लवलीना बोरगोहाईं: मोहम्मद अली से ओलंपिक मेडल तक का सफ़र
- वंदना
- बीबीसी संवाददाता
भारतीय महिला मुक्केबाज़ लवलीना बोरगोहाईं ने भारत के लिए दूसरा मेडल पक्का कर दिया है. टोक्यो ओलंपिक में शुक्रवार को उन्होंने वेल्टरवेट क्वार्टर फ़ाइनल मुकाबले में चीनी ताइपे की निएन-चिन चेन को हराकर सेमीफ़ाइनल में जगह बना लिया है.
पूर्वोत्तर राज्य असम से ओलंपिक खेलों तक जाने वाली वो पहली महिला बॉक्सर हैं. वो 69 किलोग्राम वेल्टरवेट वर्ग में खेलती हैं.
निएन-चिन चेन नाम की जिस खिलाड़ी के ख़िलाफ़ लवलीना ने जीत हासिल की है, वो पूर्व विश्व चैम्पियन हैं और अब तक के कई मुक़ाबलों में लवलीना उनसे हारती आई हैं.
लवलीना 2018 के वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी उनसे हारी गई थीं.
भारत के छोटे गाँवों-कस्बों से आने वाले कई दूसरे खिलाड़ियों की तरह ही 23 साल की लवलीना ने भी कई आर्थिक दिक्कतों के बावजूद ओलंपिक तक का रास्ता तय किया है.
लवलीना को माइक टाइसन का स्टाइल पसंद है तो मोहम्मद अली भी उतने ही प्रिय हैं. लेकिन इन सबसे अलग उन्हें अपनी अलग पहचान भी बनानी थी.
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किकबॉक्सिंग से बॉक्सर बनने का सफ़र
बॉरगोहेन असम के गोलाघाट ज़िले में 2 अक्तूबर 1997 को टिकेन और मामोनी बॉरगोहेन के घर जन्मी थीं.
उनके पिता टिकेन एक छोटे व्यापारी थे और अपनी बेटी की आकांक्षाओं में उसका साथ देने के लिए उन्हें आर्थिक रूप से संघर्ष करना पड़ा.
लवलीना कुल तीन बहनें थीं तो आस पड़ोस से कई बातें सुनने को मिलतीं थीं. पर इस सबको नज़रअंदाज़ कर दोनों बड़ी जुड़वां बहनें लिचा और लीमा किकबॉक्सिंग करने लगीं तो लवलीना भी किकबॉक्सिंग में जुट गईं.
बहनें किकबॉक्सिंग में नेशनल चैंपियन बनीं लेकिन लवलीना ने अपने लिए कुछ और ही सोच रखा था.
उनका ये किस्सा मशहूर है कि पिता एक दिन अख़बार में लपेट कर मिठाई लाए तो लवलीना को उसमें मोहम्मद अली की फ़ोटो दिखी. पिता ने तब मोहम्मद अली की दास्तां बेटी को सुनाई और फिर शुरू हुआ बॉक्सिंग का सफ़र.
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प्राइमरी स्कूल में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के ट्रायल हुए तो कोच पादुम बोरो की जौहरी नज़र लवलीना पर गई और 2012 से शुरू हो गया बॉक्सिंग का सफ़र. पाँच साल के अंदर वे एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप में कांस्य तक पहुँच गई थीं.
वैसे लवलीना को भारत में एक अलग तरह की दिक्कत का सामना करना पड़ता है.
उनके वर्ग में बहुत कम महिला खिलाड़ी हैं और इसलिए उन्हें प्रैक्टिस के लिए स्पारिंग पार्टनर (मुक्केबाज़ साथी) नहीं मिलते जिनके साथ वो प्रैक्टिस कर सकें. कई बार उन्हें ऐसे खिलाड़ियों के साथ प्रैक्टिस करनी पड़ती है जो 69 किलोग्राम वर्ग से नहीं होते.
ओलंपिक से पहले मां की सर्जरी
ओलंपिक से पहले के कुछ महीने लवलीना के लिए आसान नहीं थे. जहाँ हर कोई ट्रेनिंग में जुटा था वहीं लवलीना की माँ का किडनी ट्रांसप्लांट होना था और वे माँ के साथ थीं, बॉक्सिंग से दूर.
सर्जरी के बाद ही लवलीना वापस ट्रेनिंग के लिए गईं.
इसके बाद कोरोना की दूसरी लहर के कारण उन्हें लंबे समय तक अपने कमरे में ही ट्रेनिंग करनी पड़ी क्योंकि कोचिंग स्टाफ़ के कुछ लोग संक्रमित थे. तब उन्होंने वीडियो के ज़रिए ट्रेनिंग जारी रखी.
तो राह में दिक्कतें तो कई थीं लेकिन लवलीना ने एक-एक कर सबको पार किया.
लवलीना के करियर में बड़ा उछाल आया जब उन्हें 2018 में कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए चुना गया. हालांकि तब इसे लेकर विवाद ज़रूर हुआ था कि लवलीना को इस बारे में कथित तौर पर आधिकारिक सूचना नहीं दी गई और अख़बारों से उन्हें पता चला.
कॉमनवेल्थ में वो मेडल नहीं जीत पाईं लेकिन यहाँ से उन्होंने अपने खेल के तकनीकी ही नहीं मानसिक और मनोवैज्ञानिक पक्ष पर भी काम करना शुरू किया.
नतीजा सबके सामने था. 2018 और 2019 में उन्होंने वर्ल्ड चैंपियनशिप में दो बार कांस्य पदक जीता.
कुछ दिन पहले मणिपुर की मीराबाई ने भारत को सिल्वर दिलाया था तो अब पूर्वोत्तर की ही लवलीना पदक के क़रीब हैं.
असम में लवलीना को लेकर उत्साह इतना है कि असम के मुख्यमंत्री और विपक्षी दलों के विधायक दोनों एकसाथ लवलीना के समर्थन में कुछ दिन पहले साइकिल रैली पर निकले थे.
स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के एक वीडियो में लवलीना ने बोला था कि उन्हें कम से कम दो बार तो ओलंपिक खेलना है और फिर प्रोफ़ेशनल बॉक्सिंग करनी है. यानी अभी कम से कम एक और ओलंपिक का सफ़र और मेडल का सपना बाकी है.
ओलंपिक में प्री क्वार्टर फ़ाइनल में उन्हें बाई मिला था जबकि जर्मनी की खिलाड़ी को हराकर वो क्वार्टर फ़ाइनल में पहुँची थीं.
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