लक्षद्वीप प्रशासन ने दिया न्यायाधिकार क्षेत्र केरल से कर्नाटक स्थानांतरित करने का प्रस्ताव

लक्षद्वीप प्रशासन द्वारा विधिक न्यायाधिकार क्षेत्र को कर्नाटक हाईकोर्ट में करने का यह प्रस्ताव ऐसे समय में किया गया है, जब लक्षद्वीप के प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा पटेल के कुछ निर्णयों के ख़िलाफ़ कई याचिकाएं केरल हाईकोर्ट में दाखिल की गई हैं.

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(फोटो साभार: swarajyamag.com)

लक्षद्वीप प्रशासन द्वारा विधिक न्यायाधिकार क्षेत्र को कर्नाटक हाईकोर्ट में करने का यह प्रस्ताव ऐसे समय में किया गया है, जब लक्षद्वीप के प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा पटेल के कुछ निर्णयों के ख़िलाफ़ कई याचिकाएं केरल हाईकोर्ट में दाखिल की गई हैं.

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कोच्चि/नई दिल्ली: अपनी कुछ नीतियों की वजह से स्थानीय लोगों के विरोध का सामना कर रहे लक्षद्वीप प्रशासन ने विधिक न्यायाधिकार क्षेत्र को केरल हाईकोर्ट से हटाकर कर्नाटक हाईकोर्ट में करने का प्रस्ताव रखा है. अधिकारियों ने यह जानकारी दी.

प्रशासन द्वारा यह प्रस्ताव ऐसे समय में किया गया है जब लक्षद्वीप के नए प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा पटेल के फैसलों के खिलाफ कई याचिकाएं केरल हाईकोर्ट में दाखिल की गई हैं.

इनमें कोविड-19 उपयुक्त व्यवहार के लिए मानक परिचालन प्रक्रियाओं को संशोधित करना, गुंडा अधिनियम को लागू करना और सड़कों को चौड़ा करने के लिए मछुआरों की झोपड़ियों को हटाने जैसे फैसलों के खिलाफ दायर याचिकाएं शामिल हैं.

पटेल दमन और दीव के प्रशासक हैं और दिसंबर 2020 के पहले सप्ताह में लक्षद्वीप के पूर्व प्रशासक दिनेश्वर शर्मा का संक्षिप्त बीमारी से निधन होने के बाद उन्हें लक्षद्वीप का अतिरिक्त प्रभार दिया गया था.

इस साल 11 रिट याचिकाओं सहित कुल 23 आवेदन लक्षद्वीप प्रशासक के खिलाफ और पुलिस या स्थानीय सरकार की कथित मनमानी के खिलाफ दायर किए गए है.

हालांकि, विधिक न्यायाधिकार क्षेत्र को केरल से कर्नाटक हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने के प्रस्ताव की सही वजह तो लक्षद्वीप प्रशासन ही जानता है, जो इन मामलों से निपटने को लेकर चर्चा में है.

इस बारे में प्रशासक के सलाहकार ए. अंबरासु और लक्षद्वीप के कलेक्टर एस. अस्कर अली से प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की गई लेकिन सफलता नहीं मिली. न्यायाधिकार क्षेत्र को स्थानातंरित करने के सवाल को लेकर इन अधिकारियों को किए गए ईमेल और वॉट्सऐप संदेशों के जवाब नहीं आए.

कानून के मुताबिक, किसी हाईकोर्ट का न्यायाधिकार क्षेत्र केवल संसद के कानून से ही स्थानांतरित हो सकता है.

संविधान के अनुच्छेद-241 के मुताबिक, ‘संसद कानून के तहत केंद्र शासित प्रदेश के लिए हाईकोर्ट का गठन कर सकती है या ऐसे केंद्र शासित प्रदेश के लिए किसी अदालत को उसका हाईकोर्ट सभी कार्यों के लिए या सविंधान के किसी उद्देश्य के लिए घोषित कर सकती है.’

हालांकि, इस अनुच्छेद की धारा-4 के अनुसार अनुच्छेद में ऐसा कुछ नहीं है जो राज्यों के हाईकोर्ट के न्यायाधिकार क्षेत्र में संशोधन आदि के बारे में संसद के अधिकार को कम करता हो.

लोकसभा में लक्षद्वीप से सदस्य पीपी मोहम्मद फैजल ने फोन पर बातचीत में कहा, ‘यह उनकी (पटेल) न्यायिक अधिकार क्षेत्र को केरल से कर्नाटक स्थानांतरित करने की पहली कोशिश थी. वह इसे स्थानांतरित करने को लेकर क्यों इतने प्रतिबद्ध हैं…यह इस पद के लिए पूरी तरह से अनुचित है. इस धरती पर रहने वाले लोगों की मातृभाषा मलयालम है.’

फैजल ने कहा, ‘किसी को नहीं भूलना चाहिए कि अदालत का नाम केरल एवं लक्षद्वीप हाईकोर्ट है. उक्त प्रस्ताव उनके लक्षद्वीप के पहले दौरे के समय सामने आया.’ उन्होंने कहा कि इसकी जरूरत क्या है और वह कैसे इस प्रस्ताव को न्यायोचित ठहराएंगे.

लोकसभा में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के सदस्य फैजल ने कहा कि पटेल से पहले 36 प्रशासक आए लेकिन इससे पहले किसी ने ऐसा विचार नहीं रखा.

उन्होंने कहा, ‘हालांकि, अगर यह प्रस्ताव आता है तो हम संसद और अदालत में पूरी ताकत से विरोध करेंगे.’

उन्होंने कहा कि लक्षद्वीप बचाओ मोर्चा (एसएलएफ) ने केंद्र से प्रशासक को यथाशीघ्र बदलने की अपील की है.

फैजल ने कहा, ‘एसएलएफ अहिंसक जन आंदोलन है जो केंद्रीय नेतृत्व से पटेल को हटाकर किसी ऐसे व्यक्ति को प्रशासक बनाने का अनुरोध कर रहा है जो लोगों का प्रशासक बन सके.’

लक्षद्वीप के कानूनी जानकारों ने कहा कि मलयालम भाषा केरल और लक्षद्वीप दोनों जगह बोली व लिखी जाती है, इसलिए प्रक्रिया सुचारु चलती है. न्यायाधिकार क्षेत्र बदलने से पूरी न्यायिक प्रणाली बदल जाएगी क्योंकि केरल हाईकोर्ट से सभी न्यायिक अधिकारी समान भाषा और लिपि होने की वजह से भेजे जाते हैं.

लक्षद्वीप की प्रमुख वकील सीएन नूरुल हिदया ने कहा कि उन्होंने न्यायाधिकार क्षेत्र बदलने के बारे में सुना है. उन्होंने लक्षद्वीप से फोन के जरिये की गई बातचीत में कहा, ‘लेकिन यह सही कदम नहीं है. वे कैसे न्यायाधिकार क्षेत्र बदल सकते हैं जब हम भाषा से जुड़े हैं और अदालती दस्तावेजों को मलयालम भाषा में ही स्वीकार किया जाता है.’

उन्होंने कहा कि अधिकतर लोग इस कदम का विरोध करेंगे क्योंकि यह उन्हें एक तरह से न्याय देने से इनकार करने जैसा होगा.

हिदया ने कहा, ‘एक बात समझनी होगी कि केरल हाईकोर्ट केवल 400 किलोमीटर दूर है जबकि कर्नाटक हाईकोर्ट 1,000 किलोमीटर दूर है और वहां के लिए सीधा संपर्क भी नहीं है.’

कानूनी जानकारों का कहना है कि हाईकोर्ट को बदलने से राजकोष पर भी अतिरिक्त बोझ पड़ेगा क्योंकि मौजूदा मामलों पर नए सिरे से सुनवाई करनी होगी.

बता दें कि मुस्लिम बहुल आबादी वाला लक्षद्वीप हाल ही में लाए गए कुछ प्रस्तावों को लेकर विवादों में घिरा हुआ है. वहां के प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा पटेल को हटाने की मांग की जा रही है.

पिछले साल दिसंबर में लक्षद्वीप का प्रभार मिलने के बाद प्रफुल्ल खोड़ा पटेल लक्षद्वीप पशु संरक्षण विनियमन, लक्षद्वीप असामाजिक गतिविधियों की रोकथाम विनियमन, लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन और लक्षद्वीप पंचायत कर्मचारी नियमों में संशोधन के मसौदे ले आए हैं, जिसका तमाम विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं.

उन्होंने पटेल पर मुस्लिम बहुल द्वीप से शराब के सेवन से रोक हटाने, पशु संरक्षण का हवाला देते हुए बीफ (गोवंश) उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने और तट रक्षक अधिनियम के उल्लंघन के आधार पर तटीय इलाकों में मछुआरों के झोपड़ों को तोड़ने का आरोप लगाया है.

इन कानूनों में बेहद कम अपराध क्षेत्र वाले इस केंद्र शासित प्रदेश में एंटी-गुंडा एक्ट और दो से अधिक बच्चों वालों को पंचायत चुनाव लड़ने से रोकने का भी प्रावधान भी शामिल है.

इससे पहले लक्षद्वीप के साथ बेहद मजबूत सामाजिक और सांस्कृतिक संबंध रखने वाले केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के साथ वामदलों और कांग्रेस के सांसदों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस संबंध में पत्र भी लिखा था.

केरल विधानसभा ने लक्षद्वीप के लोगों के साथ एकजुटता जताते हुए 24 मई को एक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया, जिसमें द्वीप के प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा पटेल को वापस बुलाए जाने की मांग की गई और केंद्र से तत्काल हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया गया था, ताकि द्वीप के लोगों के जीवन और उनकी आजीविका की रक्षा हो सके.

इसके बाद लक्षद्वीप के निवासियों ने जनविरोधी कदम उठाने के मुद्दे पर प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा पटेल को वापस बुलाने और मसौदा कानून को रद्द करने की मांग को लेकर पानी के भीतर विरोध प्रदर्शन करने के साथ अपने घरों के बाहर 12 घंटे का अनशन भी किया था.

प्रदर्शनकारियों ने ‘लक्षद्वीप फोरम बचाओ’ के बैनर तले अरब सागर के भीतर और अपने घरों के बाहर ‘एलडीएआर कानून वापस लो’ तथा ‘लक्षद्वीप के लिए न्याय’ लिखी हुईं तख्तियां प्रदर्शित की और सोशल मीडिया पर तस्वीरें साझा की थी.

वहीं, पिछले सप्ताह केरल हाईकोर्ट ने लक्षद्वीप प्रशासक के सुधार कदमों को चुनौती देने वाली जनहित याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि ये कथित सुधार उपाय फिलहाल मसौदा चरण में ही हैं.

(समाचार एजेंसी पीटीआई से इनपुट के साथ)