संगीता सहाय

पिछले दिनों मुझे बीते और वर्तमान समय में निकलने वाली विभिन्न पत्रिकाओं को एकत्रित करने की जरूरत पड़ी। किताब की दुकानों, पुस्तकालय आदि के चक्कर लगाते हुए परेशान होने के बाद ही मन लायक कुछ किताबें मिल पार्इं। आज लोगों की जरूरतों और पसंद की फेहरिस्त से गायब होती किताबें अक्सर मुझे चिंतित कर देती हैं। स्थिति यह है कि शॉपिंग मॉल और पिज्जा-बर्गर की दुकानें तो हर चौक-चौराहे पर मिल जाती हैं, पर एक अदद किताब की दुकान को ढूंढ़ने के लिए मीलों चलना पड़ता है। संयोग से अगर वह मिल भी जाती हैं, तो उसमें साहित्यिक किताबें और पत्रिकाएं बमुश्किल मिलती हैं। अफसोस की बात है कि आज पढ़ाई की डिग्रियां ज्ञान प्राप्ति के लिए नहीं, महज नौकरी प्राप्त करने के लिए हासिल की जा रही हैं।

शिक्षा की सफलता मनुष्य को ज्ञानवान बनाने में है, न कि उन्हें पैसा कमाने वाली मशीन में तब्दील करने में। किताब पढ़ने की घटती प्रवृत्ति लोगों की समझ और ज्ञान की परिधि को कुंद कर उन्हें मशीन बनाती जा रही है। साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी ने अपनी प्रसिद्ध प्रतीकात्मक निबंध ‘गेहूं और गुलाब’ में गेहूं को भौतिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रगति का प्रतीक माना है, जबकि गुलाब को मानसिक और सांस्कृतिक प्रगति का। आज का समय गुलाब पर गेहूं का आधिपत्य स्थापित करने की ओर प्रवृत्त है। पढ़ने की छूटती आदत, किताबों का लोप होते जाना और डिग्रियों का उपयोग पैसा कमाने तक सीमित रखना वास्तव में गुलाब पर गेहूं की जीत का ही द्योतक है। जबकि सही अर्थों में विकास का बीज दोनों के समुचित संतुलन में छिपा है।

बीते डेढ़-दो दशकों में इलेक्ट्रानिक मीडिया के फैलते दायरे, मोबाइल और इंटरनेट के व्यापक प्रसार, बढ़ती व्यावसायिकता के अंधानुकरण आदि ने व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक सुकून को छीनने के साथ ही उन्हें सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से भी दूर किया है। कुछ वर्ष पहले तक लोगों का खाली समय और यात्राओं के समय किताबें अपरिहार्य रूप से उनकी साथी बनती थीं। पर आज अधिकतर लोगों ने पत्र-पत्रिकाएं छोड़ कर मोबाइल,कंप्यूटर और टीवी के रिमोट को थाम लिया है। वे समझ ही नहीं पा रहे हैं कि पठन-पाठन की छूटती आदत उन्हें नामसमझी के गर्त मे गिरा रही है। घरों में जिस तेजी से आधुनिक संसाधनों का आगमन हो रहा है, उसी तेजी से किताबों की अलमारियां गायब होती जा रही हैं। अगर इसका जिक्र होता है तो लोग बिना विचारे सहजता से कह देते हैं कि अब किताबों को खरीदने की क्या जरूरत है।

पूरे विश्व का साहित्य तो हमारे मोबाइल और कंप्यूटर में है। पर वे ये नहीं बताते कि दिनभर में जितना समय वे मोबाइल पर वाट्सऐप, इंस्टाग्राम और फेसबुक चलाने में देते हैं, उसका कितना हिस्सा किताबों को देते हैं। सबसे चिंतनीय है बच्चों का किताबों से दूर होते जाना। यह समस्या हर स्तर पर मौजूद है। साधन संपन्न वर्ग के लोगों ने अपने बच्चों के हाथों में किताबों की जगह आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक तकनीकी थमा दिया है। वहीं जो लोग इन्हें खरीदने में असमर्थ हैं, वे भी इस जुगत में लगे हैं कि किस प्रकार इन संसाधनों को अपने बच्चों तक पहुंचाएं। ये आधुनिक तकनीकी बच्चों के मानसिक, भाषिक और सांस्कृतिक विकास को तो बाधित कर ही रहे हैं, साथ ही उन्हें शारीरिक रूप से बीमार भी बना रहे हैं। अधिकतर घरों में बाल साहित्य की किताबें बमुश्किल दिखती हैं। आज ज्यादातर विद्यालयों में भी पुस्तकालय और उनमें बंद किताबें शायद दिखावे के लिए ही होती हैं या भविष्य में दीमक का ग्रास बनने के लिए। जबकि बच्चों की मासूमियत को बरकारार रखने, उन्हें उनके उम्र की हिसाब से बड़ा करने, उनके समझ और ज्ञान की दुनिया को विस्तृत करने में पुस्तकों का योगदान महत्त्वपूर्ण है।

वर्तमान समय ने इस गतिमान दुनिया पर लगभग विराम लगा दिया है। लोग अपने घरों की चारदिवारी में कैद रहने को अभिशप्त हैं। ऐसे वक्त में अपने समय को सार्थक तरीके से बिताने के लिए किताबें एक अच्छे साथी की भूमिका निभा सकती हैं। किताबों से मित्रता लोगों को मोबाइल और कंप्यूटर की लत से दूर करेगा। यह तमाम माता-पिता को इस चिंता से भी मुक्त करेगा कि कभी पढ़ाई तो कभी वीडियो गेम के बहाने उनके बच्चों के हाथों और मन को गिरफ्त में ले चुका मोबाइल और नेट का संजाल पता नहीं उन्हें किस नरक से रूबरू करा रहा है! बालमन को कल्पनाओं और आकांक्षाओं की उड़ान देने के लिए, उनके भाव और भावनाओं की जमीन को पुख्ता करने में किताबों की अहमियत को भूला नहीं जा सकता। आवश्यकता इस बात की है कि हर पढ़ा-लिखा व्यक्ति और हमारा पूरा समाज ज्ञान और सकारात्मक मनोरंजन के इस महत्त्वपूर्ण साधन की अहमियत को समझे। साहित्य का उद्देश्य सिर्फ मनोरंजन करना नहीं होता, इसका मूल उद्देश्य कुरीतियों और सभी प्रकार की बुराइयों को हटा कर स्वस्थ, सुंदर और आनंदमय जीवन जीने की कला सिखाना भी होता है। इसलिए आवश्यक है कि खुद को और अपने समाज को बचाने के लिए हम हाथों में किताब थामें।