ओमप्रकाश ठाकुर

हिमाचल प्रदेश में पिछले कुछ दशकों से हर साल कुदरती आपदाओं का कहर बरप रहा है। विकास के नाम पर हिमालय को छलनी करने के कारनामे जिस तेजी और बेदर्दी से चल रहे हैं, उसकी कीमत आम लोगों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही है। जब यह जानें जा रही होती हैं तो यह किसी के जेहन में ही नहीं आता कि यह कुदरती कहर यूं ही नहीं आया बल्कि कुछ दशकों से जिस तरह से पहाड़ों को विकास के नाम पर छलनी किया जा रहा है, यह उसी का नतीजा है। यह सच मानने को न तो कोई नेता तैयार है और न ही नौकरशाह और न ही बड़े -छोटे ठेकेदारों की जमात।
बहरहाल, प्रदेश में दरकते पहाड़, उफनते नदी-नाले, बिजली गिरने, बादल फटने, जमीन के खिसकने और बाढ़ आने की घटनाओं और इन में जाने वाली जानों में भारी इजाफा हुआ है।

पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा कहा करते थे कि हिमालय जितना विशाल है अगर इससे छलनी किया जाता रहा तो यह तबाही भी उतनी ही विकरालता के साथ लाता है। तबाही के मंजर साल दर साल साफ तौर पर देखें भी जा रहे हैं। पहले उतराखंड में ही तबाही देखने को मिलती थी। लेकिन पिछले दो दशकों से हिमाचल भी अब अछूता नहीं रहा है।

राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के आंकड़ों के मुताबिक इस बार मानसून ने 13 जून को प्रदेश में दस्तक दी थी। हालांकि शुरू के पांच दिनों को छोड़ फिर मानसून कमजोर हो गया था और जुलाई महीने के पहले सप्ताह के आखिर में दोबारा सक्रिय हुआ। इस डेढ़ महीने के अंतराल में कुदरती आपदाओं से प्रदेश में दो सौ के करीब मौत हो चुकी हैं। बीते दिनों जिला कांगड़ा के शाहपुर के बोह गांव के ऊपर पहाड़ पर बादल फटा और नीचे की ओर नाले में इतना पानी भर गया कि वह अपने साथ जमीन को काटता हुआ नीचे ले आया और नाले के साथ सालों से बने घर मलबे के नीचे दब गए। 12 लोगों की मौत हुई। इसी दौरान धर्मशाला और भागसू में भयावह बाढ़ आई। इन चार-पांच दिनों में ही जिला कांगड़ा में 15 लोग मलबे में दब गए या पानी में डूब गए या बह गए।

उधर, जिला किन्नौर की बेहद खूबसूरत सांगला घाटी में बटेसरी के समीप रविवार दोपहर को पहाड़ का एक हिस्सा दरका और गोले की रफ्तार से पत्थर नीचे की ओर लुढ़के। नीचे छितकुल-सांगला सड़क से गुजर रहे सैलानियों के एक वाहन में बड़ा पत्थर टकराया व इस वाहन को अपने साथ नीचे खाई की ओर धकेलता ले गया। नौ सैलानियों की मौत कुछ ही पलों में हो गई। कुछ दिन पहले चंबा में एक कार नदी में समा गई थी व तीन लोगों की जानें चली गई थी। कुदरती आपदाओं का कहर इतना भयानक होता है कि संभलने का मौका ही नहीं मिलता।

आंकड़ों के मुताबिक 13 जून से लेकर अब तक प्रदेश में दो सौ मौत हो चुकी हैं। इनमें से सड़क हादसों में ही सौ मौत हुई हैं। जबकि ल्हासे गिरने व भूस्खलन की चपेट में आने से 24 लोग मौत के मुंह में गए हैं। इसके अलावा डूबने से 19 जाने जा चुकी हैं।

पांच दिन पहले ही प्रदेश पुलिस महानिदेशक संजय कुंडू ने सैलानियों व स्थानीय लोगों को आगाह किया था कि कुदरत के साथ मजाक न करें और खेल-खेल में नदी, नालों, तालाबों और झीलों के करीब न जाएं। उन्होने 1 जनवरी, 2020 से लेकर 31 जनवरी, 2021 तक का एक आंकड़ा भी जारी किया व सैलानियों व स्थानीय लोगों को याद दिलाया कि इस एक साल में 156 लोगों की मौत प्रदेश के विभिन्न भागों में डूबने से हो चुकी है।

ऐसे में अगर बारिश हो तो घूमने न निकले। ल्हासे या हिमनदों की चपेट में आने से चार मौत हुई हैं। छत, ढांक और मकानों पर से गिरने से 21 जानें जा चुकी हैं। कुदरती आपदाओं से हुई मौतों का यह आंकड़ा केवल मानसून के शुरुआत से लेकर अब तक का है। सर्दियों में अलग से तबाही मचती है। कभी बर्फबारी पहाड़ के जीवन को पहाड़ सा मुश्किल कर देती है तो कभी बारिश-धुंध ल्हासे, बादल फटने की घटनाएं, भूस्खलन और उफनते नदी-नाले तबाही मचा जाते हैं।