डॉ चन्द्रकांत लहारिया का कॉलम:भविष्य की महामारियों का सामना करने के लिए सरकारों को अभी से निवेश करना होगा

3 वर्ष पहले
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डॉ चन्द्रकांत लहारिया, जन नीति और स्वास्थ्य तंत्र विशेषज्ञ - Dainik Bhaskar
डॉ चन्द्रकांत लहारिया, जन नीति और स्वास्थ्य तंत्र विशेषज्ञ

अभी जापान के टोक्यो में ग्रीष्मकालीन ओलिंपिक चल रहे हैं। ओलिंपिक आयोजित करना किसी भी देश के लिए प्रतिष्ठा का विषय माना जाता है। सालों पहले तय हो जाता है कि ओलिंपिक कहां होंगे। आने वाले 3 ओलिंपिक खेलों के देश व शहर तय हैं- 2024 में पेरिस (फ्रांस), 2028 में लॉस एंजेल्स (अमेरिका) और 2032 में ब्रिस्बेन (ऑस्ट्रेलिया)।

जो भी देश मेजबानी का दावा करते हैं, उन्हें बताना पड़ता है कि उनके पास पर्याप्त स्टेडियम, होटल व अन्य सुविधाएं हैं। फिर भी, जब मेजबानी मिलती है तो वह देश तमाम नए स्टेडियम व खेल केंद्र बनाता है। ओलिंपिक के आयोजन में औसतन 90,000 करोड़ रुपए की लागत आती है। जापान में चूंकि खेल एक साल आगे हो गए, कुल खर्च करीब 1,40,000 करोड़ रुपए (के बराबर जापानी मुद्रा) तक पहुंच गया है।

भारत ने पिछले दशक में दो बार ओलिंपिक की मेजबानी का दावा करने पर विचार किया। कुछ महीने पहले, दिल्ली सरकार ने कहा कि वह 2048 (हां, 27 साल बाद) ओलिंपिक कराने के लिए तैयारियां शुरू करेगी। हमारे मन में बात आ सकती है कि जब ओलिंपिक इतने महंगे हैं तो सरकारें उत्साह क्यों दिखाती हैं? जब पहले ही स्टेडियम व बाकी सुविधाएं होती हैं, तो सरकारें और खर्च क्यों करती हैं? जवाब है, ओलिंपिक या अन्य बड़े खेल आयोजन दरअसल उस देश में खेलों के भविष्य में बड़ा निवेश होता है।

यह देश द्वारा खेल परिसर, ढांचे व सुविधाएं अत्याधुनिक बनाने का सुनहरा अवसर होता है। फिर, जब सुविधाएं बन जाती हैं, तो ये परिसर वहां के होनहार व प्रतिभावान खिलाडियों की ट्रेनिंग के काम आते हैं। इसका नतीजा दशकों बाद मिलता है जब नई पीढ़ी, जो खेलों के ढांचागत सुधारों के इस्तेमाल के बाद निकलती है, देश को अंतरराष्ट्रीय खेल मंचों पर पदक व सम्मान दिलाती है। इसीलिए, ओलिंपिक की तैयारी पर खर्च करोड़ों रुपए वास्तव में भविष्य की पीढ़ियों में निवेश होता है। पिछले कुछ ओलिंपिक्स और अन्य अंतरराष्ट्रीय खेलों में अगर अधिक भारतीय खिलाड़ियों ने अर्हता हासिल की तो इसका श्रेय काफी हद तक पिछले दशकों में बने खेल परिसरों को जाता है।

चौबीसवें ओलिंपिक, कोविड-19 की वैश्विक महामारी के मध्य हो रहे हैं। ओलिंपिक और महामारी में एक मुख्य अंतर और एक समानता है। अंतर यह कि हम ओलिंपिक के लिए देश को तैयार करवाना चाहते हैं और किसी भी महामारी को देश से रोकना। समानता यह कि दोनों के लिए तैयार रहने में बरसों लगते हैं।

कोरोना दुनिया के सामने पहली महामारी नहीं है और न ही अंतिम होने वाली है। जिस तरह ओलिंपिक आयोजित करने के लिए खेल तंत्र सुदृढ़ करना होता है, वैसे ही भविष्य की महामारियों को रोकने के लिए स्वास्थ्य तंत्र मजबूत होना जरूरी है। खेल व स्वास्थ्य तंत्र दोनों के उद्देश्य अलग हैं, पर इन्हें विकसित करने में वर्षों तक सरकारी निवेश लगता है, लेकिन एक बार तंत्र विकसित हो जाते हैं, तो इनके फायदे आने वाली कई पीढ़ियों को मिलते हैं। दोनों ही समझदारी भरे निवेश हैं।

हम स्वस्थ और सुपोषित नागरिकों के बिना अच्छे खिलाड़ियों की कल्पना नहीं कर सकते। भारत में सरकारें कई वर्षों से खेल तंत्र मजबूत करने की बातें कर रही हैं और कुछ ठोस कदम उठाए भी हैं। महामारी से सीख लेते हुए, केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर स्वास्थ्य तंत्र में एक मुश्त, बड़े निवेश से शुरुआत की जरूरत है। फिर उस निवेश को तब तक जारी रखना होगा, जब तक देश के हर राज्य में स्वास्थ्य प्रणाली पूरी तरह सुचारु नहीं हो जाती। भविष्य में भारत जब भी ओलिंपिक आयोजित करे, तो देश में सिर्फ विश्वस्तरीय खेल परिसर ही नहीं, स्वास्थ्य सुविधाएं भी होनी चाहिए। साथ में, यह हमें भविष्य में होने वाली महामारियों के कहर से भी बचाएगा।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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