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जांच: यूपी-बिहार में सबसे ज्यादा हो रहा कोरोना की सस्ती रैपिड किट्स का इस्तेमाल

परीक्षित निर्भय, नई दिल्ली। Published by: Jeet Kumar Updated Sat, 24 Jul 2021 02:46 AM IST
सार

  • अध्ययन में रैपिड किट्स को बताया आर्थिक लिहाज से बेहतर, लेकिन कुछ शर्तों का पालन भी जरूरी
  • अशोका यूनिवर्सिटी, होमी भाभा नेशनल इंस्टीट्यूट के संयुक्त अध्ययन में जानकारी आई सामने

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cheap rapid kits of corona testing are being used the most in UP and Bihar
Corona testing - फोटो : PTI
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कोरोना वायरस की जांच को लेकर देश में अभी दो तरह की किट्स का इस्तेमाल किया जा रहा है। एक रैपिड जांच किट है जो किफायती होने के साथ साथ बड़े स्तर पर इस्तेमाल की जा रही है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में सबसे ज्यादा इन्हीं किट्स के जरिये जांच की जा रही है। जबकि दूसरी जांच आरटी-पीसीआर है जिसके जरिये 100 फीसदी वायरस की पहचान संभव है।



हालांकि यह रैपिड की तुलना में महंगी और लैब में अतिरिक्त समय लेने वाली जांच है। इसलिए अशोका यूनिवर्सिटी और मुंबई स्थित होमी भाभा नेशनल इंस्टीट्यूट के संयुक्त अध्ययन में सलाह दी गई है कि कुछ शर्तों के साथ रैपिड किट्स का इस्तेमाल किया जा सकता है।


मेडिकल जर्नल प्लॉस में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि रैपिड किट्स के जरिये जांच को आगे बढ़ाया जा सकता है लेकिन राज्यों को यह भी ध्यान रखना होगा कि प्रत्येक संक्रमित मरीज को पर्याप्त समय के लिए आइसोलेट किया जाए। अगर ऐसा नहीं होता है तो यह काफी गंभीर भी हो सकता है।
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अध्ययन में बताया कि राष्ट्रीय स्तर पर 49 फीसदी जांच रैपिड किट्स के जरिये हो रही हैं लेकिन आबादी के लिहाज से दो बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार में रैपिड किट्स का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जा रहा है।
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अध्ययन में सलाह दी है कि अगर कुल आबादी का 0.5 फीसदी हिस्से को प्रतिदिन रैपिड किट्स के जरिये जांचा जाता है तो बेहतर तरीके से कोविड प्रबंधन किया जा सकता है। हालांकि रैपिड जांच को लेकर पिछले डेढ़ साल में करीब 50 से अधिक चिकित्सीय अध्ययन सामने आ चुके हैं।

हाल ही में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने भी अध्ययन के जरिये यह दावा किया था कि रैपिड जांच के जरिये बेहतर परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। इसी अध्ययन के बाद यह तय हुआ कि जो लोग एंटीजन जांच में पॉजीटिव मिलते हैं उनकी दोबारा से आरटी-पीसीआर जांच कराने की जरूरत नहीं है। उन्हें संक्रमित मानते हुए कोविड प्रबंधन नियमों का पालन किया जाए।
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हालांकि कोविड आंकड़ों पर गौर करें तो एक सच यह भी है कि कोरोना की पहली लहर में उत्तर प्रदेश और बिहार में सबसे ज्यादा इन एंटीजन किट्स का इस्तेमाल किया गया और यहां संक्रमण के मामले भी काफी मिसिंग दर्ज किए गए।

एंटीजन किट्स के जरिए एक फीसदी से भी कम सैंपल कोरोना संक्रमित मिल रहे थे जिसके चलते यहां तेजी से मामले बढ़ते चले गए। जबकि आरटीपीसीआर के जरिए जितने सैंपल की जांच हो रही थी उनमें से 2.80 फीसदी संक्रमित मिल रहे थे।

विशेषज्ञों का कहना है कि दूसरी लहर आने के बाद भारत में बड़ी आबादी का जांच के दायरे में आना जरूरी है। इतनी आबादी की जांच और सही संक्त्रस्मण दर का पता लगाने के लिए दोनों किट्स का इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे समय और खर्चा दोनों ही बचत होगी लेकिन महामारी विज्ञान के अनुसार एहतियात जरूर बरतनी पड़ेगी।

बड़ी आबादी की जांच है सबसे जरूरी
अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया है कि जनसंख्या-स्तर का कवरेज परीक्षण एंटीजन किट्स की संवेदनशीलता से अधिक महत्वपूर्ण है। इनके अलावा जांच किट्स पर जोर देने से बेहतर मास्क पहनना, परीक्षण के साथ आइसोलेशन और क्वारंटीन पर ध्यान ज्यादा देने की जरूरत है।

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