बीएसपी का ब्राह्मण सम्मेलन: शंखनाद के साथ लगे 'जय श्रीराम' के नारे

  • समीरात्मज मिश्र
  • अयोध्या से, बीबीसी हिंदी के लिए
सतीश चंद्र मिश्रा

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अयोध्या में शंखध्वनि, घंटों और मजीरों की ध्वनि के बीच वेदमंत्रों के उच्चारण से शुरू हुए बहुजन समाज पार्टी के 'प्रबुद्ध वर्ग विचार संगोष्ठी' का समापन 'जय भीम-जय भारत' के अलावा 'जयश्रीराम' और 'जय परशुराम' के उद्घोष के साथ हुआ.

आख़िरी दो नारे बीएसपी के किसी सम्मेलन में शायद पहली बार लगे हों लेकिन यही नारे अब बीएसपी की राजनीतिक दिशा तय कर रहे. हालांकि कुछ जातियों को लक्ष्य करके बनाए गए कुछ विवादास्पद नारे बीएसपी को आज भी परेशान करते हैं लेकिन बीएसपी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने साफ़ कर दिया कि 'वो नारे' न तो बीएसपी की किसी सभा में कभी लगे हैं और न ही बीएसपी के किसी नेता ने कभी लगाए हैं.

बीएसपी की ओर से पहले इसे 'ब्राह्मण सम्मेलन' कहा जा रहा था लेकिन आयोजन से एक दिन पहले इसका नाम बदलकर 'प्रबुद्ध वर्ग विचार संगोष्ठी' कर दिया गया.

इस श्रृंखलाबद्ध संगोष्ठी की शुरुआत अयोध्या से ही क्यों हुई, इसका जवाब पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सतीश चंद्र मिश्र ने अपने भाषण में देने की कोशिश की लेकिन जब भाषण की समाप्ति 'जयश्रीराम' और 'जय परशुराम' के नारों के साथ हुई तो उत्तर काफ़ी कुछ स्पष्ट हो गया. और पूरी तरह तब स्पष्ट हो गया जब सतीश चंद्र मिश्र ने इस सम्मेलन के दूसरे चरण की शुरुआत मथुरा से, तीसरे की शुरुआत काशी (वाराणसी) से और चौथे चरण की शुरुआत चित्रकूट से करने की घोषणा की.

मीडिया के लिए निर्धारित जगह पर खड़े एक बुज़ुर्ग सीताराम काफ़ी उत्साहित थे. कहने लगे, "अयोध्या, मथुरा, काशी पर किसी का पेटेंट थोड़ी न है. ये तीर्थस्थल सभी हिंदुओं के हैं."

सतीश चंद्र मिश्र यह बताना भी नहीं भूले कि सम्मेलन में क़रीब दो घंटे की देरी से पहुंचने की वजह यह थी कि यहां आने से पहले वे रामलला और हनुमानगढ़ी में दर्शन करने गए थे और फिर सरयू आरती में भी शामिल हुए थे. उन्होंने बीजेपी और विश्व हिन्दू परिषद पर कई तीखे सवाल दागे.

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राम मंदिर के चंदे पर सवाल

सतीश चंद्र मिश्र का कहना था, "पिछले 30 साल में जमा किए पैसे का हिसाब दें, जो इन्होंने अयोध्या के नाम पर लाखों-करोड़ों रुपये इकट्ठा किए हैं. हर जगह से इन्होंने चंदा लिया. अब फिर चंदा मांग रहे हैं. भगवान राम के लिए आप झोला लेकर घूम रहे हैं. एक साल में मंदिर की नींव भी नहीं बन पा रही है. मंदिर बनेगा या नहीं, ये आज भी प्रश्न है. मैं कहना चाहता हूं कि इनका असली चेहरा पहचानिए."

अयोध्या-लखनऊ राजमार्ग पर एक रीसॉर्ट में आयोजित इस सम्मेलन में कोविड प्रोटोकॉल को देखते हुए पचास लोगों के शामिल होने की अनुमति दी गई थी लेकिन वहां मौजूद लोगों की संख्या कुछ नहीं तो इस संख्या की सौ गुनी तो रही ही होगी. हालांकि लोगों को मास्क लगाए रखने की बार-बार मंच से हिदायत दी जा रही थी. ख़ुद सतीश मिश्र यह कह रहे थे कि अभी तमाम लोग बाहर ही खड़े हैं और कुछ लोग तो अपनी गाड़ियों में ही बैठे हैं.

वीडियो कैप्शन, मायावती को क्यों आ रही ब्राह्मणों की याद?

इससे पहले, शुक्रवार की सुबह अयोध्या शहर में रहने वाले सर्वेश कुमार पांडेय से मुलाक़ात हुई थी. जगह-जगह बीएसपी के इस प्रबुद्ध सम्मेलन वाले पोस्टर्स लगे थे. सर्वेश कुमार पांडेय किसी राजनीतिक दल से जुड़े नहीं हैं लेकिन बीएसपी के इस सम्मेलन को लेकर भी बहुत उत्साहित नहीं थे. कारण पूछने पर बताया कि 'चार साल से तो ब्राह्मणों की याद नहीं आई. अब अचानक क्यों याद आ रही है?'

उनके इस सवाल का जवाब सम्मेलन में मौजूद और गोरखपुर के रहने वाले अमरचंद्र दुबे ने दिया, "ऐसा नहीं है कि बीएसपी ने चार साल कुछ नहीं किया. इससे पहले भी कई सम्मेलन हो चुके हैं और अब तो पूरी सूची ही जारी हो चुकी है. पिछले साल भी कानपुर में विकास दुबे के एनकाउंटर पर बीएसपी ने विरोध जताया था. हर चीज़ का समय होता है. अब हम 2022 में इन्हें सबक सिखाएंगे."

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पूरे प्रदेश में आयोजन का सिलसिला

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सतीश चंद्र मिश्र ने ब्राह्मण समाज की एकजुटता के महत्व को बताते हुए बीएसपी के साथ उसके जुड़नी की वजह कुछ इस तरह बताई, "सत्ता की चाभी लेने के लिए 13 फ़ीसद ब्राह्मण अगर 23 फ़ीसद वाले दलित समाज के साथ मिल जाएं तो जीत सुनिश्चित है. जिसकी जितनी तैयारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी. हमने 45 ब्राह्मण विधायक बनाए थे."

सतीश मिश्र ने कानपुर में विकास दुबे और उनके साथियों की कथित पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत पर कई बार सवाल उठाए. ख़ासतौर पर ख़ुशी दुबे पर. उन्होंने दावा किया कि यूपी में पिछले चार सालों में सैकड़ों ब्राह्मणों की हत्या हो चुकी है.

इस विचार सम्मेलन में महिलाओं की भागीदारी लगभग न के बराबर थी लेकिन जब अयोध्या की रहने वाली शशिबाला चौधरी से मैंने यह सवाल पूछा तो उनका कहना था, "गर्मी बहुत है, फिर भी महिलाएँ आई हैं. महिलाओं के पास वैसे भी कई काम होते हैं, फिर भी बहुत सी महिलाएं आई हुई हैं."

अयोध्या के बाद बीएसपी इस ब्राह्मण सम्मेलन यानी प्रबुद्ध वर्ग विचार संगोष्ठी को, आंबेडकर नगर, प्रयागराज, प्रतापगढ़, कौशांबी और सुल्तानपुर में आयोजित करेगी. इसके बाद इनके अगले चरण शुरू होंगे और अंत में राजधानी लखनऊ में एक बड़ा सम्मेलन आयोजित होगा. कार्यक्रम में सतीश चंद्र मिश्र ने बताया कि 15 अक्तूबर तक लगभग पूरे प्रदेश में इस तरह के सम्मेलन आयोजित होंगे.

कार्यक्रम में सतीश चंद्र मिश्र ने परशुराम का कई बार ज़िक्र किया और ब्राह्मणों को उनका वंशज बताया लेकिन वहीं मौजूद बस्ती ज़िले के रहने वाले दिनेश तिवारी का कहना था कि 'मंच पर जिन महापुरुषों की तस्वीरें लगी हैं, उन पर तो कहीं भी परशुराम नहीं दिख रहे हैं.'

बीएसपी सम्मेलन

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मंच पर सतीश चंद्र मिश्रा का बेटा भी मौजूद

हमने वहां मौजूद बीएसपी के नेता से जब यही चाहा चाहा तो उनका कहना था, "अभी तो शुरुआत है, आगे देखिए, क्या होता है. मंच पर तो तस्वीर उन्हीं की मिलेगी जिन्होंने दलितों के लिए कुछ किया है."

बहुजन समाज पार्टी ने इससे पहले साल 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के तहत ब्राह्मणों को अपनी ओर जोड़ने का बड़ा अभियान चलाया था जिसकी बदौलत राज्य में पहली बार उसकी बहुमत की सरकार बनी थी. उस दौर में बीएसपी से जुड़े तमाम बड़े नेता, जिनमें कई ब्राह्मण भी हैं, आज दूसरी पार्टियो में शामिल हो चुके हैं. क़रीब 14 साल बाद बीएसपी उसी सोशल इंजीनियरिंग के फ़ॉर्मूले को एक बार फिर अपनाना चाहती है.

चुनाव पूर्व सोशल इंजीनियरिंग का परिणाम साल 2022 के विधानसभा चुनाव में कितना असरकारी होता है, ये तो वक़्त ही बताएगा लेकिन बीएसपी की इस प्रबुद्ध विचार संगोष्ठी में काले रंग की पठान सूट में महासचिव सतीश चंद्र मिश्र के ठीक बगल में बैठा एक युवक सभी के आकर्षण का केंद्र बना रहा. यह युवक कपिल मिश्र थे जो सतीश चंद्र के बेटे हैं.

मंच पर सतीश चंद्र मिश्र के ठीक बगल में उनकी कुर्सी लगी हुई थी जबकि नकुल दुबे, पवन पांडेय जैसे कई वरिष्ठ नेता उनसे दूर बैठे थे. कपिल मिश्र ने किसी भी मीडिया से कोई बातचीत नहीं की लेकिन मीडिया से दूर रहने की कोशिश भी नहीं की.

सम्मेलन में शामिल बीएसपी के एक नेता का कहना था, "राजनीतिक लॉन्चिंग के लिए रामनगरी से ज़्यादा शुभ जगह भला कौन सी होगी?"

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