पिछले कुछ सालों के दौरान तेज रफ्तार जिंदगी में आधुनिक तकनीकी के बढ़ते दखल ने रहन-सहन से लेकर सोचने-समझने तक के स्वरूप में काफी बदलाव ला दिया है। इसमें कई बार लोग आधुनिक तकनीकी से लैस संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए यह भी गौर नहीं कर पाते कि इसका असर उन पर क्या पड़ रहा है और इसके दीर्घकालिक नतीजे क्या होंगे। बीते करीब डेढ़ साल से महामारी की वजह से लगी पूर्णबंदी के बाद से अब तक स्कूल-कॉलेज बंद हैं और लगभग सभी बच्चों की पढ़ाई-लिखाई इंटरनेट पर या आॅनलाइन कक्षाओं पर निर्भर है। जाहिर है, बहुत सारे बच्चों की पहुंच अब स्मार्टफोन और कंप्यूटरों तक बिना रोकटोक के हो रही है। अगर इन संसाधनों की गतिविधियों में बच्चों की व्यस्तता सिर्फ पढ़ाई-लिखाई या हल्के-फुल्के मनोरंजन तक सीमित रहती, तब शायद समस्या नहीं खड़ी होती। मुश्किल यह है कि इंटरनेट पर मौजूद आॅनलाइन गेम सहित कई तरह की अवांछित चीजों तक भी बच्चों की आसान पहुंच होती जा रही है और अब उनमें से कई के उपयोग की लत के नुकसान सामने आने लगे हैं।

इसी के मद्देनजर दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को केंद्र सरकार से कहा कि वह बच्चों को आॅनलाइन गेम की लत से बचाने के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाने की मांग करने वाले प्रतिवेदन पर फैसला करे। दरअसल, बच्चों के बीच आॅनलाइन गेम खेलने की लत अब एक व्यापक समस्या बनती जा रही है और लोगों के बीच इसे लेकर चिंता बढ़ रही है। डेढ़-दो साल पहले घरों में बच्चे अगर ज्यादा वक्त तक टीवी, कंप्यूटर या स्मार्टफोन में व्यस्त रहते थे तब अभिभावक उन्हें टोक पाते थे। लेकिन अब स्कूलों में नियमित पढ़ाई बंद होने की स्थिति में बच्चों को आमतौर पर घरों में ही रहना पड़ता है। सगे-संबंधियों, परिचितों और दोस्तों से मिलने-जुलने के हालात फिलहाल नहीं हैं। ऐसे में उन्हें खुद को व्यस्त रखने का आसान रास्ता इंटरनेट की दुनिया में व्यस्त होना लगता है। आज इंटरनेट का दायरा इतना असीमित है कि अगर उसमें बहुत सारी सकारात्मक उपयोग की चीजें उपलब्ध हैं तो बेहद नुकसानदेह और सोचने-समझने की प्रक्रिया को बाधित करने वाली गतिविधियां भी मौजूद हैं। आवश्यक सलाह या निर्देश के अभाव में बच्चे आॅनलाइन गेम या दूसरी इंटरनेट गतिविधियों के संजाल में एक बार जब उलझ जाते हैं तो उससे निकलना मुश्किल हो जाता है।

अक्सर ऐसी खबरें आती रहती हैं कि किसी बच्चे ने आॅनलाइन गेम में जुआ खेलने में काफी पैसे गंवा दिए। कहीं अभिभावक ने ज्यादा खेलने से मना किया तो तनाव में आकर बच्चे ने खुदकुशी कर ली। ऐसी घातक घटनाएं भले ही आम नहीं हों, लेकिन इतना तय है कि इंटरनेट की दुनिया में जरूरत से ज्यादा व्यस्तता बच्चों के कोमल मन-मस्तिष्क पर गहरा असर डाल रहा है और उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से गहराई से प्रभावित कर रहा है। वक्त की मार से ज्यादातर लोगों का सामाजिक दायरा बेहद छोटा होकर परिवार और अपने घर में सिमट गया है और इसके सबसे ज्यादा शिकार बच्चे हुए हैं। नलाइन व्यस्तता बच्चों और युवाओं को दुनिया की वास्तविकता से भागने की सुविधा मुहैया कराती है। वे समस्याओं से लड़ने के बजाय आभासी दुनिया के संजाल में अपने मानसिक खालीपन की भरपाई खोजने लगते हैं। मगर उनकी ऐसी सामान्य-सी लगने वाली गतिविधियां जब लत में तब्दील हो जाती हैं तब उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता है। इसमें दो राय नहीं कि आधुनिक तकनीकी से लैस संसाधनों और खासतौर पर इंटरनेट ने आम लोगों की जिंदगी को आसान बनाया है। लेकिन यह व्यक्ति के विवेक पर निर्भर है कि वह इन संसाधनों का सकारात्मक इस्तेमाल करता है या नकारात्मक।