पाक अधिकृत कश्मीर में हाल में हुए चुनावों में इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ) ने जोरदार जीत हासिल कर ली। इससे पहले यहां नवाज शरीफ की पार्टी सत्ता में थी। इस जीत से इमरान खान खासे उत्साहित इसलिए भी हैं, क्योंकि उन्होंने यहां शिकस्त पंजाब के दिग्गज नेता नवाज शरीफ की पार्टी को दी है। हालांकि एक सच्चाई यह भी है कि पाक अधिकृत कश्मीर में सत्ता वही हासिल करता है जिसका नेशनल असेंबली में बहुमत होता है और जिसे सेना का पूर्ण समर्थन हासिल होता है। नवाज शरीफ की पार्टी भी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में सत्ता उस वक्त हासिल करने में सफल हो गई थी जब नवाज पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे। इमरान खान ने भी इसी परंपरा को दोहराया है। अगर इमरान खान प्रधानमंत्री नहीं होते और सेना का समर्थन नहीं मिला होता तो पाक अधिकृत कश्मीर में सत्ता हासिल करना उनके लिए आसान नहीं था।

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के चुनाव नतीजे कुछ कारणों से इमरान खान के लिए सुखद हैं। वे इस जीत की आड़ में अब अपनी सरकार की तमाम नाकामियों को छुपाने में जुट गए हैं। पाकिस्तान में आम चुनाव 2023 में होने हैं। इसके लिए इमरान हालिया चुनाव नतीजों को भुनाएंगे। पाकिस्तान लंबे समय से बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, महंगाई जैसी समस्याओं से जूझ रहा है और इमरान सरकार इन समस्याओं से निपटने में नाकाम रही है। इसके अलावा अंतराष्ट्रीय कूटनीति में भी उन्हें लगातार झटके लग रहे हैं। बेशक पाक अधिकृत कश्मीर में इमरान की पार्टी जीत गई हो, लेकिन कश्मीर मसले को लेकर उनका पलड़ा अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमजोर पड़ता जा रहा है। भारत ने कई इस्लामिक देशों को अपने पक्ष में कर पाकिस्तान की कूटनीति को बड़ा झटका दिया है। अफगानिस्तान का संकट भी इमरान के लिए बड़ा सरदर्द बनता जा रहा है। ऐसे में आने वाले वक्त में अपने को सत्ता में बनाए रखना इमरान के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है।

इमरान खान बतौर प्रधानमंत्री अभी तक विफल साबित हुए हैं। लेकिन उनकी पार्टी की सफलता यह जरूर है कि पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा के बाद पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में भी उन्हें सत्ता मिल गई है। वे अब सिंध की तरफ अपना ध्यान लगा रहे हैं जहां अभी तक (स्वर्गीय) बेनजीर भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को सत्ता से हटाना तमाम राजनीतिक दलों के लिए मुश्किल भरा काम रहा है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की जीत इमरान खान को सिंध में कितनी मदद देगी, यह तो समय ही बताएगा। क्योंकि जाति, बिरादरी, नस्ल और प्रांतों में विभाजित पाकिस्तान की राजनीति में इमरान खान की बिरादरी कमजोर है। वे पश्तून बिरादरी के हैं जिसका वर्चस्व खैबर पख्तूनख्वा में ही है। इमरान खान पर जाति, बिरादरी का कट्टर समर्थक होने का आरोप लगता रहा है।

पंजाब की राजनीति इमरान के लिए चुनौती भरी साबित होगी। खैबर पख्तूनखवा प्रांत पश्तून बिरादरी का वर्चस्व वाला है। यहां प्रांतीय असेंबली में इमरान खान के पास चौरानवे सीटें है। लेकिन पंजाब में नेशनल और प्रांतीय असेंबली के चुनाव में नवाज शरीफ की पार्टी ने इमरान की पार्टी को कड़ी टक्कर दी थी। आज भी पंजाब के ग्रामीण इलाकों में लोग बिरादरी और जाति के नाम पर वोट देते हैं। इमरान खान ने दक्षिण पंजाब में मजबूत बलूच जाति के उस्मान बुजदार को मुख्यमंत्री बना कर पंजाब की राजनीति में नया खेल शुरू किया। उन्होंने मजबूत जाट, राजपूत और अरैण बिरादरी को किनारे लगाने की कोशिश की। इमरान खान की इस राजनीति को पंजाब की राजनीति में हावी राजपूत, जाट, गुर्जर और अरैण जातियों ने स्वीकार नहीं किया। उतर पंजाब की राजनीति में राजपूत मजबूत हैं और मध्य पंजाब में जाट। दूसरी ओर, कश्मीरी मूल के होने के बावजूद नवाज शरीफ ने पंजाब की राजनीति में मजबूत जातियों को बड़ी चालाकी से साधा। 1980 और 1990 के दशक में चौधरी परिवार (चौधरी शुजात हुसैन और चौधरी परवेज इलाही) ने इन्हें पंजाब की राजनीति में चुनौती दी थी। लेकिन अंत में उन्हें नवाज शरीफ के साथ लंबे समय तक चलना पड़ा। हालांकि पंजाब की राजनीति में जाट कितने महत्त्वपूर्ण हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जाट बिरादरी से संबंधित इस चौधरी परिवार को न तो नवाज शरीफ नजरअंदाज कर पाए, न ही परेवज मुशर्रफ। आसिफ अली जरदारी भी इन्हें किनारे करने में कामयाब नहीं हुए। अब इमरान खान भी इस परिवार को साथ लेकर पंजाब की राजनीति कर रहे हैं।

पाकिस्तान की सत्ता संभालने के बाद इमरान खान के नाम कोई बड़ी उपलब्धि दर्ज नहीं हो पाई है। भ्रष्टाचार पर काबू पाने के लिए शुरू में तो इमरान ने लंबे-चौड़े दावे किए थे और भ्रष्टाचार के आरोप में नवाज शरीफ और उनकी बेटी मरियम नवाज को जेल भी भेजा था। पर इस मोर्चे पर इमरान खान बुरी तरह पिट गए। सच्चाई तो यह है कि पाकिस्तान में भ्रष्टाचार बढ़ा ही है। खुद इमरान पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। इमरान खान की बहन पर भी भ्रष्टाचार के आरोप हैं, विदेश में उनकी अघोषित संपत्ति का पता चला है। विपक्ष दलों का आरोप है कि इमरान खान ने अपनी बहन अलीमा खानम को विदेशों में मौजूद संपति पर लगने वाले कर से बचाने के लिए आयकर नियमों में संशोधन किया। इमरान की पार्टी से संबंधित पंजाब के कई विधायकों और खुद मुख्यमंत्री उस्मान बुजदार पर भी भ्रष्टाचार के आरोप हैं। पाकिस्तान का केंद्रीय जवाबदेही ब्यूरो इन मामलों की जांच कर रहा है।

इमरान के राज में पाकिस्तान की माली हालत और बदतर हुई है। जनता महंगाई और बेरोजगारी की मार झेलने को मजबूर है। अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक का अनुमान है कि इस साल पाकिस्तान की विकास दर 1.3 से 1.5 प्रतिशत के बीच रहेगी। हालांकि सरकार का दावा दो प्रतिशत के आसपास का है। महंगाई दर को लेकर पाकिस्तान सरकार का दावा है कि यह 6.5 प्रतिशत रहेगी, जबकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने नौ फीसद तक रहने की भविष्यवाणी की है। चूंकि अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां पाकिस्तान के अनुकूल नहीं हैं, इसलिए इमरान खान की चुनौतियां भविष्य में और बढ़ेंगी।

अफगानिस्तान में खराब होते हालात भी पाकिस्तान के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। इस समय पाकिस्तान के अंदर सबसे बड़ा निवेशक चीन है। चीन ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के तहत अरबों डालर का निवेश कर दिया है। स्थानीय आबादी इसके विरोध में है। क्योंकि स्थानीय लोगों को आर्थिक गलियारों से संबंधित परियोजनाओं में रोजगार तो मिला नहीं, बल्कि उनके संसाधन अलग से लूटे जाने लगे। हाल में खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में दासू पनबिजली परियोजना में नौ चीनी नागरिक बम धमाके में मारे गए। दासू पनबिजली योजना आर्थिक गलियारे की बड़ी परियोजना है। चीन ने इसे आतंकी हमला माना है। उधर, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा प्रांतों में सक्रिय और मजबूत होते अफगान तालिबान और इनसे जुड़े कई और संगठन हैं जो आर्थिक गलियारे के कई योजनाओं को निशाना बना सकते हैं। इससे चीन की चिंताएं बढ़ गई हैं। ग्वादर बंदरगाह पहले ही से बलूच राष्ट्रवादियों के निशाने पर है जो इमरान खान का जम कर विरोध कर रहे हैं। ऐसे हालात में इमरान खान की मुश्किलें बढ़ ही रही हैं। पाक अधिकृत कश्मीर में जीत से उन्हें क्या कुछ हासिल होगा, यह तो वक्त ही बताएगा।