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कश्मीरी नेताओं के संग पीएम मोदी की मीटिंग, BJP से ऐसे रहे हैं J-K की पार्टियों के रिश्ते

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा जम्मू-कश्मीर के नेताओं की बुलाई सर्वदलीय बैठक में कश्मीर के नेता मुलाकात कर रहे हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि राज्य में चुनावी प्रक्रिया बहाल हो सकती है. पीएम मोदी ने जम्मू कश्मीर में पीडीपी के साथ मिलकर दो बार सरकार बनाने की ऐतिहासिक शुरुआत की थी जबकि उससे पहले अटल बिहारी वाजपेयी ने नेशनल कॉफ्रेंस के साथ केंद्र में मिलकर सरकार बनाई थी.

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महबूबा मुफ्ती और नरेंद्र मोदी
महबूबा मुफ्ती और नरेंद्र मोदी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पीएम मोदी की जम्मू-कश्मीर के नेताओं की साथ बैठक
  • जम्मू-कश्मीर में चुनावी प्रक्रिया क्या बहाल हो सकेगी
  • जम्मू-कश्मीर की पार्टियों के साथ बीजेपी रहा गठबंधन

जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त हुए करीब दो साल होने जा रहे हैं, ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार गुरुवार राज्य के नेताओं की सर्वदलीय बैठक बुलाई है. पीएम मोदी जम्मू-कश्मीर के 8 दलों के 14 नेताओं के साथ सीधे संवाद करेंगे. प्रधानमंत्री आवास पर दोपहर 3 बजे बुलाई गई बैठक का फिलहाल एजेंडा गुप्त रखा गया है. ऐसे में इस बैठक पर सिर्फ जम्मू-कश्मीर ही नहीं बल्कि देश भर की निगाहें लगी हुई हैं. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा बुलाई सर्वदलीय बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पीएमओ राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह भी मौजूद रहेंगे. इसके अलावा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा भी शामिल होंगे. वहीं, जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉफ्रेंस के फारुख अब्दुल्ला से लेकर पीडीपी की महबूबा मुफ्ती और कांग्रेस के गुलामी नबी आजाद सहित कश्मीर की सभी पार्टियों के नेता पीएम मोदी की इस बैठक में शामिल हो रहे हैं. 

पीएम मोदी की बैठक का एजेंडा तय नहीं

पीएम आवास पर होने वाली बैठक को लेकर किसी एजेंडे का औपचारिक ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन माना जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया पर मंथन होगा. इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने, राज्य का परिसीमन और विधानसभा चुनाव पर भी बात हो सकती है. भले ही बीजेपी के अब जम्मू-कश्मीर की प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियों के साथ रिश्ते बिगड़ गए हों, लेकिन एक समय में पार्टी ने ना सिर्फ उनके साथ हाथ मिलाया बल्कि केंद्र से लेकर राज्य तक में सरकार भी चलाई है. 

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कश्मीर पर राजनीतिक दलों से बात करने की पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं. पीएम मोदी ने जम्मू कश्मीर में पीडीपी के साथ मिलकर दो बार सरकार बनाने की ऐतिहासिक शुरुआत की थी. उससे पहले कश्मीर में बीजेपी वैसे ही अलग थलग थी जैसे 1967 से पहले पूरे भारत में. जम्मू-कश्मीर में कोई भी दल बीजेपी साथ मिलकर सरकार बनाने को राजी नहीं होता था.

बीजेपी का एजेंडा 2019 में साकार हुआ

दरअसल,  जनसंघ के दौर से ही जम्मू-कश्मीर बीजेपी के सियासी एजेंडे में रहा था. अनुच्छेद 370 को लेकर बीजेपी और वहां की क्षेत्रीय पार्टियों के साथ रिश्ते नहीं बन पा रहे थे. लेकिन, अटल बिहारी वाजपेयी ने सबसे पहले जम्मू-कश्मीर के दलों को गले लगाना शुरू किया. वाजपेयी ने 1999 में नेशनल कॉफ्रेंस के साथ केंद्र में हाथ मिलाया और अब्दुल्ला परिवार को अपनी कैबिनेट में जगह दी जबकि नरेंद्र  मोदी ने 2015 में पीडीपी से हाथ मिलाया और जम्मू-कश्मीर सरकार में बीजेपी हिस्सेदार बनी थी. 

वाजपेयी सरकार में नेशनल कॉफ्रेंस हिस्सा थी

देश में नब्बे के दशक में गठबंधन की राजनीति शुरू हुई तो बीजेपी ने भी तमाम क्षेत्रीय पार्टियों को मिलाकर एनडीए का गठन किया. 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में केंद्र में सरकार बनी तो फारुख अब्दुला की नेशनल कॉफ्रेंस भी गठबंधन का हिस्सा बनी. बीजेपी और नेशनल कॉफ्रेंस का गठबंधन राज्य में नहीं था बल्कि केंद्र में था. फारुख अब्दुल्ला खुद वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे थे. इसके अलावा उनके बेटे उमर अब्दुल्ला भी वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके हैं. 

अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री रहते हुए कश्मीर के लोगों के साथ बेहतर तालमेल बनाया था. वाजपेयी ने कहा था कि इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत. इसी फॉर्मूले पर हम कश्मीर के विकास के लिए काम करना चाहते हैं और हम जम्मू-कश्मीर के जन-जन को गले लगाकर चलें, इसी भाव के साथ हम आगे बढ़ना चाहते हैं. इसके बावजूद बीजेपी अपना सियासी आधार वहां नहीं बढ़ा सकी. 2004 में वाजपेयी की सत्ता से बाहर होते ही नेशनल कॉफ्रेंस और बीजेपी का गठबंधन टूट गया. 

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कश्मीर में बीजेपी को मुख्यधारा में लाए पीएम मोदी

जम्मू-कश्मीर की पार्टियों के साथ बीजेपी का दोबारा तालमेल नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हुआ. साल 2014 के आखिर में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें कोई भी पार्टी बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाई थी. ऐसे में बीजेपी और पीडीपी दोनों ही पार्टियां सैद्धांतिक रूप से एकदम विपरीत थी, लेकिन चुनाव के नतीजों ने दोनों को नजदीक ला खड़ा किया है.

बीजेपी-पीडीपी गठबंधन ने रचा इतिहास
 
जम्मू-कश्मीर में साल 2015 में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन की सरकार बनी थी. गठबंधन के बाद मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बनाए थे जबकि डिप्टी सीएम बीजेपी के खाते में गया था. इस तरह से मोदी ने 2015 में मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ बीजेपी की सरकार बनवाकर जम्मू कश्मीर में भाजपा को मुख्यधारा की पार्टी बना दिया. 7 जनवरी 2016 को मुफ्ती  सईद का निधन हो गया. 

जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की अचानक मौत के बाद राज्य में संवैधानिक संकट खड़ा हो गया था. इस तरह से कश्मीर में सरकार बनाने को लेकर एक बार फिर खींचतान शुरू हो गई. जिसके बाद फिर पीडीपी-बीजेपी सरकार बनाने के लिए तैयार हो गई. ढाई महीने के बाद 4 अप्रैल 2016 को महबूबा मुफ्ती पहली महिला मुख्यमंत्री जम्मू-कश्मीर की बनीं जबकि उपमुख्यमंत्री बीजेपी के विधायक निर्मल सिंह को बनाया गया. 

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कश्मीर में बीजेपी का एजेंडा साकार

हालांकि, दो साल के बाद 2018 में बीजेपी और पीडीपी के रिश्ते ऐसे बिगड़े की महबूबा मुफ्ती ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद दोनों का गठबंधन टूट गया. यहीं से बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में अपने एजेंडे को अमलीजामा पहनाने का मौका मिला गया. केंद्र ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया. साल 2019 के लोकसभा चुनाव जीतकर मोदी दूसरी बार सत्ता में सबसे पहले कश्मीर की धारा 370 को खत्म करने का एतिहासिक कदम उठाया. 

मोदी सरकार ने पांच अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेश में बांट दिया. जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया और लद्दाख को. मोदी सरकार ने यह कदम उठाने के समय कश्मीर के नेताओं को नजरबंद कर दिया था, जिसके बाद अब प्रधानमंत्री अब पहली जम्मू-कश्मीर के नेताओं के साथ बैठक करने जा रहे हैं, जिस पर सबकी निगाहें टिकी हैं. एजेंडे को बिना सार्वजनिक किए बुलाई इस सर्वदलीय बैठक को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं और सबको इंतजार है कि आखिर इस बैठक का नतीजा क्या निकलकर आएगा? 

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मोदी की बैठक में इन नेताओं को आमंत्रण
पीएम आवास पर होने वाली इस बैठक में मुख्य रूप से जम्मू-कश्मीर के उन्हीं दल और नेताओं को आमंत्रित किया है, जिन्हें केंद्र ने राज्य की बदहाली का जिम्मेदार मानते हुए लंबे समय तक नजरबंद रखा था. राज्य में 8 पार्टियों के 14 नेताओं को बुलाया गया है. 

नेशनल कॉन्फ्रेंस से फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला, कांग्रेस से गुलाम नबी आजाद, तारा चंद व प्रदेश अध्यक्ष जीए मीर, पीडीपी से महबूबा मुफ्ती, जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के अल्ताफ बुखारी, बीजेपी से रविंदर रैना, निर्मल सिंह व कविंदर गुप्ता, माकपा से एमवाई तारिगामी, नेशनल पैंथर्स पार्टी के प्रोफेसर भीम सिंह, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के सज्जाद गनी लोन को बुलाया गया है, जिनमें सभी नेता दिल्ली पहुंच चुके हैं. 


 

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