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आज की पॉजिटिव खबर:राजस्थान के सिद्धार्थ ने ऑस्ट्रेलिया की नौकरी छोड़ भारत में बनाया किसानों का नेटवर्क, सालाना 50 करोड़ टर्नओवर, 200 लोगों को नौकरी भी दी

नई दिल्ली3 वर्ष पहलेलेखक: इंद्रभूषण मिश्र
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किसानों के सामने अपने प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग करना सबसे बड़ा चैलेंजिंग टास्क होता है। खासकर कम पढ़े-लिखे किसानों को भरपूर प्रोडक्शन के बाद उतनी आमदनी नहीं मिलती जितनी उन्हें मिलनी चाहिए। मार्केटिंग के अभाव में वे औने पौने दाम पर अपने प्रोडक्ट बेचने पर मजबूर हो जाते हैं। उनकी इस मुसीबत को दूर करने को लेकर राजस्थान के पाली जिले के रहने वाले सिद्धार्थ संचेती ने एक पहल की है। उन्होंने पिछले 10 साल में देशभर में 40 हजार किसानों का नेटवर्क बनाया है। वे किसानों के प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग करते हैं। भारत के साथ ही दुनिया के 25 देशों में उनके कस्टमर्स हैं। इससे हर साल वे 50 करोड़ का बिजनेस कर रहे हैं।

ऑस्ट्रेलिया में नौकरी का ऑफर मिला, लेकिन इंडिया लौट आए
35 साल के सिद्धार्थ की शुरुआती पढ़ाई पाली जिले में हुई। इसके बाद वे बैंगलुरु चले गए। वहां उन्होंने कंप्यूटर एप्लिकेशन से बैचलर्स की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद एक साल तक उन्होंने एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब किया। फिर नौकरी छोड़ दी और ऑस्ट्रेलिया चले गए। 2009 में मास्टर्स की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें काम करने का ऑफर मिला, लेकिन सिद्धार्थ इंडिया वापस लौट आए।

सिद्धार्थ अपने भाई मोहनीश के साथ। सिद्धार्थ के इस काम में उनके भाई भी मदद करते हैं।
सिद्धार्थ अपने भाई मोहनीश के साथ। सिद्धार्थ के इस काम में उनके भाई भी मदद करते हैं।

सिद्धार्थ कहते हैं कि इंडिया आने के बाद मैंने तय किया कि कहीं जॉब करने की बजाय खुद का ही कुछ ऐसा काम शुरू किया जाए, जिससे दूसरे लोगों को भी रोजगार मिल सके। काफी सोच-विचार करने के बाद उन्होंने ऑर्गेनिक फार्मिंग शुरू करने का प्लान किया।

न कभी फार्मिंग की थी, न परिवार में कोई किसानी करता था
सिद्धार्थ का पहले से खेती से कोई लगाव नहीं था। परिवार में दूर-दूर तक खेती से कोई संबंध नहीं था। पिता जी माइनिंग के काम से जुड़े थे। इस लिहाज से उनके लिए यह बिलकुल ही नया फील्ड था। सबसे पहले सिद्धार्थ ने ऑर्गेनिक फार्मिंग को लेकर रिसर्च किया। किसानों से मिले, खेती की प्रोसेस को समझा। अलग-अलग क्रॉप और उनकी मार्केटिंग को लेकर जानकारी जुटाई।

सिद्धार्थ बताते हैं कि तब बहुत कम लोग ऑर्गेनिक फार्मिंग के बारे में जानते थे। ज्यादातर किसान तो इसमें दिलचस्पी भी नहीं लेते थे। ट्रेडिशनल फार्मिंग में फायदा नहीं होने के बाद भी वे उसे छोड़ना नहीं चाहते थे। ऑर्गेनिक फार्मिंग में उन्हें नुकसान का डर था। इसलिए उन्हें मोटिवेट करने के साथ ही ट्रेंड करना भी जरूरी था। ताकि वे उसकी प्रोसेस को समझ सकें।

तीन लाख रुपए की लागत से की बिजनेस की शुरुआत

सिद्धार्थ ने 200 लोगों को रोजगार दिया है। इसमें बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हैं।
सिद्धार्थ ने 200 लोगों को रोजगार दिया है। इसमें बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हैं।

साल 2009 में सिद्धार्थ ने पाली जिले से अपने बिजनेस की शुरुआत की। उन्होंने एग्रोनिक्स फूड नाम से कंपनी रजिस्टर की और स्थानीय किसानों के साथ मिलकर काम करना शुरू किया। शुरुआत में करीब 3 लाख रुपए की लागत उन्हें आई थी।

सिद्धार्थ कहते हैं कि घर से उन्हें पैसों को लेकर सपोर्ट मिल रहा था, लेकिन उन्होंने बजट कम रखा। वे लो बजट के साथ धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहते थे। उन्होंने खुद लैंड खरीदने की बजाय किसानों से टाइअप किया। कुछ किसानों को ट्रेनिंग दी, उन्हें रिसोर्सेज उपलब्ध कराए और मसालों की खेती करनी शुरू की।

सिद्धार्थ को शुरुआत के तीन साल तक संघर्ष करना पड़ा। मार्केटिंग से लेकर प्रोडक्शन तक में उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। उसके बाद उन्हें ऑर्गेनिक फार्मिंग का सर्टिफिकेशन मिला। इसके बाद उनके बिजनेस की रफ्तार तेज हो गई।

राजस्थान और गुजरात में सिद्धार्थ की यूनिट है। जहां किसानों से प्रोडक्ट कलेक्ट करने के बाद उसकी प्रोसेसिंग का काम होता है।
राजस्थान और गुजरात में सिद्धार्थ की यूनिट है। जहां किसानों से प्रोडक्ट कलेक्ट करने के बाद उसकी प्रोसेसिंग का काम होता है।

वे किसानों से उनके उत्पाद खरीदकर उसे मार्केट में भेजने लगे। इससे किसानों को भी अच्छा मुनाफा होने लगा और सिद्धार्थ का काम भी आगे बढ़ने लगा। एक के बाद एक उनके साथ किसान जुड़ते गए।

कैसे करते हैं काम, क्या है उनका बिजनेस मॉडल?
सिद्धार्थ बताते हैं हम किसानों को पहले ट्रेनिंग देते हैं। उन्हें इसकी प्रोसेस के बारे में बताते हैं। सीजन और रीजन के हिसाब से उन्हें फसल लगाने की सलाह देते हैं। अगर उनके पास रिसोर्सेज नहीं होते हैं, तो वह भी हम उन्हें उपलब्ध कराते हैं। किसान अपनी जमीन पर फसल उगाते हैं। फसल जब पककर तैयार हो जाती है तो हम उनसे उनका प्रोडक्ट खरीद लेते हैं। उन्हें हम मार्केट रेट के मुकाबले ज्यादा पैसे भुगतान करते हैं।

किसानों से प्रोडक्ट कलेक्ट करने के बाद उसे हम अपनी यूनिट में लाते हैं। फिलहाल गुजरात और राजस्थान में हमारी यूनिट है। यहां उस प्रोडक्ट की क्वालिटी टेस्टिंग, प्रोसेसिंग और पैकिंग का काम होता है। इसके बाद उसकी मार्केटिंग की जाती है। फिलहाल सिद्धार्थ के साथ 40 हजार से ज्यादा किसान जुड़े हैं। ये किसान मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा सहित देश के कई राज्यों से ताल्लुक रखते हैं।

सिद्धार्थ ने मसालों के साथ अपने काम की शुरुआत की थी। वे फ्रेश फ्रूट और सब्जियां छोड़कर एक किचन की जरूरत की हर चीज की मार्केटिंग करते हैं।
सिद्धार्थ ने मसालों के साथ अपने काम की शुरुआत की थी। वे फ्रेश फ्रूट और सब्जियां छोड़कर एक किचन की जरूरत की हर चीज की मार्केटिंग करते हैं।

कैसे करते हैं मार्केटिंग, ग्राहकों तक कैसे पहुंचाते हैं प्रोडक्ट?
सिद्धार्थ बताते हैं कि हमने शुरुआत लोकल मार्केट से की थी। इसके बाद हमने अलग-अलग शहरों में जाना शुरू किया। लोगों से मिलना शुरू किया। हम विदेशों में भी गए और अपने प्रोडक्ट के सैम्पल उन्हें दिखाए। उन्हें हमारा प्रोडक्ट अच्छा लगा। इस तरह धीरे-धीरे हमारा दायरा बढ़ने लगा। इसके बाद हमने रिटेल मार्केटिंग भी शुरू की।

फिलहाल वे ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही तरह से मार्केटिंग कर रहे हैं। वे सोशल मीडिया और ई कॉमर्स वेबसाइट के जरिए अपने प्रोडक्ट ग्राहकों तक भेजते हैं। फिलहाल दाल, ऑइल, मसाले, ब्लैक राइस, हर्ब्स, मेडिसिनल प्रोडक्ट जैसी चीजों की सप्लाई कर रहे हैं।

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