अफगानिस्तान के बदले हालात से भारत - ईरान का बढ़ा संपर्क, क्रूड ऑयल खरीदने की इजाजत देने पर भी हो रहा विचार
अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद बदले हालात और अपने रणनीतिक हितों पर संभावित खतरे को देखते हुए भारत ने ईरान के साथ संबंधों को लेकर साफ संकेत दे दिया है। विदेश मंत्री जयशंकर ने बुधवार को अपने ईरानी समकक्ष जवाद जरीफ से टेलीफोन पर लंबी बातचीत की।
नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद बदले हालात और अपने रणनीतिक हितों पर संभावित खतरे को देखते हुए भारत ने ईरान के साथ संबंधों को लेकर साफ संकेत दे दिया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को अपने ईरानी समकक्ष जवाद जरीफ से टेलीफोन पर लंबी बातचीत की। बातचीत मुख्य तौर पर अफगानिस्तान के हालात और द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत बनाने पर केंद्रित रही। दोनों नेताओं के बीच पिछले एक पखवाड़े में यह दूसरी वार्ता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात कि अगले हफ्ते जब अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन भारत आने वाले हैं, यह बातचीत तब हुई है।
अफगानिस्तान के हालात देख दोनों देशों में बढ़ा संपर्क
संकेत साफ है कि अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से ईरान के साथ पिछले तीन वर्षों से अपने रिश्तों को लेकर उदासीन रहे भारत का रवैया बदलेगा। जानकार बताते हैं कि केंद्र सरकार अपनी तेल कंपनियों को ईरान से क्रूड ऑयल खरीदने की इजाजत देने पर भी विचार कर रही है। अफगानिस्तान में तालिबान के तेज होते हमलों को देखते हुए ईरान की भूमिका मौजूदा परिवेश में अहम हो गई है। ईरान लगातार तालिबान के एक बड़े धड़े के साथ ना सिर्फ संपर्क में है, बल्कि अपने स्तर पर अफगान सरकार और तालिबान के बीच शांति बैठकें भी करवा रहा है।
तालिबान से भारत और ईरान दोनों परेशान
सबसे अहम बात यह है कि पाकिस्तान पोषित तालिबानी आतंक का भारत व ईरान विरोध करते रहे हैं। जिस तरह भारत को डर है कि तालिबान का शासन कश्मीर में समस्या पैदा कर सकता है, उसी तरह का डर ईरान को भी है। पाकिस्तान पोषित तालिबानी आतंकियों ने पहले भी ईरान को परेशान किया है। ईरान भी भारत की अहमियत समझ रहा है। विदेश मंत्री जयशंकर दो हफ्ते पहले रूस की यात्रा के बीच में ईरान पहुंचे थे और वहां के नवनियुक्त राष्ट्रपति इब्राहिम राइसी से मुलाकात की थी। राइसी की किसी भी दूसरे देश के विदेश मंत्री से यह पहली मुलाकात थी।
जयशंकर ने ईरान के विदेश मंत्री जरीफ से की बात
जानकारों के मुताबिक तेहरान में विदेश मंत्री जरीफ के साथ बैठक में जयशंकर ने भारत की तरफ से ईरान में बनाए जा रहे चाबहार पोर्ट को लेकर पूरा समर्थन जताया था। तालिबान के सत्ता में आने की आशंका के मद्देनजर जानकार बताते हैं कि इससे भारत की चाबहार परियोजना की प्रगति प्रभावित हो सकती है। भारत इस पोर्ट को अफगानिस्तान के अंदरूनी हिस्से से रेल और सड़क मार्ग से जोड़ने पर काम कर रहा है। साथ ही भारत की योजना यहां एक विशेष आर्थिक क्षेत्र स्थापित करने की भी है। अफगानिस्तान की अस्थिरता इन निवेश योजनाओं पर असर डाल सकती है, जिसकी चिंता ईरान को भी है।
द्विपक्षीय रिश्तों को नए सिरे से पटरी पर लाना अहम
ईरान को लेकर अमेरिका के रवैये में नरमी आई है, लेकिन भारत के लिए फिलहाल अपने इस ऐतिहासिक मित्र देश के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को नए सिरे से पटरी पर लाना अहम है। जानकारों का कहना है कि पहले ईरान के नए राष्ट्रपति से मुलाकात और अब विदेश मंत्री जरीफ से बातचीत कर भारत ने अपना मत स्पष्ट कर दिया है। देखना होगा कि ईरान से क्रूड ऑयल (कच्चा तेल) खरीद पर भारत कब फैसला करता है।
वर्ष 2018-19 तक भारत ईरान से क्रूड ऑयल खरीदने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश रहा है। उसके बाद अमेरिका के नेतृत्व में लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की वजह से भारतीय तेल कंपनियों ने ईरान से तेल खरीदना बंद कर दिया है। यह न सिर्फ ईरान के लिए बड़ा आर्थिक झटका है, बल्कि भारत के लिए भी आर्थिक दबाव वाला फैसला है, क्योंकि ईरान हमेशा काफी सहूलियत वाली शर्तों पर भारत को क्रूड ऑयल बेचता रहा है।