जेआरडी टाटा जिन्होंने एयर इंडिया को शिखर तक पहुंचाया: विवेचना

  • रेहान फ़ज़ल
  • बीबीसी संवाददाता
जेआरडी टाटा

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15 अक्तूबर, 1932 को एक दुबले-पतले शख़्स ने, जिसने सफ़ेद रंग की आधी आस्तीन की कमीज़ और पतलून पहन रखी थी, कराची के द्रिघ रोड हवाईअड्डे के पुस मॉथ हवाई जहाज़ से बंबई के लिए उड़ान भरी.

समय था सुबह के 6 बजकर 35 मिनट. कुछ घंटे बाद दोपहर 1 बजकर 50 मिनट पर विमान ने बंबई के जुहू हवाई अड्डे पर लैंड किया.

बीच में कुछ समय के लिए विमान अहमदाबाद रुका था जहाँ बरमा शेल के चार गैलन के पेट्रोल के पीपे को बैलगाड़ी पर लादकर लाया गया था और उस छोटे से विमान में भरा गया था.

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विमान से 27 किलो वज़न की डाक उतारी गई.

यह क्षण ऐतिहासिक था क्योंकि यहीं से भारत में नागरिक उड्डयन की शुरुआत हुई.

टाटा

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इमेज कैप्शन, टाटा जब कराची से पहली बार बंबई विमान उड़ाकर लाए थे

पहले जंबो जेट का स्वागत

समय को थोड़ा फ़ास्ट फ़ॉरवर्ड करते हैं. 18 अप्रैल, 1971. बंबई के साँताक्रूज़ हवाईअड्डे पर सुबह 8 बजकर 20 मिनट पर शानदार बोइंग 747 का जंबो जेट लैंड करता है.

भारतीय वायु सेना के दो मिग-21 विमान हवा में इसको एस्कॉर्ट करते हैं. 67 साल का एक व्यक्ति वहाँ मौजूद लोगों को संबोधित करता है.

वो एयर इंडिया का अध्यक्ष है जो अपने बेड़े में पहले जंबो जेट का स्वागत कर रहा है.

यह उस व्यक्ति के लिए बहुत बड़ा क्षण है क्यों वह वही शख़्स है जिसने 1932 में पहली बार बंबई में विमान उतारा था. उस शख़्स का नाम है- जहाँगीर रतनजी दादाभोए टाटा.

पूरी दुनिया में उसे जेआरडी के नाम से जाना जाता है. उसके नज़दीकी दोस्त उसे जेह कहकर पुकारते हैं.

टाटा

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ताज होटल का उदय

कहा जाता है कि टाटा सरनेम गुजराती शब्द 'टमटा' या 'तीखा' से आया है, जिसका अर्थ होता है मसालेदार या बहुत गुस्से वाला.

और वास्तव में टाटा घराने के सर्वोच्च पदों पर बैठने वाले ज़्यादातर लोग अपने गुस्से के लिए मशहूर रहे हैं.

जेआरडी टाटा

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टाटा घराने के संस्थापक और जेआरडी टाटा के चाचा जमशेदजी टाटा के बारे में एक किस्सा मशहूर है कि वो एक बार अपने एक अंग्रेज़ दोस्त को मुंबई के एक होटल में खाना खिलाने ले गए.

होटल के दरवाज़े पर खड़े दरबान ने कहा, ''आपके दोस्त का हम स्वागत करते हैं, लेकिन आपको हम होटल के अंदर नहीं आने दे सकते क्योंकि यह होटल सिर्फ़ यूरोपीय लोगों के लिए ही है.''

उसी शाम जमशेदजी ने गुस्से में तय किया था कि वो एक ऐसा होटल बनाएंगे जो भारत की शान होगा और जहाँ पूरी दुनिया के पर्यटक आया करेंगे. इस तरह 1903 में बंबई बंदरगाह के सामने ताज महल होटल ने जन्म लिया.

जिस तरह यूरोप से अमेरिका जाने वाले लोग स्टैचू ऑफ़ लिबर्टी को देख कर अंदाज़ा लगाते थे कि न्यूयॉर्क आ गया है, उसी तरह यूरोप से भारत आने वाले जहाज़ों पर सवार लोग जैसे ही दूर से इस होटल को देखते थे, उन्हें लग जाता था कि वो बंबई में प्रवेश कर रहे हैं.

टाटा

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पायलट का लाइसेंस पाने वाले पहले भारतीय थे टाटा

जेआरडी टाटा के पिता आर डी टाटा जमशेदजी टाटा के चचेरे भाई थे. जेआरडी को उनके नज़दीकी लोग जेह कहकर पुकारते थे.

जेआरडी की माँ चूँकि फ़्रेंच थीं इसलिए उनके घर में फ़्रेंच बोली जाती थी. जेआरडी को बचपन से ही जहाज़ में उड़ने के लिए दीवानगी थी. जहाज़ उड़ाने के लिए पायलट का लाइसेंस पाने वाले वह पहले भारतीय थे.

जेआरडी की जीवनी 'बियॉन्ड द लास्ट ब्लू माउंनटेन' में आर एम लाला लिखते हैं, "लंदन टाइम्स के 19 नवंबर, 1929 के अंक में आग़ा ख़ाँ की तरफ़ से एक विज्ञापन छपा जिसमें कहा गया था कि जो भारतीय इंग्लैंड से भारत या भारत से इंग्लैंड की अकेले हवाईजहाज़ से यात्रा करेगा, उसे 500 पाउंड इनाम में दिए जाएंगे. टाटा ने ये चुनौती स्वीकार की. लेकिन उन्हें इस मुकाबले में अस्पी इंजीनियर ने हरा दिया जो बाद में भारत के वायुसेनाध्यक्ष बने."

टाटा

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थेली से मुलाकात

जेआरडी को तेज़ गति से कार चलाने का भी शौक था. शायद इसी वजह से उनकी अपनी भावी पत्नी थेली से मुलाकात हुई.

हुआ ये कि उस ज़माने में उनके पास नीले रंग की बुगाती कार हुआ करती थी जिसमें मडगार्ड और छत नहीं होते थे.

एक दिन जेह ने उस कार का पैडर रोड पर एक एक्सिडेंट कर दिया और पुलिस ने उनके खिलाफ़ एक केस दर्ज कर लिया.

इससे बचने के लिए वो उस समय बंबई के चोटी के क्रिमिनल वकील जैक विकाजी के यहाँ गए जहाँ उनकी मुलाकात विकाजी की सुंदर भतीजी थेली से हुई. कुछ समय बाद दोनों ने विवाह कर लिया.

जेआरडी टाटा और उनकी पत्नी थेली

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बंगाल के गवर्नर जैकसन को सुनाई खरीखोटी

जेआरडी और थेली अपने हनीमून के लिए दार्जिलिंग गए और वो भी जाड़े में. जिस दिन वो वहाँ से कार से वापस आ रहे थे बंगाल के गवर्नर सर स्टेनली जैकसन भी कार से कलकत्ता लौट रहे थे. जब उनकी कारों का काफ़िला गुज़रने वाला था तो पुलिस ने सुरक्षा कारणों से टाटा की कार को रोक दिया.

गिरीश कुबेर अपनी किताब 'टाटाज़ हाउ अ फ़ेमिली बिल्ट अ बिज़नेस एंड अ नेशन' में लिखते हैं, "उस दिन बहुत सर्दी थी. इसके बावजूद जेआरडी की कार को एक घंटे से भी अधिक समय तक रोके रखा गया. उन्होंने व उनकी पत्नी ने इसका विरोध करने की योजना बनाई."

"जैसे ही गवर्नर की कार वहाँ पहुंची, थेली उसके सामने जा कर खड़ी हो गईं. जेआरडी गवर्नर की खिड़की के पास पहुंच कर ज़ोर से चिल्लाए , 'आप अपनेआप को समझते क्या हैं जो आपने इतनी भयानक सर्दी में एक घंटे से 500 लोगों, औरतों और बच्चों को रोक रखा है? यू डैम फ़ूल."

टाटा

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दिलफेंक भी थे जेह

सुंदर थेली की ज़िंदगी ताउम्र अपने पति के इर्दगिर्द गुज़री लेकिन जेआरडी की दूसरी महिलाओं में रुचि हमेशा रही. 80 की उम्र में भी जब कोई सुंदर चेहरा उनके आसपास नज़र आ जाता था तो जेह की आँखों में चमक आ जाया करती थी.

मशहूर नेता मीनू मसानी के बेटे ज़रीर मसानी अपनी आत्मकथा 'एंड ऑल इज़ सेड मेमॉएर ऑफ़ द होम डिवाइडेड' में लिखते हैं, "मेरे माता पिता टाटा दंपत्ति के घर के पास रहते थे और मीनू टाटा के एक्ज़क्यूटिव असिस्टेंट के तौर पर काम करते थे. जेआरडी की शादी सुखद नहीं थी. वो अपनी पत्नी के प्रति वफ़ादार नहीं थे. उनके फ़्रेंच व्यक्तित्व और एक्सेंट या लहजे की वजह से बहुत सी सुंदर महिलाएं उनकी तरफ़ आकर्षित होती थीं. बाद में मुझे पता चला कि उनमें से एक मेरी माँ भी थीं."

लेकिन इसके बावजूद जेआरडी ने कभी अपनी पत्नी को छोड़ने के बारे में नहीं सोचा.

जेआरडी टाटा

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सुमंत मुलगाँवकर थे जेह के सबसे नज़दीक

सिर्फ़ 34 साल की उम्र में जेह को पूरे टाटा समूह की ज़िम्मेदारी सौंप दी गई. जेआरडी ने एक से एक क़ाबिल लोगों को अपनी कंपनी में या बोर्ड में नौकरी नहीं दी.

उनमें शामिल थे जेडी चौकसी, नेहरू मंत्रिमंडल में मंत्री रहे जॉन मथाई, मशहूर कानूनविद नानी पालखीवाला, रूसी मोदी और सुमंत मुलगाँवकर.

मुलगाँवकर टाटा के सबसे नज़दीक थे. उनको वो बहुत मानते थे और बकौल रतन टाटा उनसे कभी भी कोई (जिसमें जेआरडी भी शामिल थे) कोई सवाल नहीं करता था.

यहाँ तक कि टाटा सुमो कार का नाम भी उन्हीं के नाम के पहले दो अक्षरों पर रखा गया था. लोगों को ग़लतफ़हमी है कि इस कार का नाम जापानी कुश्ती के नाम पर रखा गया है.

टाटा

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टाटा की शराफ़त और सादगी के अनेक किस्से

अपने कर्मचारियों का ध्यान रखने के जेआरडी के बहुत से किस्से मशहूर हैं.

इनफ़ोसिस के प्रमुख एनआर नारायणमूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति बताती हैं कि उन्होंने इंडियन इस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस से स्नातक की डिग्री लेने के बाद टाटा की कंपनी टेलको में इंजीनियर की नौकरी का इश्तेहार देखा जिसमें लिखा था कि सिर्फ़ पुरुष इंजीनियर ही इस पद के लिए आवेदन भेज सकते हैं.

सुधा ने तुरंत जेआरडी को एक पोस्टकार्ड लिखा जिसमें उन्होंने इस इश्तेहार के लिए उनकी कंपनी को पुरातनवादी बताया.

जेआरडी ने तुरंत हस्तक्षेप किया और उनको तार भेजकर न सिर्फ़ इंटरव्यू के लिए बुलाया गया बल्कि वो टाटा शॉप फ़्लोर पर काम करने वाली पहली महिला इंजीनयर भी बनीं.

टाटा

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आठ साल बाद एक दिन वो बॉम्बे हाउज़ की सीढ़ियों पर जेआरडी के सामने पड़ गईं. जेआरडी इस बात से परेशान हुए कि वो अकेली हैं, उनके पति उन्हें लेने नहीं आए हैं और रात हो रही है. जेआरडी तब तक उनके साथ खड़े होकर उनसे बतियाते रहे जब तक उनके पति नारायणमूर्ति उन्हें लेने नहीं आ गए.

टाटा के प्रति सम्मान दिखाने के लिए सुधा मूर्ति अभी तक अपने दफ़्तर में टाटा की तस्वीर रखती हैं. टाटा की सादगी के भी बेइंतहा किस्से मशहूर हैं.

हरीश भट्ट अपनी किताब 'टाटा लोग' में लिखते हैं, "कई बार अपने दफ़्तर जाने के रास्ते में वो बस स्टॉप पर बस का इंतज़ार कर रहे अपने कर्मचारियों को अपनी कार में लिफ़्ट दिया करते थे. अपने शुरू के दिनों में वो अक्सर बस स्टाप पर अपनी कार रोककर वहाँ खड़े लोगों से पूछते थे, क्या मैं आपको आगे कहीं छोड़ सकता हूँ. उस ज़माने में वो उतने मशहूर नहीं हुआ करते थे."

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भारत के सबसे अमीर आदमी के पास पैसे नहीं

भारत में आज भी अगर किसी व्यक्ति की अमीरी का बखान किया जाता है तो उसकी तुलना टाटा या बिड़ला से की जाती है. लेकिन कम लोगों को पता है कि टाटा निजी तौर पर बहुत कम पैसे अपने पास रखते थे.

मशहूर पत्रकार कूमी कपूर अपनी किताब 'द इंटिमेट हिस्ट्री ऑफ़ पारसीज़' में डीपी धर के बेटे और नुसली वाडिया के नज़दीकी दोस्त विजय धर को बताती हैं कि 'जब जेआरडी की पत्नी अपने जीवन के अंतिम दिनों में बहुत बीमार थीं जो उन्होंने नुसली वाडिया को सलाह दी कि क्यों न जेआरडी, थेली के लिए एक विडियो प्लेयर खरीद लें ताकि वो बिस्तर पर बैठे बैठे ही पिक्चर देख सकें. नुसली ने कहा जेआरडी कभी भी वीसीआर नहीं खरीदेंगें क्योंकि उनके पास इतने पैसे रहते ही नहीं हैं. न ही वो इसे उपहार के तौर पर स्वीकार करेंगे और न ही वो इसका बिल उन कंपनियों को भेजेंगे जिनके चेयरपर्सन वो खुद हैं.'

विजय धर का यहाँ तक कहना है कि जेआरडी इतनी सादगी से रहते थे कि वो अपनी कमीज़ें खुद धोते थे. लेकिन जब उन्होंने ये बात इंदिरा गांधी को बताई तो उन्होंने उन पर विश्वास नहीं किया.

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एयर इंडिया के छोटे से छोटे काम में बेहद दिलचस्पी

भारत की आज़ादी के बाद जेआरडी ने भारत के लिए बहुत ऊँचे सपने देखे थे.

सामाजिक तौर पर वह नेहरू गांधी परिवार के बहुत करीब थे लेकिन उनके समाजवादी आर्थिक मॉडल से उन्हें घोर आपत्ति थी.

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अगस्त 1953 में सरकार ने सभी नौ निजी हवाई कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर उनका एयर इंडिया इंटरनैशनल और इंडियन एयरलाइंस में विलय कर दिया.

जेह को इससे बहुत धक्का पहुंचा लेकिन ग़नीमत ये रही कि उन्हें एयर इंडिया का अध्यक्ष नियुक्त किया गया.

एयर इंडिया के चेयरपर्सन के तौर पर उनके कामकाज में जेह की दिलचस्पी इतनी होती थी कि वो एयरलाइंस के जहाज़ों की खिड़कियों के पर्दे तक चुनने के लिए भी खुद जाते थे.

गिरीश कुबेर लिखते हैं, "एक बार उन्होंने एयर इंडिया के प्रबंध निदेशक के सी. बाखले को पत्र लिखा था अगर आप खाने में अधिक अल्कोहल वाली बीयर परोसते हैं तो पेट भारी हो जाता है. इसलिए हल्की बियर सर्व करिए. मैंने नोट किया है कि हमारे जहाज़ों की कुर्सियाँ ढ़ंग से पीछे नहीं मुड़ती हैं. कृपया उन्हें ठीक करवाइए. यह भी सुनिश्चित करिए कि जब भोजन परोसा जाए तो विमान की सभी लाइट्स ऑन रहें ताकि हमारी कटलरी उनकी रोशनी में चमक सकें."

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एयर इंडिया की समय की पाबंदी

उनको पता था कि वो पैसा ख़र्च करने के मामले में विदेशी एयरलाइंस का मुकाबला नहीं कर सकते. इसलिए उनका ज़ोर हमेशा सर्विस और समय की पाबंदी पर रहता था. इस बारे में एक दिलचस्प किस्सा यूरोप में एयर इंडिया के रीजनल डायरेक्टर रहे नारी दस्तूर सुनाया करते थे.

''उस ज़माने में दिन में 11 बजे एयर इंडिया की फ़्लाइट जिनेवा में लैंड करती थी. एक बार मैंने एक स्विस व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से समय पूछते सुना. उस शख़्स ने खिड़की के बाहर देख कर जवाब दिया 11 बज चुके हैं. पहले व्यक्ति ने पूछा तुम्हें कैसे पता तुमने घड़ी की तरफ़ तो देखा ही नहीं ? जवाब आया एयर इंडिया के विमान ने अभी-अभी लैंड किया है.''

मोरारजी देसाई ने अपमानित कर जेआरडी को एयर इंडिया से बर्ख़ास्त किया

इंदिरा गांधी की शादी में उनके पिता जवाहरलाल नेहरू ने जेह और उनकी पत्नी को इलाहाबाद आमंत्रित किया था. शुरू में इंदिरा गांधी उन्हें पसंद करती थीं लेकिन जैसे-जैसे उनका झुकाव समाजवाद की तरफ़ होने लगा, उनके और जेह के संबंधों में दूरी आ गई.

बाद में तो जब भी जेआरडी उनसे मिलने जाते वो या तो खिड़की के बाहर देखने लगतीं या अपनी डाक खोलने लगतीं. इंदिरा गांधी से उनका वैचारिक विरोध भले ही रहा हो, लेकिन उन्होंने जेह को हमेशा एयर इंडिया से जुड़े रहने दिया.

टाटा अपनी पत्नी थेली और इंदिरा गांधी के साथ

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उनको एयर इंडिया से निकाला इंदिरा गांधी के बाद प्रधानमंत्री बने मोरारजी देसाई ने. टाटा को इसकी कोई पूर्वसूचना नहीं दी गई.

इसकी ख़बर उन्हें पीसी लाल से मिली जिन्हें उनकी जगह एयर इंडिया का अध्यक्ष बनाया गया था. टाटा के साथ सरकार के बर्ताव के विरोध में उस समय एयर इंडिया के प्रबंध निदेशक के जी अप्पूस्वामी और उनके नंबर दो नारी दस्तूर ने इस्तीफ़ा दे दिया.

यही नहीं एयर इंडिया की मज़दूर यूनियन ने भी इस पर अपनी नाराज़गी दिखाई. मोरारजी देसाई उन्हें 50 के दशक से ही पसंद नहीं करते थे. एक बार जेआरडी टाटा मोरारजी देसाई से मिलने गए जब वो बंबई के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. उनके साथ टाटा इलेक्ट्रिक कंपनी के प्रबंध निदेशक होमी मोदी भी थे.

टाटा और मोदी दोनों का मानना था कि आने वाले समय में बिजली की बढ़ती माँग को देखते हुए हमें बिजली पैदा करने की क्षमता और बढ़ानी चाहिए. मोरारजी देसाई इन दोनों की बात पूरी हुए बिना किसी दूसरे विषय पर बात करने लगे.

यह देखते ही जेआरडी तुरंत कुर्सी छोड़ कर खड़े हुए और मोरारजी देसाई से कहा कि वो इस मीटिंग को आगे बढ़ा कर मोरारजी देसाई का समय नहीं ख़राब करना चाहते. टाटा का ये रुख़ देख कर मोरारजी ने उनसे बैठने के लिए कहा और फिर उनकी पूरी बात सुनी. लेकिन उस दिन से दोनों के संबंधों में एक तरह का ठंडापन आ गया.

जेआरडी टाटा

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नैतिक मूल्यों को दिया हमेशा बढ़ावा

एक बार उनके जीवनीकार आरएम लाला ने उनसे पूछा था कि भारत के आर्थिक मामलों में उनका सबसे बड़ा योगदान क्या है तो उनका जवाब था, ''मैं नहीं समझता कि मैंने भारत की अर्थव्यवस्था में कोई ख़ास योगदान दिया है सिवाय नैतिक मूल्यों के. मेरा मानना है कि नैतिक जीवन आर्थिक जीवन का हिस्सा है.''

जाने-माने आर्थिक पत्रकार टीएन नाइनेन भी कहते हैं कि टाटा समूह ने एकाध बार मूल्यों से भले ही समझौता किया हो क्योंकि भारत के वर्तमान कानूनों के तहत पूरी ईमानदारी से काम करना उतना आसान काम नहीं है लेकिन मोटे तौर पर उन्होंने नैतिक मूल्यों को छोड़े बिना अपना काम किया है.

जेआरडी टाटा

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उत्तराधिकारी की चाह नहीं

टाटा को ताउम्र अपनी किताबों, कविताओं, फूलों और पेंटिंग से प्यार रहा. उनकी इतिहास में बहुत रुचि थी, ख़ासकर ग्रीक, रोमन और नेपोलियन के आसपास के फ़्रेंच इतिहास में.

अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर से उनकी नज़दीकी दोस्ती थी. दोनों एक दूसरे को पत्र लिखा करते थे.

जेआरडी टाटा के याद करते हुए उन्होंने कहा था, ''मैंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर बहुत से लोगों से मुलाकात की है लेकिन मुझे जेआरडी की टक्कर के लोग कम मिले हैं.''

एक ज़माने में फ़्रांस के राष्ट्रपति रहे जाक शिराक भी जेआर डी के दोस्त थे और कई निजी मसलों पर भी उनकी सलाह लेते थे.

जेह की याददाश्त ग़ज़ब की थी. उनका अपना कोई बच्चा नहीं था.

गिरीश कुबेर लिखते हैं, ''एक बार उनसे पूछा गया था कि क्या आपको कभी अपने उत्तराधिकारी की कमी नहीं महसूस हुई जो आपके बाद आपकी विरासत को आगे बढ़ा सके? जेह का जवाब था 'मैं बच्चों को प्यार करता हूँ लेकिन मैंने कभी भी किसी बेटे या बेटी को अपने उत्तराधिकारी के रूप में नहीं देखा.''

दो राष्ट्रों का सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिला

टाटा

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जेआरडी टाटा को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न और फ़्रांस के सबसे बड़े नागरिक सम्मान 'लीजन ऑफ़ ऑनर' से सम्मानित किया गया.

जब रतन टाटा ने उन्हें खबर दी कि उन्हें भारत रत्न के लिए चुना गया है तो जेह की त्वरित टिप्पणी थी, ''ओह माई गॉड! मुझे ही क्यों? क्या हम इसे रोकने के लिए कुछ नहीं कर सकते? ये सही है मैंने कुछ अच्छे काम किए हैं. देश को नागरिक उड्डयन दिया है. उसका औद्योगिक उत्पादन बढ़ाया है. बट सो वॉट? ये तो कोई भी अपने देश के लिए करता.''

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