क़तर और तुर्की काबुल एयरपोर्ट से घरेलू उड़ान शुरू कराने की कोशिश में लगे हुए हैं. लेकिन अभी तक तालिबान से कोई समझौता नहीं हो पाया है. क़तर के विदेश मंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल थानी ने कहा है कि अगले कुछ दिनों में एयरपोर्ट से उड़ानें शुरू हो जाएंगी.''

तालिबान की सरकार पर केवल तुर्की को ही शक नहीं बल्कि अफ़ग़ानिस्तान को लोग भी इसे टिकाऊ नहीं मान रहे हैं.

समस्या

अफ़ग़ानिस्तान

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रूसी समाचार एजेंसी ताश के अनुसार अफ़ग़ानिस्तान की जमीयत-ए-इस्लामी पार्टी ने कहा है कि तालिबान की नई सरकार से समस्या और जटिल होगी.

जमीयत के नेता सलाहुद्दीन रब्बानी ने कहा, ''सत्ता पर तालिबान के एकाधिकार से न केवल अफ़ग़ानिस्तान की शांति और स्थिरता प्रभावित होगी बल्कि देश का संकट और ख़तरनाक स्थिति तक पहुँच जाएगा.''

1990 के दशक में जब तालिबान ने पहली बार सत्ता संभाली थी तो सिर्फ़ तीन देशों के उसके साथ औपचारिक रिश्ते थे. वे देश थे- पाकिस्तान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात.

लेकिन अमेरिका में 11 सितंबर 2001 के हमलों के बाद ये संबंध ख़त्म हो गए. हालाँकि, सऊदी अरब से कुछ लोग कई सालों तक चोरी-छिपे फ़ंडिंग करते रहे. सऊदी अधिकारी इस बात इनकार करते हैं कि वे तालिबान को किसी भी औपचारिक रूप से मदद करते हैं.

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जैसे-जैसे अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की उपस्थिति ख़ुद अमेरिकियों के बीच अधिक अलोकप्रिय होती गई, ऐसे देशों के लिए काबुल के रास्ते खुलने लगे जो वहाँ कूटनीति में हाथ आज़माना चाहते थे.

क़तर और तुर्की ने अलग-अलग ढंग से तालिबान के साथ संपर्क साधा. जैसा ही साल 2011 में राष्ट्रपति बराक ओबामा के प्रशासन ने युद्ध को समाप्त करने के बारे में बोलना शुरू किया, क़तर ने शांति प्रक्रिया शुरू करते हुए तालिबान नेताओं की मेज़बानी की.

तुर्की का अफ़ग़ानिस्तान से एक मज़बूत ऐतिहासिक रिश्ता हैं. तुर्की एकलौता मुसलमान मुल्क था, जो नेटो सेनाओं के साथ अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद था.

विश्लेषकों के अनुसार तुर्की ने तालिबान से जुड़े कुछ चरमपंथियों के साथ घनिष्ठ खुफिया संबंध बनाए हैं. तुर्की की पड़ोसी देश पाकिस्तान से भी अच्छी दोस्ती है. पाकिस्तान के धार्मिक मदरसों से ही तालिबान का जन्म हुआ था.

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