संसद में क्या सरकार बहस से भाग रही है और विपक्ष काम नहीं करने दे रहा?

  • सलमान रावी
  • बीबीसी संवादादाता
मोदी

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संसद के मानसून सत्र की शुरुआत ही हंगामे के साथ हुई क्योंकि ठीक एक दिन पहले ही इसराइली सॉफ्टवेयर पेगासस के ज़रिए अहम लोगों की जासूसी के आरोप लगे.

दोनों सदनों में विपक्षी दलों के नेता पेगासस और तीन कृषि बिलों के खिलाफ़ आवाज़ उठाते रहे और मांग करते रहे कि सरकार पेगासस और किसान बिलों पर पहले चर्चा कराए.

इन मुद्दों को लेकर विपक्षी दलों के नेताओं ने दोनों ही सदनों में 'काम रोको प्रस्ताव' भी पेश किए. लोकसभा में कांग्रेस के सांसद मणिकम टैगोर ने कार्य स्थगन प्रस्ताव पेश करते हुए पेगासस पर बहस की मांग की और कहा कि ये बहस प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की मौजूदगी में होनी चाहिए ताकि उनसे सवाल पूछे जा सकें.

दोनों सदनों की सूचीबद्ध विधायी कार्यवाही पर इस हंगामे की वजह से काफ़ी असर पड़ा लेकिन इस हंगामे के बीच ही सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण बिलों को पटल पर रखा और बिना किसी बहस के पारित भी करवा लिया.

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बिल जो बिना बहस के मिनटों में पारित हुए

विधायी कार्यों पर शोध करने वाली संस्था पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च ने मौजूदा मानसून सत्र को लेकर संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही का अध्ययन किया है.

संस्था का कहना है कि सत्र के पहले दिन यानी 19 जुलाई को विपक्ष के सदस्यों के हंगामे की वजह से दोनों सदनों में न तो 'शून्य काल' और न ही 'प्रश्न काल' संपन्न हो सका. इसका मतलब है कि ग़ैर-सूचीबद्ध मामलों की चर्चा नहीं हो सकी और न ही सांसद सवाल पूछ सके.

फिर 22 जुलाई को जब दोनों सदनों की कार्यवाही शुरू हुई तो 'शून्य काल' तो नहीं हो पाया, अलबत्ता लोकसभा में 'शून्य काल' के दौरान सिर्फ़ एक प्रश्न ही लिया जा सका.

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पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार अगले दिन तो राज्यसभा की कार्यवाही चली ही नहीं जबकि लोकसभा में लगभग 200 के आसपास प्राइवेट मेंबर्स बिल सूचीबद्ध थे जिन्हें हंगामे की वजह से पेश नहीं किया जा सका.

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार 19 जुलाई से लेकर 26 जुलाई तक लोकसभा में सिर्फ़ 10 प्रतिशत और राज्यसभा में सिर्फ 26 प्रतिशत कामकाज ही पूरा हो पाया.

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सप्ताह के आखिरी दिन यानी 30 जुलाई को लोकसभा की कार्यवाही को हंगामे की वजह से सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया गया. इस दौरान लोकसभा और राज्य सभा में विधायी कार्य नहीं के बराबर हो पाए. हालांकि सरकार ने इस हंगामे के बीच भी लोकसभा में दो और राज्यसभा में एक बिल पटल पर रखा लेकिन इन बिलों को पारित नहीं कराया जा सका.

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कुल मिलकर दोनों सदनों में सात ऐसे बिल थे जो बिना चर्चा के पास हो गए.

मानसून सत्र में 'नौवहन सहायता विधेयक 2021', 'आवश्यक रक्षा सेवा विधेयक, 2021', 'अंतर्देशीय पोत विधेयक 2021','फैक्टरिंग विनियमन संशोधन विधेयक 2021', 'राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमिता और प्रबंध संस्थान विधेयक 2021' और 'दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) अध्यादेश 2021' ऐसे सात विधेयक हैं जो बिना बहस के पारित हो गए.

पीआरएस की मृदुला रंगराजन के अनुसार सबसे कम समय 'दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता संशोधन अध्यादेश, 2021' बिल के पारित होने में लगा जो लोकसभा में पेश होने के 5 मिनटों में ही पारित हो गया. इसी तरह 'अंतर्देशीय पोत विधेयक 2021' भी सिर्फ़ 6 मिनटों में पारित हो गया.

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क्या कहता है सत्ता पक्ष और विपक्ष?

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दोनों सदनों में चल रहे गतिरोध के बीच 27 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दल के सभी सांसदों की बैठक बुलाई और सुझाव दिया कि भाजपा सांसद विपक्ष के सांसदों से "अच्छे संबंध रखें." उन्होंने भाजपा के सांसदों से ये भी कहा कि वो विपक्ष के सदस्यों के आरोपों का तार्किक जवाब दें.

संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी का कहना था कि सरकार भी नहीं चाहती है कि कोई भी बिल बिना चर्चा पारित हो. संसद में बोलते हुए उनका कहना था, "आम लोगों से जुड़े कितने सारे मुद्दे हैं जिन पर चर्चा होनी ही चाहिए. हम चर्चा के लिए तैयार हैं लेकिन विपक्ष इसे होने नहीं दे रहा है."

गुरुवार यानी 29 जुलाई को संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद पटेल और राज्यसभा में सदन के नेता पीयूष गोयल ने विपक्ष के नेता मलिकार्जुन खड़गे से मुलाक़ात भी की और दोनों सदनों में चल रहे गतिरोध को ख़त्म करने के लिए कहा लेकिन खड़गे का कहना है की दोनों मंत्रियों की ये मुलाक़ात "सिर्फ़ औपचारिक" थी.

सप्ताह के आखिरी दिन जहाँ सत्ता पक्ष के मंत्री, विपक्ष के नेताओं को मनाने की कोशिश में लगे रहे, वहीँ विपक्ष के सभी दलों के सदस्यों ने कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के कमरे में बैठक की और तय किया कि जब तक सरकार पेगासस मामले पर चर्चा नहीं करेगी तब तक दूसरी कोई विधायी कार्यवाही नहीं होगी.

लोकसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता अधीर रंजन चौधरी का कहना था कि सदन में जो कुछ हो रहा है 'वो सरकार की ज़िद' की वजह से ही हो रहा है.

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लेकिन सूचना-प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने सदन के गतिरोध के लिए कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों को ज़िम्मेदार ठहराया. उनका कहना था कि विरोध करने की भी अपनी सीमा होती है जिसे विपक्ष के सदस्यों ने लांघा है. उनका कहना था कि वो विपक्ष के सदस्य ही हैं जो सदन में चर्चा करने से भाग रहे हैं.

कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी कहते हैं कि सत्ता पक्ष पेगासस पर चर्चा कराने से भाग रहा है और सदन में पैदा हो रहे गतिरोध का इल्ज़ाम विपक्ष पर डाल रहा है. वो कहते हैं कि अगर सरकार पेगासस मामले पर चर्चा सदन में करने के लिए तैयार हो जाती है तो फिर विपक्ष भी अन्य सभी विधायी कार्यों को सुचारू ढंग से चलाने में सहयोग करेगा.

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राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, "स्वस्थ चर्चा संसदीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है. अफ़सोस की बात है कि कई ऐसी संसदीय परंपराएँ हैं जो अब ख़त्म होने या बेमानी होने के कगार पर पहुँच रहीं हैं."

वो कहते हैं, "सत्ता पक्ष के नेता ये कहते हैं कि पहले की सरकारें भी ऐसा ही करतीं थी लेकिन ये बताना ज़रूरी है कि कोई ग़लत करता है तो वही ग़लती परंपरा नहीं बननी चाहिए. नए संसद का भवन बने मगर पुरानी संसदीय परम्पराओं को संग्रहालय में रखने के प्रयास नहीं होना चाहिए."

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वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्त कहते हैं कि सरकार के पास बहुमत है और वो जानती है कि अपने विधेयक वो पारित करवा ही लेगी.

गुप्त कहते हैं, "बहुमत है तो चर्चा नहीं हो, ये नहीं होना चाहिए. कोई भी विधेयक हो, चर्चा से उसे और बेहतर तरीके से तराशा जा सकता है. लेकिन इस नए विधायी तरीक़े की खोज गुजरात में ही हुई थी जब वहां की विधानसभा में अगर सरकार को कोई महत्वपूर्ण या विवादित बिल पास करवाना होता था तो वो विपक्ष के तेज़-तर्रार और मुखर नेताओं को पहले निलंबित करवा देती थी. अब वही परंपरा वहां के नेता संसद में भी ले आए हैं."

जयशंकर गुप्त कहते हैं कि इससे भी ज़्यादा गंभीर विषय है संसद की समितियों की बेमानी हो जाना. मसलन, 'इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी' पर कांग्रेस के शशि थरूर की अध्यक्षता वाली आईटी समिति का ज़िक्र करते हुए कहते हैं, "सत्ता पक्ष के सांसद नहीं आए तो समझ में आता है. लेकिन सरकारी अधिकारी भी समिति के सामने नहीं पहुँचें, ये गंभीर बात है."

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