Positive India : इस तकनीक से नहीं होगी ऑक्सीजन की बर्बादी, आईआईटी रोपड़ ने बनाई डिवाइस
आईआईटी रोपड़ के निदेशक प्रोफेसर राजीव आहुजा ने कहा कि यह डिवाइस पोर्टेबल पावर सप्लाई (बैटरी) तथा लाइन सप्लाई (220 वाट-50 हर्ट्ज) दोनों पर ऑपरेट कर सकती है। इसे संस्थान के बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के पीएचडी छात्रों- मोहित कुमार रविंदर कुमार और अमनप्रीत चंद्र ने विकसित किया है।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। आईआईटी रोपड़ के वैज्ञानिकों ने ऐसी डिवाइस और तकनीक विकसित की है जो ऑक्सीजन की अनावश्यक तौर पर होने वाली बर्बादी को रोकेगी। इस तरह इस तकनीक से ऑक्सीजन की बचत भी होगी। माना जा रहा है कि इससे ऑक्सीजन सिलेंडर की लाइफ तीन गुना बढ़ सकेगी। इस डिवाइस को एमलेक्स नाम दिया गया है।
अभी तक, सांस छोड़ने के दौरान ऑक्सीजन सिलेंडर/पाइप में रहा ऑक्सीजन भी उपयोगकर्ता द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड छोड़े जाते समय बाहर निकल जाता है। इससे दीर्घ अवधि में बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन का अपव्यय होता है। इसके अतिरिक्त,मास्क में जीवन रक्षक गैस के निरंतर प्रवाह के कारण रेस्टिंग पीरियड (सांस लेने और छोड़ने के बीच) में मास्क की ओपनिंग्स से बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन वातावरण में चली जाती है। जैसा कि हमने देखा है कि कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान मेडिकल ऑक्सीजन की मांग में कई गुना बढ़ोत्तरी हुई है, यह डिवाइस ऑक्सीजन की अवांछित बर्बादी को रोकने में सहायता करेगी।
आईआईटी, रोपड़ के निदेशक प्रोफेसर राजीव आहुजा ने कहा कि यह डिवाइस पोर्टेबल पावर सप्लाई (बैटरी) तथा लाइन सप्लाई (220 वाट-50 हर्ट्ज) दोनों पर ऑपरेट कर सकती है। इसे संस्थान के बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के पीएचडी छात्रों- मोहित कुमार, रविंदर कुमार और अमनप्रीत चंद्र ने बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर आशीष साहनी के दिशानिर्देश में विकसित किया है।
कैसे करता है काम
डॉ. साहनी ने कहा कि विशेष रूप से ऑक्सीजन सिलेंडरों के लिए बनाए जा रहे एमलेक्स को ऑक्सीजन सप्लाई लाइन तथा रोगी द्वारा पहने गए मास्क के बीच आसानी से कनेक्ट किया जा सकता है। यह एक सेंसर का उपयोग करता है जो किसी भी पर्यावरणगत स्थिति में उपयोगकर्ता द्वारा सांस लेने और छोड़ने को महसूस करता है और सफलतापूर्वक उसका पता लगाता है। उपयोग के लिए तैयार यह डिवाइस किसी भी वाणिज्यिक रूप से उपलब्ध ऑक्सीजन थेरेपी मास्क के साथ काम करती है जिसमें वायु प्रवाह के लिए मल्टीपल ओपनिंग्स हों।
ये बोले एक्सपर्ट
इस इनोवेशन की सराहना करते हुए लुधियाना के दयानन्द चिकित्सा महाविद्यालय के अनुसंधान एवं विकास, के निदेशक डॉ. जी.एस. वांडर ने कहा कि महामारी के वर्तमान समय में हम सभी ने जीवन रक्षक ऑक्सीजन के प्रभावी और व्यावहारिक उपयोग का महत्व सीख लिया है, इस प्रकार का एक डिवाइस वास्तव में छोटे ग्रामीण तथा अर्द्धशहरी स्वास्थ्य केन्द्रों में ऑक्सीजन के उपयोग को सीमित करने में सहायता कर सकता है।
बेहद जरूरी और राष्ट्रहित का है यह इनोवेशन
प्रो. राजीव आहुजा ने कहा कि कोविड-19 से मुकाबला करने के लिए देश को अब त्वरित लेकिन सुरक्षित समाधानों की आवश्यकता है। चूंकि यह वायरस फेफड़ों और बाद में मरीज की श्वसन प्रणाली को प्रभावित कर रहा है, संस्थान की मंशा इस डिवाइस को पेटेंट कराने की नहीं है। उन्होंने कहा कि इसके बजाय आईआईटी, रोपड़ को राष्ट्र के हित में, वैसे लोगों के लिए जो डिवाइस का व्यापक उत्पादन करने के इच्छुक हैं, इस प्रौद्योगिकी को निशुल्क हस्तांतरित करने में खुशी होगी।