असम-मिज़ोरम की पुलिस आपस में क्यों भिड़ गई, विवाद की पूरी कहानी

  • प्रदीप कुमार
  • बीबीसी संवाददाता
मिजोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरामथांगा और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा

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इमेज कैप्शन, मिजोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरामथांगा और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा

बीते सोमवार को सोशल मीडिया पर भारत के दो राज्यों के मुख्यमंत्री भिड़ गए. मिज़ोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरामथांगा और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा दोनों एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते नज़र आए. भारतीय इतिहास में शायद ही इससे पहले दो पड़ोसी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच ऐसी स्थिति देखने को मिली थी.

लेकिन सोशल मीडिया पर जो नहीं दिख रहा था, उसकी ख़बर कुछ ही घंटों के बाद सामने आ गई. हिंसक झड़प में असम पुलिस के पांच जवानों की मौत हो गई है. यह झड़प की स्थिति तब बनी जब दोनों राज्यों की पुलिस एक-दूसरे के सामने खड़ी हो गई. भारतीय इतिहास में इससे पहले ऐसी स्थिति कभी नहीं आई थी.

असम के मुख्यमंत्री हों या फिर मिज़ोरम के मुख्यमंत्री, दोनों केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से गुहार लगाते सोशल मीडिया पर नज़र आए, जबकि इस घटना से महज़ एक दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शिलांग में सातों राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मिले थे. पूर्वोत्तर भारत की राजनीति पर नज़र रखने वालों की मानें तो इस बैठक में इन राज्यों के बीच सीमा विवाद भी एक मुद्दा था.

गृह मंत्री अमित शाह की बुलाई बैठक में शामिल मिज़ोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरामथांगा

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इमेज कैप्शन, गृह मंत्री अमित शाह की बुलाई बैठक में शामिल मिज़ोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरामथांगा

क्या क्या हुआ- राज्य सरकारों के दावे

मिज़ोरम सरकार के मुख्यमंत्री ने अपने बयान में पूरे हादसे को दुखद बताते हुए कहा है कि यह पूरा संघर्ष तब शुरू हुआ जब रविवार को दिन के साढ़े ग्यारह बजे कछार ज़िले के वैरंगते ऑटो रिक्शा स्टैंड के पास बने सीआरपीएफ़ पोस्ट में असम के 200 से ज़्यादा पुलिसकर्मी पहुंचे और इन लोगों ने मिज़ोरम पुलिस और स्थानीय लोगों पर बल प्रयोग किया.

पुलिस के बल प्रयोग को देखते हुए जब स्थानीय लोग वहां जमा हुए तो उन पर पुलिस ने लाठी चार्ज किया और टियर गैस का इस्तेमाल किया जिसमें कई लोग घायल हुए हैं.

कोलासिब के स्थानीय पुलिस अधीक्षक ने उन लोगों से मिलकर उन्हें समझाने की कोशिश की है. जब असम पुलिस ने ग्रेनेड फेंके और फ़ायरिंग की तो मिज़ोरम पुलिस ने शाम चार बजकर 50 मिनट पर फायरिंग की. मिज़ोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरामथांगा ने अपने बयान में कहा है कि मिज़ोरम पुलिस ने तब असम पुलिस का जवाब दिया जब कोलासिब के ज़िला पुलिस अधीक्षक असम के पुलिस अधिकारियों से बात कर रहे थे.

यही एक बात है जो असम के मुख्यमंत्री के जारी बयान में भी एक समान है. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने अपने बयान में कहा है कि यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब यथास्थिति का उल्लंघन करते हुए मिज़ोरम सरकार ने लैलापुर ज़िले यानी असम के इलाक़े में सड़क बनाने का काम शुरू किया है. इसी सिलसिले में 26 जुलाई को असम पुलिस के आईजी, डीआईजी और पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी वहां गए ताकि उन लोगों को यथास्थिति बनाए रखने के लिए समझाया जा सके.

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा
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असम के मुख्यमंत्री के बयान के मुताबिक असम के पुलिस बल पर मिज़ोरम के आम लोगों ने पत्थरों से हमला कर दिया और मिज़ोरम पुलिस भी उनका साथ देती नज़र आई.

इस बयान के मुताबिक कोलासिब के पुलिस अधीक्षक ने असम के अधिकारियों से यह भी कहा कि उनका भीड़ पर नियंत्रण नहीं है और जब वे बातचीत कर ही रहे थे तभी मिज़ोरम के पुलिसकर्मियों ने गोली चलाई जिसमें असम पुलिस के पांच जवानों की मौत हो गई और कछार ज़िले के पुलिस अधीक्षक सहित पचास लोग घायल हुए हैं.

मिज़ोरम में इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व पत्रकार एडम हैलीडे ने बीबीसी हिंदी को बताया, "दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद तो रहा है, लेकिन दोनों राज्यों की पुलिस एक-दूसरे के सामने खड़े होकर गोलियां चलाने लगेगी, यह तो पहले कभी नहीं हुआ. यह स्थिति क्यों उत्पन्न हुई होगी यह जांच का विषय है. सवाल यही है कि पुलिस बल को गोली क्यों चलानी पड़ी. यह पुलिस अधिकारियों की कामकाजी शैली पर भी सवाल है."

समाचार एजेंसी पीटीआई की गुवाहाटी ब्यूरो चीफ़ दुर्वा घोष बताती हैं, "दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद काफ़ी पुराना है. अलग-अलग जगहों से झड़प की ख़बरें आती रहती हैं, लेकिन यह इतना बड़ा विवाद हो जाएगा और फ़ायरिंग में पुलिसकर्मियों की मौत हो जाएगी, इसका अंदाज़ा शायद ही किसी को होगा. गृहमंत्री अमित शाह ने शनिवार को ही राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की थी."

असम यूनिवर्सिटी के कछार कॉलेज के एसोसिएट प्रोफ़ेसर जॉयदीप बिश्वास इस घटना पर कहते हैं, "गृहमंत्री के दौरे के तुरंत बाद ऐसी घटना तो नहीं होनी चाहिए. हालांकि, समझने की ज़रूरत यह है कि यह विवाद लंबे समय से चला आ रहा है और इस विवाद को सुलझाने के लिए अब तक कोई गंभीर कोशिश भी नहीं हुई है."

पुलिस

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दोनों राज्यों के बीच पुराना है विवाद

असम में बीबीसी हिंदी के सहयोगी पत्रकार दिलीप कुमार शर्मा के मुताबिक, 'असम और मिज़ोरम के बीच सीमा विवाद औपनिवेशिक काल से रहा है. मिज़ोरम पहले 1972 तक असम का ही हिस्सा था. यह लुशाई हिल्स नाम से असम का एक ज़िला हुआ करता था जिसका मुख्यालय आइजोल था. ऐसा बताया जाता है कि असम-मिज़ोरम के बीच यह विवाद 1875 की एक अधिसूचना से उपजा है जो लुशाई पहाड़ियों को कछार के मैदानी इलाकों से अलग करता है.'

एडम हैलीडे बताते हैं, "मिज़ोरम असम के साथ ही था, लेकिन मिज़ो आबादी और लुशाई हिल्स का क्षेत्र निश्चित था. यह क्षेत्र 1875 में चिन्हित किया गया था. मिज़ोरम की राज्य सरकार इसी के मुताबिक अपनी सीमा का दावा करती है, लेकिन असम सरकार यह नहीं मानती है. असम सरकार 1933 में चिन्हित की गई सीमा के मुताबिक अपना दावा करती है. इन दोनों माप में काफ़ी अंतर है तो विवाद की असली जड़ वही एक-दूसरे पर ओवरलैप करता हुआ हिस्सा है जिस पर दोनों सरकारें अपना-अपना दावा छोड़ने को तैयार नहीं हैं."

1875 का नोटिफ़िकेशन बंगाल ईस्टर्न फ़्रंटियर रेगुलेशन (बीइएफ़आर) एक्ट, 1873 के तहत आया था, जबकि 1933 में जो नोटिफ़िकेशन आया उस वक़्त मिज़ो समुदाय के लोगों से सलाह मशविरा नहीं किया गया था, इसलिए समुदाय ने इस नोटिफ़िकेशन का विरोध किया था.

असम के साथ मिज़ोरम लगभग 165 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है जिसमें मिज़ोरम के तीन ज़िले आइजोल, कोलासिब और ममित आते हैं. वहीं, इस सीमा में असम के कछार, करीमगंज और हैलाकांदी ज़िले आते हैं.

दिलीप शर्मा के मुताबिक, 'पिछले साल अक्टूबर में असम के कछार ज़िले के लैलापुर गांव के लोगों और मिज़ोरम के कोलासिब ज़िले के वैरेंगते के पास स्थानीय लोगों के बीच सीमा विवाद को लेकर हिंसक संघर्ष हुआ था जिसमें कम से कम आठ लोग घायल हो गए थे.'

दोनों राज्यों के बीच इन झड़पों की वजहों पर दुर्वा घोष ने बताया, "देखिए मूल रूप से यह झगड़ा ज़मीन का है. आप इसे बढ़ती आबादी का ज़मीन पर पड़ने वाला दबाव भी कह सकते हैं. लोगों को मकान चाहिए, स्कूल, अस्पताल चाहिए तो इसके लिए ज़मीन चाहिए. दोनों राज्य एक-दूसरे की ज़मीन पर अतिक्रमण का आरोप लगा रहे हैं. दोनों राज्यों के अपने-अपने दावे हैं और उन दावों में कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ बोल रहा है, इसका पता लगाना अब बेहद मुश्किल हो चुका है."

वीडियो कैप्शन, असम में एक मुस्लिम दंपती मंदिरों और रास्तों को संवार रहा है

हालांकि, असम यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफ़ेसर जॉयदीप बिश्वास कहते हैं, "यह विवाद उन्हीं पॉकेट में ज़्यादा है जहां लोगों की बसावट ज़्यादा है. सभी इलाकों में ऐसा तनाव नहीं है."

एडम हैलीडे के मुताबिक, "पहले तो यह इलाक़ा जंगलों से भरा हुआ था और इसे नो मैन्स लैंड कहा जाता था. लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं है, इसलिए भी संघर्ष बढ़ा है."

वैसे सीमा को लेकर असम का विवाद केवल मिज़ोरम के साथ ही नहीं है. दुर्वा घोष ने बताया, "असम का केवल मिज़ोरम से ही विवाद नहीं है. मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड के साथ भी असम का सीमा विवाद रहा है."

पड़ोसी राज्यों के साथ सीमा विवाद को लेकर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने पिछले ही दिनों अपने बयान में कहा है कि मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड से सीमा विवाद तो हल हो जाएगा, लेकिन मिज़ोरम के साथ इस विवाद का हल मिल पाना मुश्किल है.

प्रोफेसर जॉयदीप बिश्वास कहते हैं, "असम के मुख्यमंत्री के बयान से आपको स्थिति की गंभीरता का अंदाज़ा हो सकता है. शायद वे कहना चाहते होंगे कि असम और मिज़ोरम के साथ सीमा विवाद इतना जटिल हो चुका है कि उसका हल मिलना मुश्किल है. शायद यही वजह है कि हर कोई यथास्थिति बनाए रखने की बात कर रहा है."

सड़क पर चलती एक महिला

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सीमा चिन्हित करने के लिए संयुक्त सर्वे नहीं

वैसे दिलचस्प यह है कि असम और मिज़ोरम के बीच सीमा विवाद को सुलझाने की कोशिशों पर कहा जाता है कि 1955 से ही कोशिश हो रही है, लेकिन इन कोशिशों पर सवाल उठाते हुए एडम हैली बताते हैं, "किसी ज़मीन या सीमा पर जब कोई विवाद को निपटाने की कोशिश होती है तो सबसे पहले उसका दोनों पक्षों की निगरानी में सर्वे होता है. विवाद इतना पुराना भले हो, लेकिन आज तक इसे सुलझाने के लिए किसी स्तर पर ज्वाइंट सर्वे कराने की कोशिश नहीं हुई है, ना ही इस दिशा में ज़्यादा बात हो रही है."

वैसे दुर्वा घोष बताती हैं कि सीमा विवाद तो पहले से रहा है, लेकिन पिछले एक साल में इसकी फ़्रीक्वेंसी में इज़ाफ़ा देखने को मिला है. इसकी वजहों पर वह कहती हैं कि सीमावर्ती इलाक़े में लोगों के सेटल होने के मामले बढ़ रहे हैं और इसलिए लोगों के बीच आपसी टकराव भी बढ़ा है.

दुर्वा के मुताबिक इन टकरावों को रोकने की कोशिशों को भी प्राथमिकता मिलने की ज़रूरत है क्योंकि झड़प का मामला केंद्र सरकार तक पहुंच रहा है, लेकिन विवाद का हल नहीं मिल रहा है. वहीं, जॉयदीप बिस्वास मानते हैं कि सरकार के साथ-साथ पुलिस या प्रशासन को भी ऐसे मामलों को शांत करने में अपनी भूमिका निभानी होगी.

जबकि एडम हैली कहते हैं, "पहले विवाद का स्तर यहां तक पहुंचता ही नहीं था, अब विवादों के बड़े रूप सामने आ रहे हैं क्योंकि इन विवादों का राजनीतिकरण होने लगा है. ऐसे में राजनीतिक तौर पर भी समस्या के हल को लेकर गंभीरता दिखने के बजाए यथास्थिति को बनाए रखने का भाव ज़्यादा दिखता है."

जयदीप बिश्वास कहते हैं, "इन विवादों के राजनीतिकरण का ही असर है कि क्षेत्रीय अस्मिता की बात हर विवाद के बाद ज़ोर शोर से उठने लगती है, लोग राष्ट्रीयता के भाव को पीछे छोड़कर क्षेत्रीय अस्मिता की बात करने लगते हैं."

असम और मिजोरम के बीच रविवार को हुई हिंसक झड़प के बाद इलाक़े में तनाव बरक़रार रहने की आशंका है. स्थानीय पत्रकार चंद्रानी सिन्हा के मुताबिक सीमावर्ती इलाक़ों में सोमवार से असम सरकार पुलिस बल की मौजूदगी बढ़ाने जा रही है, इससे फ़िलहाल स्थिति में तनाव बढ़ने की आशंका तो नहीं है?

मेघालय

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मेघालय में भी तनाव की ख़बरें

सोमवार देर रात से असम और मेघालय की सीमा पर भी तनाव का असर दिखने लगा है. मेघालय की राजधानी शिलांग के स्थानीय पत्रकार जो थिंगखिइउ ने बताया, "मेघालय और असम की सीमा पर भी तनाव की स्थिति है. पिछले दिनों ही सीमावर्ती इलाकों में मेघालय राज्य के बिजली विभाग ने बिजली के पोल लगाए. अगले दिन असम के पुलिसकर्मियों ने आकर उन्हें हटा दिया. मतलब मेघालय सरकार जिस ज़मीन को अपना मान रही है, असम सरकार उस पर अपना दावा जता रही है."

जोए थिंगखिइउ के मुताबिक असम और मेघालय की सीमा के चार ज़िलों में सीमा विवाद बीते कई दशकों से चला आ रहा है और सीमा चिन्हित करने की दिशा में कोई काम नहीं होने से भी विवाद ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है.

बहरहाल, मिज़ोरम और असम के बीच मौजूदा विवाद को कुछ विश्लेषक आने वाले दिनों की राजनीति से भी जोड़कर देख रहे हैं. एक वरिष्ठ पत्रकार ने इस पूरे विवाद पर टिप्पणी करते हुए कहा, "अभी असम में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और ज़ोरामथांगा की मिजो नेशनल फ़्रंट भी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा है. मिज़ोरम में दो साल बाद चुनाव होने हैं, लेकिन तब तक ज़ोरामथांगा एनडीए में बने रहेंगे, इसे लेकर संदेह है. केंद्र और असम की सरकार के सामने उन्हें अपना रास्ता अलग करना होगा."

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