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जम्मू-कश्मीर से ग्राउंड रिपोर्ट:अनुच्छेद 370 हटने के 2 साल बाद शांति की राह पर घाटी, पत्थरबाजी छोड़ विकास का भागीदार बन रहे युवा
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आतंक से जूझ रहे राज्य से केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद जम्मू-कश्मीर अब अमन-शांति की राह पर है। कश्मीर घाटी के चारों ओर तरक्की की बातें हो रही हैं। कभी पाकिस्तान का राग अलापने वाले आज आतंकवाद विरोधी दिख रहे हैं। यहां का युवा पत्थरबाजी-प्रदर्शन को छोड़ अब अमन से बैठना चाहता है। वह धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर के लिए विकास चाहता है और उन्हें पता है कि देश विरोधी लोग उन्हें इस्तेमाल करते थे, जो अब नहीं होगा। कश्मीरी युवा भारतीय सेना में भर्ती होकर देश सेवा करना चाहता है।
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35A को निरस्त किए जाने की दूसरी सालगिरह मनाई जा रही है। यहां की आबोहवा अब बदल चुकी है। पूरे जम्मू कश्मीर में आतंक के गढ़ रहे इलाकों से सरहद तक अमन की बयार बह रही है। हर ओर तरक्की की बातें हो रही हैं। कश्मीर में अब सड़कों पर न पत्थरबाज दिखते हैं और न ही राष्ट्र विरोधी प्रदर्शन करने वाले। गांवों-शहरों में सरकारी इमारतों से लेकर सरहद तक हर ओर तिरंगा लहरा रहा है, यहां तक कि लाल चौक पर भी तिरंगा देखने को मिलता है।
काम-धंधे में जुट रहे कश्मीरी युवा
आतंकवाद को दरकिनार कर युवा पीढ़ी काम-धंधे में जुटने लगी है। ज्यादातर युवा देश सेवा के लिए भारतीय सेना का रुख कर रहे हैं। पिछले दिनों सेना में भर्ती होने के लिए कश्मीर और जम्मू में बड़ी-बड़ी कतारें देखी गईं। कश्मीर में बच्चे सड़कों में खेलते हुए नजर आ रहे हैं। यहां अब फिल्मी सितारे भी दोबारा से रुख कर रहे हैं। आतंक की वजह से पीर पंजाल की सेवन लेक्स पर भी लोगों की आवाजाही कम हो गई थी, लेकिन अब दूर से आ रहे लोग यहां टेंट लगाकर मौज-मस्ती करते मिलेंगे।
कुछ इलाकों में आतंकी घटनाएं हो रही हैं, लेकिन सुरक्षा बलों के सख्त रुख के चलते ज्यादातर आतंकी और उनके मददगार गायब होने लगे हैं। बदले हालात में अब LoC पर भी शांति है। पाकिस्तान से समझौते के बाद दोनों ओर बंदूकें खामोश हैं। सेना ने उड़ी की आखिरी कमान पोस्ट लोगों के लिए खोल दी है। यहां लहराते 60 फीट ऊंचे तिरंगे के साथ आम लोगों के लिए खुला कैफे LoC के हालात को बयां करता है। अब यहां नागरिकों के आने पर सफेद झंडा नहीं लगाना पड़ता।
आतंक का गढ़ रहे बारामुला का माहौल भी बदला
श्रीनगर से बारामुला और उड़ी की ओर जाते पट्टन वैली में सेब के बागों में लोग काम में मशगूल हैं। कभी आतंक का गढ़ रहे बारामुला में भी माहौल बदला है। पत्थरबाजी के लिए बदनाम यहां के ओल्ड टाउन में अब हुड़दंगी नहीं दिखते हैं। यहां रहने वाले मुज्जफर बताते हैं कि झेलम में बहुत पानी बह चुका है। आतंकवाद से लोगों को कुछ मिला नहीं, सिर्फ तबाही हुई है। एक साल से यहां अमन है।
एक दूसरे शख्स ने सड़क के निचली ओर दफनाए आतंकियों की ओर इशारा कर कहा कि हुकूमत का संदेश सबकी समझ में आ रहा है। अब कोई बचाने नहीं आएगा। एक शख्स ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि कोरोना संकट में सेना उनकी बहुत मदद कर रही है।
दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग और पुलवामा में भी हालात काफी बदल रहे हैं। अनंतनाग के अनीश अहमद का कहना है कि आतंकवाद से भारी नुकसान हुआ है। युवा अब इस रास्ते पर नहीं जाना चाहते। कश्मीर के लोग खुद को संभालने की कोशिश कर रहे हैं। अनुच्छेद 370 का चंद लोगों ने फायदा उठाया। बदले माहौल में अब सड़कें बनने लगी हैं। विकास के और भी काम शुरू हुए हैं। वहीं, तारिक अहमद ने कहा कि हालात सामान्य हो रहे हैं। कुदरत ने हमें जन्नत बख्शी है, लेकिन दहशतगर्दी से घाटी बदनाम हो गई। अब लोगों को सब समझ में आ रहा है। उम्मीद है कि जल्द ही कश्मीर पर्यटकों से फिर गुलजार होगा।
कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं में काफी कमी आई
अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं में काफी कमी आई है। घाटी में साल 2019 में पथराव की 1,999 घटनाएं हुईं, जबकि 2020 में 255 बार ही पत्थरबाजी हुई। इस साल 2 मई को पुलवामा के डागरपोरा में मुठभेड़ के दौरान आतंकियों को बचाने के लिए लोगों ने पथराव किया। इसके बाद बारपोरा में 12 मई को भी नकाबपोशों ने पथराव किया था। इसके अलावा 2021 में पत्थरबाजी की कोई बड़ी घटना नहीं हुई। इससे पहले 2018 और 2017 में पत्थरबाजी की 1,458 और 1,412 घटनाएं दर्ज हुईं।
बदली आबोहवा में अब कश्मीरी पंडित भी लौटने लगे हैं। धार्मिक महत्त्व के मट्टन में कभी कश्मीरी पंडितों के 500 से ज्यादा परिवार रहते थे, लेकिन 1990 में बदले हालात ने उन्हें अपना घर-गांव छोड़ने पर मजबूर कर दिया। मट्टन के ऐतिहासिक मंदिर में सालों से सेवा कर रहे वयोवृद्ध सुरेंद्र खेर ने बताया कि कश्मीरी पंडित अब लौट रहे हैं। यहां कश्मीरी पंडितों के 20 परिवार हो गए हैं। करीब 30 साल पहले पलायन कर गए लोग फिर घाटी में मकान बना रहे हैं। उनका कहना है कि कश्मीर बदल रहा है। सभी अमन चाहते हैं।
पर्यटन कारोबारियों का कहना है कि इस साल शुरू में काफी सैलानियों ने घाटी का रुख किया। पहलगाम में पर्यटन से जुड़े फयाज और जावेद अहमद का कहना है कि जनवरी-फरवरी में बड़ी तादाद में पहुंचे पर्यटकों ने उम्मीद जगाई है। कोरोना की दूसरी लहर ने सब कुछ चौपट कर दिया, लेकिन आने वाले समय में फिर कश्मीर पर्यटकों की पहली पसंद होगा। उधर, श्रीनगर में डल झील किनारे, पीर पंजाल के पीर की गली भी सुबह-शाम रौनक दिखने लगी है।
राजौरी और पुंछ में शांति की प्रार्थना कर रहे लोग
LoC पर संघर्ष विराम के 6 महीने पूरे होने पर राजौरी और पुंछ में लोग शांति बने रहने की प्रार्थना कर रहे हैं। राजौरी में 120 किलोमीटर और पुंछ में 90 किलोमीटर तक फैली नियंत्रण रेखा से लगे गांवों में रहने वाले लोग सहमे हुए थे। उन्हें सीमा पर गोलाबारी में जान-माल के नुकसान का डर रहता था। राजौरी में नियंत्रण रेखा के सटे 50 से अधिक और पुंछ में करीब 30 गांव हैं। राजौरी के चार गांव घनी आबादी वाले हैं, जो कांटेदार तार के आगे स्थित हैं, जबकि आठ गांव पुंछ जिले में कंटीले तार से आगे स्थित हैं।
राजौरी के नौशहरा सेक्टर के डिंग के सरपंच रमेश चौधरी ने कहा कि हमारे गांव में आए दिन गोलाबारी होती थी। कठुआ से लेकर पुंछ तक गोलाबारी होती थी। पाकिस्थान संघर्ष विराम तोड़ता था। अब दोनों देशों ने एक साथ जो फैसला लिया, उससे लोगो में आज खुशी का महौल है। गोलाबारी के डर से हम फसल की बुआई और कटाई भी ठीक से नहीं कर पा रहे थे। अपने खेतो में नहीं जा पाते थे। कहीं आ जा नहीं सकते थे।
अनुमान लगाए जा रहे हैं कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने की तैयारी कर रही है। जम्मू-कश्मीर में परिसीमन भी किया जा रहा है, ताकि सभी को बराबर का हक मिले। कश्मीर को अपना और जम्मू को अपना हक मिले। यहां आने वाले समय में काफी बदलाव होगा। केंद्र कश्मीर में युवाओं को रोजगार देने का प्रयास कर रहा है। कश्मीर हो या फिर जम्मू बदलाव हो रहा है।
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