सीवर की सफ़ाई करते हुए मरने वाले सरकारी गिनती में शामिल नहीं - फ़ैक्ट चेक

  • कीर्ति दुबे
  • बीबीसी संवाददाता
सीवर की सफ़ाई

इमेज स्रोत, AFP

केंद्र सरकार का कहना है कि बीते पाँच साल में मैनुअल स्केवेंजिंग (हाथ से नालों की सफ़ाई करते हुए) के दौरान किसी भी सफ़ाईकर्मी की मौत नहीं हुई है.

28 जुलाई को राज्यसभा में सामाजिक न्याय मंत्री रामदास आठवले ने मल्लिकार्जुन खड़गे और एल हनुमंतैया की ओर से पूछे गए एक सवाल जवाब में बताया कि ''बीते पांच वर्षों में मैनुअल स्केवेंजिंग से किसी मौत का मामला सामने नहीं आया है.''

लेकिन यह दिलचस्प है कि इस साल फरवरी में बजट सत्र के दौरान लोकसभा में एक लिखित जवाब में सामाजिक न्याय मंत्री रामदास आठवले ने ही बताया था कि बीते पांच साल में सेप्टिक टैंक और सीवर साफ़ करने के दौरान 340 लोगों की मौत हुई. यह डेटा 31 दिसंबर, 2020 तक का था.

साल 2020 में सरकार की ही संस्था राष्ट्रीय सफ़ाई कर्मचारी आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि साल 2010 से लेकर मार्च 2020 तक यानी 10 साल के भीतर 631 लोगों की मौत सेप्टिक टैंक और सीवर साफ़ करने के दौरान हो गई.

लेकिन अब सरकार ने कहा है कि बीते पांच साल में एक भी मौत मैनुअल स्केवेंजिंग के कारण नहीं हुई है.

वीडियो कैप्शन,

कुंभ मेले में पहुंचे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पांच सफ़ाईकर्मियों के पांव धोए थे.

यहां यह समझना होगा कि साल 2013 में मैनुअल स्केवेंजिंग (हाथ से मैला उठाने वाले) नियोजन प्रतिषेध और पुनर्वास अधिनियम लाया गया था और यहां सरकार ने 'मैनुअल स्केवेंजर' की परिभाषा तय की है.

इस परिभाषा के मुताबिक "ऐसा व्यक्ति जिससे स्थानीय प्राधिकरी हाथों से मैला ढुलवाए, साफ़ कराए, ऐसी खुली नालियां या गड्ढे जिसमें किसी भी तरह से इंसानों का मल-मूत्र इकट्ठा होता हो उसे हाथों से साफ़ कराए तो वो शख़्स 'मैनुअल स्केवेंजर' कहलाएगा."

इस अधिनियम के तीसरे अध्याय का सातवां बिंदु कहता है कि इसके लागू होने के बाद कोई स्थानीय अधिकारी या कोई अन्य व्यक्ति किसी भी शख़्स को सेप्टिक टैंक या सीवर में 'जोख़िम भरी सफ़ाई' करने का काम नहीं दे सकता है.

अधिनियम में सेप्टिक टैंक और सीवर के संदर्भ में 'जोख़िम भरी सफ़ाई' को भी परिभाषित किया गया है.

इसका मतलब है सभी स्थानीय प्राधिकरणों को हाथ से मैला उठाने की व्यवस्था ख़त्म करने के लिए सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफ़ाई के लिए आधुनिक तकनीकों को अपनाना होगा. कोई भी ठेकेदार या प्राधिकरण सेप्टिक टैंक और सीवर साफ़ कराने के लिए बिना सुरक्षा गियर दिए सफ़ाईकर्मी से सफ़ाई नहीं करा सकता. यह पूरी तरह प्रतिबंधित है.

लेकिन सच यही है कि सीवर और सेप्टिक टैंक की सफ़ाई के दौरान ज़्यादातर सफ़ाईकर्मियों को सीवर के भीतर जाना ही पड़ता है.

मैला ढोने वाले सफ़ाईकर्मी

इमेज स्रोत, Getty Images

'सिर्फ़ इस साल अब तक 26 लोगों की मौत हो चुकी है'

सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेज़वाड़ा विल्सन ने बीबीसी से सरकार के इस बयान पर बात करते हुए कहा, ''इन पांच सालों में सफ़ाई करने के दौरान 472 सफ़ाईकर्मियों की मौत हुई है.

''इससे पहले सरकार ने 340 लोगों के मौत की बात मानी थी लेकिन उसमें भी 122 लोगों की गिनती नहीं की गई. इस साल 2021 में अब तक 26 लोगों की मौत सीवर की सफ़ाई करते हुए हुई है. तो अब तक कुल 498 लोगों की मौत हो चुकी है जिसे सरकार पूरी तरह ख़ारिज कर रही है."

विल्सन कहते हैं, ''सरकार तो पहले भी यही कहती थी कि देश में हाथ से मैला ढोने का चलन खत्म हो गया है लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारे पास प्रमाण हैं कि ऐसा घड़ल्ले से हो रहा है तब जाकर सुप्रीम कोर्ट के कहने पर सरकार साल 2013 में एक्ट लेकर आई.''

''अब जब कोर्ट ने इसमें दख़ल देना बंद कर दिया है तो फिर वही बात कह रहे हैं कि देश में मैनुअल स्केवेंजिंग नहीं है, इससे कोई मर नहीं रहा है. सोचिए, लोग मर रहे हैं और कैसे एक मंत्री संसद में ये कह रहे हैं कि कोई मौत ही नहीं हुई है.''

सीवर की सफ़ाई

इमेज स्रोत, Getty Images/SUDHARAK OLWE

परिभाषा की व्याख्या का सवाल

छोड़कर पॉडकास्ट आगे बढ़ें
दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर (Dinbhar)

वो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख़बरें जो दिनभर सुर्खियां बनीं.

दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर

समाप्त

सरकार तकनीकी परिभाषा के हवाले से यह दावा कर रही है. इस साल फरवरी में जब केंद्र सरकार ने संसद में 340 लोगों की सफ़ाई करने के दौरान मौत का आंकड़ा पेश किया था तो वहां 'मैनुअल स्केवेंजिंग' शब्द का प्रयोग न करके 'सीवर और सेप्टिक टैंक की सफ़ाई' शब्द का इस्तेमाल किया था.

यानी 2013 के अधिनियम के विपरीत सरकार सीवर साफ़ करने वाले लोगों को मैनुअल स्कैवेंजर नहीं मान रही है.

इस सवाल पर विल्सन कहते हैं, ''ये लोग परिभाषा की दुहाई दे रहे हैं कि मैनुअल स्कैवेंजिंग का मतलब हाथ से मैला ढोना है और वो नहीं हो रहा, लेकिन जो लोग सीवर के अंदर घुस रहे हैं, क्या वो मैला छुए बिना काम कर रहे हैं? वो तो खुद को मैले में डुबो ले रहे हैं.''

''एक्ट तो यही कहता है कि मानव मल-मूत्र, सीवर, सेप्टिक टैंक को अगर किसी भी तरह से हाथ से साफ़ किया जा रहा है तो वह प्रतिबंधित है. तो परिभाषा के आधार पर भी ये झूठ है. उन्हें समझना होगा कि वो ऐसे लोगों की जान के साथ ऐसा नहीं कर सकते.''

बेजवाड़ा विल्सन कहते हैं, ''सरकार तो ये भी कह रही है कि ऑक्सीज़न की कमी से देश में लोग नहीं मरे तो क्या हम जो देख रहे हैं या देखा है सबकी पुष्टि सरकार के बयानों से होगी? यह सबसे आसान तरीका है कि कह दो कि कोई डेटा ही नहीं है और सवालों और परेशानियों से बच जाओ क्योंकि अगर आपने डेटा दिया तो आपसे और सवाल पूछे जाएंगे और अगर डेटा सही नहीं हुआ तो लोग सवाल उठाएंगे. इससे बेहतर है, कह दो कि ऐसा हुआ ही नहीं और डेटा ही नहीं है. जवाबदेही से बचने का इससे आसान तरीका और क्या होगा?''

वीडियो कैप्शन,

आयुष्मान बेबी 'करिश्मा' की कहानी

मौतें, जिन्हें सरकार नहीं मानती

  • जनवरी 2019 में बीबीसी ने किशनलाल की पत्नी इंदु देवी से मुलाकात की थी. वह अपने तीन बच्चों के साथ तिमारपुर की झुग्गी में बैठी थीं. इस परिवार में कमाई का इकलौता ज़रिया रहे किशनलाल की नाले की सफ़ाई के दौरान मौत हो गई. परिवार वालों का कहना था कि सफ़ाई के वक्त उन्हें बांस का डंडा तक नहीं दिया गया था.
  • एक सरकारी रिपोर्ट बताती है 23 नवंबर, 2019 को अशोक नाम के एक सफ़ाईकर्मी की ज़हरीली गैस के कारण दम घुटने से हो गई थी. अशोक दिल्ली के शकुरपुर में एक सीवर की सफ़ाई कर रहे थे.
  • 26 जून, 2019 को हरियाणा के रोहतक में सीवर की सफ़ाई करते हुए चार सफ़ाई कर्मियों की मौत हो गई थी.
  • 28 अगस्त 2019 को उत्तर प्रदेश के मथुरा में चार सफ़ाई कर्मियों की मौत सीवर की सफ़ाई करने के दौरान हो गई थी.
  • फरवरी 2020 में 24 साल के रवि की मौत 15 फ़ीट गहरे सीवर को साफ़ करते वक़्त हुई थी. दिल्ली के शाहदरा इलाके में रवि और 35 साल के संजय को सीवर की सफ़ाई का काम मिला था लेकिन इस दौरान ही रवि की जहरीली गैस से दम घुटने के कारण मौत हो गई. संजय को वक्त रहते अस्पताल पहुंचाया गया तो उनकी जान किसी तरह बची.
  • मार्च 2021 में दिल्ली के गाज़ीपुर में एंपरर बैन्केवेट हॉल के सीवर की सफ़ाई का काम 1500 रुपये में लोकेश और प्रेम चंद को दिया गया था लेकिन इन दोनों की मौत सीवर में दम घुटने से हो गई.
  • 28 मई 2021, को 21 साल के एक सफ़ाई कर्मी की मौत हो गई क्योंकि उन्हें बिना किसी सुरक्षा गियर के ही ठेकेदार ने सीवर में उतार दिया था.

ये वो कुछ नाम हैं जिनकी मौत सीवर में अंदर जाकर सफ़ाई करने के कारण हुई. इस तरह मरने वालों की लिस्ट लंबी है, लेकिन सरकारी दस्तावेज़ों में इन लोगों के लिए कोई जगह नहीं है.

इनके नाम तो क्या सरकार इनकी संख्या का भी हिसाब नहीं रखती. केंद्र सरकार मानती है कि इनमें से किसी की भी मौत हाथों से मैला ढोने या सीवर साफ़ करने से नहीं हुई.

देश में लगातार बढ़ रही है मैनुअल स्केवेंजिंग

राज्यसभा में एक सवाल के जवाब के दौरान ही सामाजिक न्याय मंत्रालय ने बताया है कि देश में वर्तमान समय में 66 हज़ार से ज़्यादा सफ़ाईकर्मी हैं जो हाथों से मैला साफ़ करते हैं.

साल 2019 में आई नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2013 में जब मैनुअल स्केवेंजिंग रोकने के लिए क़ानून लाया गया था तो उस वक्त देश में 14 हज़ार से अधिक ऐसे सफ़ाईकर्मी थे जिन्हें मैनुअल स्केवेंजर की श्रेणी में रखा गया था.

साल 2018 के सर्वे में ये संख्या बढ़कर 39 हज़ार पार कर गई और साल 2019 में ये बढ़ कर 54 हज़ार से ऊपर हो गई. अब ऐसे लोगों की संख्या 66 हज़ार से अधिक है.

इस वक्त हाथों से मैला ढोने वाले सबसे ज़्यादा लोग उत्तर प्रदेश में हैं जहां इनकी संख्या 37 हज़ार से ज्यादा है. वहीं 7300 के साथ महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ छत्तीसगढ़ इस सूची में सबसे नीचे हैं जहां सिर्फ तीन लोग मैनुअल स्केवेंजर के तौर पर गिने गए हैं.

वीडियो कैप्शन,

बिना बिजली, कैसे आया इस घर में आया हजारों का बिल

फैक्ट चेक

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं)