खानपान को लेकर आज जागरूकता से ज्यादा बड़ा संकट विश्वसनीयता का है। लोगों को समझ में नहीं आ रहा कि वे किन बातों-हिदायतों को मानें और किन्हें खारिज करें। इस बारे में राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ के निदेशक डॉ अनुपम श्रीवास्तव बताते हैं कि बाजार में आज जैविक और प्राकृतिक के नाम पर कई ऐसी चीजें हैं जो सेहत को फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचा रही हैं। ऐसा इसलिए कि जिन चीजों को जैविक या प्राकृतिक के नाम पर नाम पर बेचा जा रहा है, उनमें रासायनिक तत्व अलग से मिलाए जाते हैं। यह भी कि ‘हर्बल प्रोडक्ट’ आयुर्वेद की श्रेणी में नहीं आत हैं।

इस बारे में डॉ श्रीवास्तव बताते हैं कि आयुर्वेद में आहार या खाद्य पदार्थ को शरीर का मूल कहा गया है। आयुर्वेद में भिन्न-भिन्न प्रकार के अहार वर्गों का वर्णन मिलता है। शरीर में दोषों की स्थिति, प्रकृति, ऋतु या मौसम के अनुसार इनका सेवन करने पर शरीर रोगों से लड़ने में सक्षम और स्वस्थ बनता है। इसलिए मनुष्य को चाहिए क वह अपने देश, काल, ऋतु, प्रकृति के अनुसार आहार ले। यह एक जरूरी और उपयोगी सलाह है। अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए वे कहते हैं, ‘जिस जगह आप रहते हैं, उसके 200-300 किलोमीटर के दायरे में मौसम के हिसाब से जो भी प्राकृतिक तौर पर उपलब्ध हो, वो सेहत के लिए सबसे अच्छा है। इससे मनुष्य का स्वास्थ्य तो अच्छा रहता ही है, उसकी उम्र भी लंबी होती है।’

इन दिनों ‘मल्टीग्रेन’ का जोर काफी बढ़ा है। आटा से लेकर डबल रोटी तक के रैपर पर मल्टीग्रेन के दावे आ गए हैं। जबकि इनमें सब कुछ दिखावे मात्र का होता है। मल्टीग्रेन को लेकर कई चिकित्सकीय दावे भी किए जाते हैं। मसलन उच्च उच्च रक्तचाप, मधुमेह और हृदय रोगों में इनके सेवन से लाभ मिलता है। वजन घटाने के लिए भी इसे एक अच्छा विकल्प बताया गया है। पर जहां तक आयुर्वेद की बात है तो मल्टीग्रेन के बारे में वह अलग से कुछ नहीं कहता है। हां, मोटा या चोकर युक्त आटे के प्रयोग को जरूर पारंपरिक तौर पर बेहतर माना गया है।

डॉ श्रीवास्तव कहते हैं, ‘मल्टीग्रेन से ज्यादा बेहतर होगा कि उचित मात्रा में चोकर मिले आटे का प्रयोग किया जाए। इससे कब्ज और अपच जैसी पाचन संबंधी समस्याओं को कम करने में तो मदद मिलेगी ही, हृदय रोग और मोटापे की समस्या भी दूर करने में यह लाभकारी साबित होगा।’ खानेपीने की समस्या खाद्य तेलों से भी जुड़ी है। पुराने समय में खाना बनाने के लिए मुख्य रूप से घी, मक्खन, तिल का तेल, सरसों का तेल, मूंगफली का तेल और नारियल तेल का प्रयोग किया जाता था। बाद में वनस्पति घी, रिफाइंड आॅयल जैसे विकल्प प्रचलन में आ गए। डॉ श्रीवास्तव बताते हैं कि रिफाइंड तेल के निर्माण में हेक्सेन या अन्य पेट्रो केमिकल एजेंटों का प्रयोग किया जाता है, जिनके वैज्ञानिक शोध से पता चलता है के ये तत्व कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का कारण बन सकते हैं। आयुर्वेद में तिल के तेल को सभी खाद्य तेलों में सबसे अच्छा कहा गया है। वैज्ञानिक नजरिए से भी देखा जाए तो तिल के तेल में सर्वाधिक मात्रा में जरूरी फैटी एसिड पाए जाते हैं, जिसकीवजह से यह सबसे उचित खाद्य तेल माना गया है।