भास्कर एक्सप्लेनर:वैक्सीन लगने के बाद भी क्यों हो रहा है इन्फेक्शन? क्या वैक्सीनेट व्यक्ति भी इन्फेक्शन फैला सकता है?

3 वर्ष पहलेलेखक: रवींद्र भजनी
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भारत में कोविड-19 वैक्सीन के करीब 43 करोड़ डोज दिए जा चुके हैं। स्टडीज का दावा है कि वैक्सीन लगी हो तो कोविड-19 की वजह से गंभीर लक्षण या मौत होने की आशंका काफी कम हो जाती है। न तो नेचुरल इन्फेक्शन से बनी एंटीबॉडी आपको रीइन्फेक्शन से बचा सकती है और न ही वैक्सीन से बनी एंटीबॉडी।

पर सवाल तो उठ ही रहे हैं कि वैक्सीन लेने के बाद भी इन्फेक्शन क्यों हो रहे हैं? क्या वैक्सीन लगने के बाद कोई इन्फेक्ट हुआ तो वह अपने आसपास के और लोगों को भी इन्फेक्ट कर सकता है? इस तरह के कुछ और भी प्रश्न हैं, जिनके जवाब भारत और दुनियाभर में हुईं स्टडीज दे रही हैं…

ब्रेकथ्रू कोविड-19 इन्फेक्शन क्या है? इसकी स्टडी क्यों जरूरी है?

  • वैक्सीन के बाद आपको एक तरह का कवच मिलता है। पर कई लोगों को इसके बाद भी इन्फेक्शन हो रहा है, जिसे विशेषज्ञ ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन कह रहे हैं। विशेषज्ञ कह रहे हैं कि वैक्सीन लगवाने के बाद भी इन्फेक्शन से 100% इम्यूनिटी नहीं मिलती है। इसका मतलब यह है कि वैक्सीनेट हो चुके लोगों को भी इन्फेक्शन होने का खतरा बना हुआ है।
  • कोरोनावायरस जितने समय तक कम्युनिटी में सर्कुलेट होता रहेगा, उतना ही इन्फेक्शन या रीइन्फेक्शन का खतरा बना रहेगा। पर अच्छी बात यह है कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) समेत दुनियाभर में हुई स्टडी बताती है कि वैक्सीन इन्फेक्शन के गंभीर लक्षणों से बचाने में मददगार है।

ब्रेकथ्रू कोविड-19 इन्फेक्शन हो क्यों रहा है?

इसे हमें तीन स्तरों पर देखना होगा-

  • वायरसः महामारी के वायरस में लगातार म्यूटेशन हो रहा है। वह अपनी संरचना बदलकर पहले से ज्यादा इन्फेक्शियस नए वैरिएंट बना रहा है। ओरिजिनल वायरस से अल्फा वैरिएंट करीब 70% ज्यादा इन्फेक्शियस है, जबकि डेल्टा तो अल्फा से भी 50% ज्यादा इन्फेक्शियस है। यह वैरिएंट्स ही नए केसेस का कारण है। ICMR की स्टडी में 86% ब्रेकथ्रू केसेस का कारण डेल्टा वैरिएंट ही निकला है।
  • वैक्सीनः डेटा बताता है कि वैरिएंट्स से बचने के लिए दो डोज जरूरी हैं। पर अभी अधिकांश लोगों को दोनों डोज नहीं लगे हैं। इसी तरह वैक्सीन की इफेक्टिवनेस भी एक फेक्टर है। कोवीशील्ड की इफेक्टिवनेस 60% से 90% है तो वहीं, कोवैक्सिन 78% इफेक्टिव है। यानी बचे हुए लोगों के इन्फेक्ट होने का खतरा तो रहेगा ही।
  • एंटीबॉडी रिस्पॉन्सः सबसे प्रभावी वैक्सीन भी इम्यूनिटी की गारंटी नहीं देती। कुछ लोगों में वैक्सीन के दोनों डोज के बाद भी एंटीबॉडी का स्तर ऐसा नहीं होता कि इन्फेक्शन से बचा जा सके। उन लोगों को डर अधिक है, जो कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का इलाज करने के लिए इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं ले रहे हैं।

ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन कितने कॉमन हैं?

  • इसे ट्रैक करना बेहद मुश्किल है। खासकर जब रुटीन सर्विलांस यानी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग की जांच ज्यादातर देशों ने बंद कर दी है। सेंटर फॉर डिजीज प्रिवेंशन एंड कंट्रोल (CDC) के मुताबिक अप्रैल से चार महीनों में 13 करोड़ वैक्सीन डोज लगे, पर इस दौरान ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन सिर्फ 10 हजार सामने आए। यानी 10 हजार की आबादी पर 1 इन्फेक्शन।
  • रोड आइलैंड में प्रिजन सिस्टम में एक स्टडी की गई। कैदियों और गार्ड्स की हर हफ्ते जांच होती है। वहां मार्च से मई के बीच 2,380 वैक्सीनेटेड लोगों में से 27 ही पॉजिटिव टेस्ट हुए हैं। भारत में भी वैक्सीनेशन की रफ्तार बढ़ने के बाद नए केस मिलने का रेट कम हुआ है। यानी कुछ हद तक वैक्सीनेशन इन्फेक्शन को रोक रहा है।

हमारे पास ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन के बारे में क्या जानकारी है?

  • अब हमारे पास इस बात के पक्के सबूत हैं कि कोविड-19 वैक्सीन इन्फेक्शन के गंभीर लक्षणों और मौतों को रोकने में कारगर है। मई के बाद से CDC ने ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन पर नजर रखना बंद कर दिया है। 12 जुलाई तक उसने 791 मौतों और 3,733 हॉस्पिटलाइजेशन का डेटा जुटाया है। हॉस्पिटल में भर्ती लोगों में से 97% को वैक्सीन नहीं लगी थी।
  • इजराइल ने 2021 की शुरुआत में दुनिया में किसी भी और देश की तुलना में प्रति व्यक्ति अधिक कोविड वैक्सीन डोज दिए थे। अप्रैल के अंत तक वैक्सीनेटेड लोगों में 400 अस्पताल में भर्ती हुए। उनमें से 234 को गंभीर लक्षणों का सामना करना पड़ा। 90 लोगों की मौत हुई। जो लोग अस्पताल में भर्ती हुए, उनमें आधे से अधिक में हाई ब्लडप्रेशर, डाइबिटीज और हार्ट फेल्योर का रिस्क अधिक था। यानी उनकी पहले से मौजूद बीमारियों ने उनके इम्यून सिस्टम को कमजोर कर रखा था।
  • ICMR की नई स्टडी से साफ है कि डेल्टा वैरिएंट हो या अल्फा-बीटा या कप्पा वैरिएंट, वैक्सीन का असर गंभीर लक्षणों को रोकने में साफ दिख रहा है। स्टडी कहती है कि 17 राज्यों के 677 सैम्पल्स में से सिर्फ तीन लोगों (0.4%) की मौत हुई और 67 लोगों (9.8%) को हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ा। साफ है कि वैक्सीन लगने के बाद भी जिन लोगों को इन्फेक्शन हुआ, उनमें दस में से नौ लोगों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ी।

कोविड-19 से बचाने में वैक्सीन कितनी इफेक्टिव है?

  • क्लिनिकल ट्रायल्स में कोविड वैक्सीन 50% से 95% तक इफेक्टिव साबित हुई हैं। भारत की बात करें तो कोवैक्सिन 78%, कोवीशील्ड 70% से 90% और स्पुतनिक वी 91% इफेक्टिव साबित हुई है। अगर आप किसी वैक्सीन के 80% इफेक्टिव होने की बात कहते हैं तो बचे हुए 20% के इन्फेक्ट होने का खतरा कायम रहता है।
  • पर वास्तविक दुनिया में वैक्सीन का परफॉर्मेंस क्लिनिकल ट्रायल्स जैसा ही हो, यह जरूरी नहीं है। इसमें आबादी, समय और डोज के तौर-तरीके के आधार पर बदलाव हो सकता है। यह रेट्स कई कारणों से प्रभावित होते हैं, जिसमें कोविड-19 के वैरिएंट्स की मौजूदगी एक बड़ा कारण है। इसके अलावा वायरस के ट्रांसमिशन को रोकने के लिए सोशल और पब्लिक हेल्थ उपायों पर भी ध्यान रखना बेहद जरूरी है।
  • जून में वेल्लोर (तमिलनाडु) के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज की स्टडी आई थी। इसके मुताबिक 7,080 वैक्सीनेटेड स्टाफ में से 679 को ही इन्फेक्शन हुआ। सिर्फ 64 को ही हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ा। इसमें भी चार को ऑक्सीजन थैरेपी और 2 को आईसीयू केयर की जरूरत पड़ी। यानी वैक्सीन इन्फेक्शन रोकने में 90% से अधिक इफेक्टिव साबित हुई।

वैक्सीनेटेड लोगों से कोरोनावायरस के फैलने का खतरा कितना है?

  • इसका जवाब तलाशने के लिए अब तक कुछ ही स्टडी हुई हैं। स्कॉटलैंड में हेल्थकेयर वर्कर्स के बीच कराई गई स्टडी कहती है कि वैक्सीन नहीं लगवाने वालों के मुकाबले वैक्सीन लगाने वालों के परिवार के सदस्यों के इन्फेक्ट होने का खतरा 30% कम हो जाता है।
  • इसी तरह इंग्लैंड में हुई स्टडी कहती है कि वैक्सीनेशन के बाद घरों में इन्फेक्शन फैलने का खतरा 40% से 50% तक कम हो जाता है। पर ज्यादा तेजी से ट्रांसमिट होने वाले वैरिएंट इस दावे को झूठला सकते हैं। इस समय डेल्टा वैरिएंट के साथ ऐसा ही हो रहा है। इसके बाद भी कोविड वैक्सीन ने रिकवरी समय घटाने के साथ ही वायरल लोड भी कम करने में कामयाबी दिखाई है।

क्या बूस्टर शॉट्स की जरूरत पड़ेगी?

  • थाईलैंड, बहरीन और यूनाइटेड स्टेट्स अमीरात ने शुरुआत में चीन के सिनोवेक बायोटेक लिमिटेड या सिनोफार्म ग्रुप्स की वैक्सीन लगवाई थी। पर जब केस बढ़ने लगे तो वैक्सीन की इफेक्टिवनेस पर सवाल उठे। इसके बाद फाइजर या मॉडर्ना की वैक्सीन के बूस्टर शॉट की जरूरत पड़ी।
  • अमेरिका और यूरोप में वैक्सीन एक्सपर्ट और हेल्थ अधिकारी कह रहे हैं कि बूस्टर डोज की जरूरत पड़ सकती है। पर इसे लेकर डेटा नहीं है। पब्लिक हेल्थ स्पेशलिस्ट का कहना है कि पहले उन लोगों को वैक्सीनेट करने की जरूरत है, जिन्हें एक भी डोज नहीं लगा है। इसके बाद ही तीसरे डोज के तौर पर बूस्टर डोज पर विचार होना चाहिए।
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