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एन. रघुरामन का कॉलम:जब लोग बाहरी किसी बदलाव के कारण उलझन में हो तब ग्राहकों को सहूलियतें देने के बारे में सोचें, मैं भरोसा दिलाता हूं कि वे इसे खरीदेंगे

3 वर्ष पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

हममें से हर कोई आंख बंद करके भी ये मानेगा कि लोग समय बचाने के लिए सहूलियत भरे उत्पादों जैसे रेडी टू कुक-ईट पर ज्यादा खर्च करते हैं। ये उत्पाद उपलब्ध कराने वालों को महामारी के बाद लगा कि घूमने-फिरने की पाबंदियों व वर्क फ्रॉम होम के कारण लोगों के पास ज्यादा समय होगा।

तब उनमें से कुछ ने दायरा कम कर लिया, जिससे उनका व्यवसाय भी सिमट गया। पर वे ये समझने में विफल रहे कि महामारी ने असल में लोगों को उलझा दिया है और बेचैनी में लोग अपना समय विवेक से खर्च नहीं कर पा रहे। इसलिए कुछ अन्य लोग सोच रहे हैं कि महामारी के बाद वे और ज्यादा सहूलियत उत्पाद खरीदेंगे और ये धीरे-धीरे उनकी जीवनशैली का हिस्सा बन जाएंगे।

अगर ऐसा नहीं है तो फिर पकाने के लिए तैयार पहले से कटी सब्जियों की बिक्री में तेजी से बढोतरी को कैसे सही ठहराएंगे? सदियों से गरीबों का भोजन रहे बाजरा जैसे अनाज से बनने वाली भाकरी रोटी व तली हुई मिर्ची के साथ लहसुन की चटनी जैसे साधारण से खाने की और ज्यादा रेसिपी ऑनलाइन सर्च करने वालों को कैसे सही ठहराएंगे? कटी व पकाने के लिए तैयार सब्जियां बेचना केरल में तिरुवनंतपुरम स्थित वेजिटेबल व फ्रूट प्रमोशन काउंसिल का पुराना व्यवसाय है।

वहां स्टाफ सब्जियां साफ करता है फिर काटकर पैक करके लेबल लगा देता है। महामारी से पहले उनका अन्य सेवाओं के बीच अधिकतम टर्नओवर 25 लाख रुपए सालाना हुआ करता था। पर 2020-21 में यह 63 लाख रुपए पहुंच गया। पिछले तीन महीनों में ही यह पहले ही 21 लाख रुपए पार कर चुका है, चूंकि मॉल्स में रेडी टू ईट सब्जियों की बिक्री तेजी से बढ़ी है, ऐसे में पिछले साल की बिक्री पार होने का अनुुमान है।

ऐसा सिर्फ संस्थाओं के साथ नहीं, अकेले काम कर रहे दिव्या जैसे लोगों के साथ भी हुआ है, वाट्सएप की मदद से उसका व्यापार कई गुना बढ़ गया है। पहले उसके पास सिर्फ 50 ग्राहक थे, जहां वह शाम के बाजार में उपलब्ध सब्जियों की सूची पोस्ट करती थी। उसे झटपट ऑर्डर मिलते। फिर सब्जियां लेकर घर पहुंचती।

जहां वह रात में ही लहसुन-प्याज छीलकर रख लेती, लेकिन फ्रिज में सब्जियां नहीं रखने के कारण सुबह 10 बजे से पहली डिलीवरी देने के लिए सुबह ही सब्जी काटती। आज उसके 400 से ज्यादा ग्राहक हैं और बढ़ते व्यवसाय को चलाने के लिए सहायक भी हैं। सिर्फ सब्जियां ही नहीं, इस सुविधा के कारण कटहल जैसे छीलने में बोझिल फल भी लोकप्रिय हो रहे हैं।

भोपल्याचा कीस (कद्दू से तैयार) से लेकर काकडीचे घारगे (ककड़ी की पूरियां), भुने कटहल बीज, जवारी भाकरी जैसे व्यंजन लें। ये सब खाने से संबंधित कलात्मक इंस्टाग्राम पोस्ट का हिस्सा हैं। पहले गरीब लोग नचनी में थोड़ा चावल या रागी के साथ नमक, हरी मिर्च डालकर ज्यादा पकाते थे। चूंकि ये रसेदार हुआ करती थी ऐसे में बड़े परिवारों में सबका पेट भरने के लिए काफी होती थी। आज कम्प्यूटर के सामने घंटों बैठे जंक फूड से पेट खराब करने वाले युवा इसकी तैयारी को दो कारणों से तवज्जो दे रहे हैं।

मेडिकली ये पेट के लिए अच्छी है, दूसरा गर्म-गर्म खिचड़ी की एक चम्मच खाने के लिए वह लैपटॉप का कैमरा 5 सेकंड के लिए बंद कर सकते हैं! दिलचस्प है कि बाजरा जैसा अनाज कभी गरीबों का मुख्य भोजन हुआ करता था, गेहूं के इस सेहतमंद विकल्प को आज ‘सुपरफूड’ कहा जाता है। यही कारण है कि इनका प्रचार करके कई वेबसाइट्स भी मशरूम की तरह पनप रही हैं व लोकप्रिय भी हो रही हैं।

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