भास्कर एक्सप्लेनर:बच्चों को गोद लेने के नियमों में होने जा रहा है बड़ा बदलाव, जानें राज्यसभा में पास हुए नए जुवेनाइल जस्टिस बिल से और क्या-क्या बदलेगा?

3 वर्ष पहलेलेखक: जयदेव सिंह
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बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया आसान होने जा रही है। इससे जुड़ा जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन) अमेंडमेंट बिल इसी हफ्ते राज्यसभा में पास हो गया। इस बिल के पास होने के बाद बच्चों की देखभाल और उन्हें गोद लेने के मामलों में जिलों के कलेक्टर/डीएम और एडीएम का रोल बढ़ गया है। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 में प्रस्तावित इन बदलावों का लोकसभा में विपक्ष ने भी समर्थन किया था। हालांकि, राज्यसभा में विपक्ष के पेगासस मामले पर हंगामे के बीच ये बिल पास हुआ।

जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 क्या है? अब नया बिल सरकार क्यों लेकर आई है? इस बिल के जरिए क्या बदलाव किए जा रहे हैं? कलेक्टर और एडीएम को इस बिल के बाद क्या अधिकार मिल जाएंगे? बाल अपराधियों के लिए इस बिल में क्या बदलाव किया गया है? इन सवालों का जवाब जानने के लिए हमने सीनियर एडवोकेट विराग गुप्ता से बात की। उनसे बातचीत के आधार पर इस पूरे मामले को समझते हैं...

जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 क्या है?
2012 में दिल्ली में निर्भया गैंगरेप के मामले में एक अपराधी जुवेनाइल था। वो तीन साल बाद छूट गया, जबकि निर्भया के परिवार का आरोप था कि उसने ही सबसे ज्यादा बर्बरता की थी। इसके बाद मांग उठने लगी कि जघन्य अपराध के मामलों में जुवेनाइल पर भी वयस्कों की तरह केस चले। इसी के बाद 2015 में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट आया। इसमें जघन्य अपराध के मामलों में 16 से 18 साल के बीच के जुवेनाइल पर वयस्कों जैसे केस चलाने का प्रावधान शामिल किया गया। इस एक्ट ने 2000 के किशोर अपराध कानून और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण अधिनियम) 2000 की जगह ली।

इस एक्ट में दूसरा बड़ा बदलाव बच्चों के गोद लेने से जुड़ा था। इसके बाद दुनियाभर में गोद लेने को लेकर जिस तरह के कानून हैं वैसे ही देश में भी लागू हुए। पहले गोद लेने के लिए हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेन्स एक्ट (1956) और मुस्लिमों के लिए गार्डियंस ऑफ वार्ड एक्ट (1890) का चलन था। हालांकि, नए एक्ट ने पुराने कानूनों की जगह नहीं ली थी। इस एक्ट ने अनाथ, छोड़े गए बच्चों और किसी महामारी का शिकार हुए बच्चों के गोद लेने की प्रोसेस को आसान किया।

अब इस बिल में बदलाव होने से क्या होगा?
पहला बदलाव बच्चों के गोद लेने से जुड़ा है, वहीं दूसरा बदलाव ऐसे अपराधों से जुड़ा है जिसमें IPC में न्यूनतम सजा तय नहीं है। दरअसल 2015 में पहली बार अपराधों को तीन कैटेगरी में बांटा गया- छोटे, गंभीर और जघन्य अपराध। लेकिन इस कानून में ऐसे मामलों के बारे में कुछ नहीं कहा गया था जिनमें न्यूनतम सजा तय नहीं है।

बिल में बदलाव के बाद मामले तेजी से निपटेंगे साथ ही जवाबदेही भी तय होगी। मौजूदा व्यवस्था में गोद लेने की प्रक्रिया कोर्ट के जरिए होती थी। इसकी वजह से इस प्रक्रिया में कई बार लंबा समय लग जाता था। इस बदलाव के बाद कई अनाथ बच्चों का तेजी से एडॉप्शन होगा और उन्हें घर मिल सकेंगे।

बिल को महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राज्यसभा में पेश किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि ये बिल सभी जिलों के डीएम, कलेक्टर की शक्तियों और जिम्मेदारी को बढ़ाएगा। इससे ट्रायल की प्रक्रिया तेज होगी। साथ ही गोद लेने की प्रक्रिया भी तेज होगी।

इस बदलाव की क्या जरूरत है?
इस बदलाव की वजह नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट (NCPCR) की रिपोर्ट है। 2020 में आई इस रिपोर्ट में देशभर के चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूट्स (CCIs) का ऑडिट किया गया था। 2018-19 में हुए इस ऑडिट में 7 हजार से ज्यादा चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूट्स (CCI) का सर्वे किया गया।

इसमें पाया गया कि 90% CCIs को NGO चलाते हैं। इन इंस्टीट्यूट्स में 1.5% ऐसे हैं जो जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के हिसाब से काम नहीं कर रहे थे। 29% में मैनेजमेंट से जुड़ी बड़ी खामियां थीं। 2015 में एक्ट आने के बाद भी 39% CCIs रजिस्टर तक नहीं हैं। सर्वे में सिर्फ लड़कियों के लिए बने CCIs 20% से भी कम थे। सर्वे में सबसे चौंकाने वाली बात ये आई कि देश में एक भी CCI ऐसा नहीं है जो जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के नियमों को 100% पालन करता हो।

इन CCIs की मॉनिटरिंग का सिस्टम भी अच्छा नहीं था। यहां तक कि लाइसेंस लेने के लिए अगर किसी चाइल्ड होम ने अप्लाई किया और तीन महीने के भीतर सरकार का जवाब नहीं आया तो भी उसे छह महीने के लिए डीम्ड रजिस्ट्रेशन मिल जाता था। भले सरकार से उसे इसकी अनुमति नहीं मिली हो। एक्ट में हुए बदलाव के बाद ऐसा नहीं हो सकेगा। अब कोई भी चाइल्ड होम बिना डीएम की मंजूरी के नहीं खोला जा सकेगा। CCIs में जिस तरह की अनियमितताएं मिली थीं, उसे देखते हुए इनकी मॉनिटरिंग का जिम्मा भी डीएम को दिया गया है। जिले में आने वाली सभी CCIs नियम कायदों का पालन कर रहे हैं ये देखना डीएम का काम होगा।

डीएम (कलेक्टर) को नए एक्ट में क्या शक्तियां मिलेंगी?
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत जिले में काम कर रहीं एजेंसियों के कामकाज की मॉनिटरिंग डीएम और एडीएम करेंगे। इनमें चाइल्ड वेलफेयर कमेटी, जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड, डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट्स और स्पेशल जुवेनाइल प्रोटेक्शन यूनिट शामिल हैं।

NCPCR की रिपोर्ट के बाद क्या CCIs पर कोई कार्रवाई भी हुई?
सर्वे में पाया गया कि कई CCIs में सफाई तक की बेहतर व्यवस्था नहीं थी। इनमें कई ऐसी CCIs भी शामिल थीं जिन्हें फॉरेन फंडिंग तक मिल रही है। सर्वे की रिपोर्ट आने के बाद महिला और बाल विकास मंत्रालय ने कई चाइल्ड वेलफेयर इंस्टीट्यूट्स को बंद किया है। करीब 500 गैरकानूनी चाइल्ड वेलफेयर इंस्टीट्यूट बंद कर दिए गए। ये इंस्टीट्यूट जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत रजिस्टर तक नहीं थे।

क्या चाइल्ड वेलफेयर कमेटियों (CWC) को भी मॉनिटर करने का कोई सिस्टम बनेगा?
डीएम CWC में शामिल सदस्यों का बैकग्राउंड चेक करेंगे। इनमें ज्यादातर सामाजिक कार्यकर्ता रहते हैं। इन लोगों की एजुकेशन क्वालिफिकेशन, संभावित क्रिमिनल बैकग्राउंड भी देखा जाएगा। अपॉइंट होने वाले किसी भी मेंबर पर चाइल्ड एब्यूज या चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज का कोई केस नहीं होना चाहिए। CWCs अपनी एक्टिविटीज के बारे में जिले के डीएम को लगातार बताती रहेंगी।

बाल अपराधों को लेकर भी क्या कोई बदलाव किया गया है?
2015 के एक्ट में बाल अपराध को तीन श्रेणियों में बांटा गया- जघन्य अपराध, गंभीर अपराध और छोटे अपराध। इसके लिए भारतीय दंड सहिंता (IPC) में किस अपराध के लिए वयस्कों को कितनी सजा है, इसे आधार बनाया गया। ऐसे जुवेनाइल जिन पर जघन्य अपराध का आरोप है और उनकी उम्र 16 से 18 साल के बीच है तो उन पर वयस्कों की तरह केस चलेगा। जघन्य, गंभीर अपराधों का कैटेगराइजेशन भी पहली बार हुआ। इससे ये अनिश्चितता खत्म हुई कि किस केस में जुवेनाइल पर वयस्क जैसे केस चलें, किस पर नहीं।

2015 के इस कानून में ऐसे मामलों के बारे में कुछ नहीं कहा गया था जिनमें न्यूनतम सजा तय नहीं है। नए बिल में इस तरह के अपराधों को गंभीर अपराधों में शामिल किया गया है।

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